इस सप्ताह-
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अनुभूति
में-
1रविशंकर
मिश्र 'रवि',
डॉ. भावना, प्रभा शर्मा, रघुविन्द्र यादव, माया भारती और मैट
रीक की रचनाओं
के साथ एक खबरदार रचना। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- पर्वों के दिन जारी हैं और दावतों की
तैयारियाँ भी। इस अवसर के लिये विशेष शृंखला में शुचि प्रस्तुत
कर रही हैं-
अरबी मसालेदार। |
रूप-पुराना-रंग
नया-
शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर,
फिर से सहेजें रूप बदलकर-
टूटे बक्से का कलात्मक
उपयोग। |
सुनो कहानी- छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
शुभरात्रि। |
- रचना और मनोरंजन में |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला- २५ की रचनाओँ का प्रकाशन
पूरा हो गया है। नई कार्यशाला की तिथि और विषय निश्चित होने पर
सूचित करेंगे।
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लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत
है पुराने अंकों से १६ अगस्त
२००६ को प्रकाशित
एस.आर.हरनोट की कहानी—
"फोकस"।
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वर्ग पहेली-११७
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
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सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
अपनी प्रतिक्रिया
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-साहित्य-एवं-संस्कृति-में--गणतंत्र-दिवस-के-अवसर-पर- |
समकालीन कहानियों में भारत से
शीला इंद्र
की कहानी—
फाँसी
से पहले
संध्या का
झुटपुटा गहराने लगा था।
जेल का एक वार्डर बनवारी हाथ में एक छोटी-सी लालटेन लिये कुछ
गुनगुनाता चला आ रहा था- कोठरियों के तालों की चेकिंग करने।
वह हर कोठरी के सामने ठहरता, ताला खींचकर इत्मीनान करता कि
ताला अच्छी तरह बंद है, फिर उस सीलन भरी अँधेरी कोठरी में झाँक
कर कैदी को आवाज देता-“ऐ मोशाय शो गिया?” अंदर का कैदी कुछ
‘हाँ-हूँ’ करके जवाब दे देता। इसी तरह कई कोठरियों के
तालों को झिंझोड़ता, कैदियों से एक-दो बातें करता, वह एक कोठरी
के सामने आकर ठहर गया। ताला खींचा, फिर एक क्षण को उस लालटेन
की मद्धिम रोशनी में इधर-उधर देखकर आहट ली और फिर बहुत धीमी
फुसफुसाती आवाज में बोला, “कन्हाई बाबू! ऐ कन्हा ई बाबू, जरा
इधर आओ!”
वार्डर की यह फुसफुसाती रहस्यभरी पुकार सुनकर एक दुबला-पतला
युवक जेल के सीखचों के पास आकर खड़ा हो गया-“क्या है बनवारी
भैया?”
“सुनो, तुम्हारा नरेन गुसाईं सरकार से मिल गया है।“
बनवारी की धीमी आवाज जैसे कन्हाई के कानों में कोई तीक्ष्ण बाण
बेधती चली गयी। ...
आगे-
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नितिन जैन का व्यंग्य
राष्ट्रीय गणतंत्र विद्यालय
*
प्रदीप श्रीवास्तव की कलम से
राष्ट्रध्वज के निर्माता पिंगली वैंकैया
*
शशि पाधा से जानें
भारतीय सेना के उच्च नैतिक मूल्य
*
पुनर्पाठ में- प्रभात कुमार का आलेख
नार्वे में भारतीय तिरंगा
1 |
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पिछले-सप्ताह-
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१
अंतरा करवड़े की लघुकथा
संवाद की ताकत
*
इज़राइल के डॉ.गेनादी श्लोम्पेर का
भारत में
चार सप्ताह का हिंदी पाठ
*
स्वाद और स्वास्थ्य में जानें
गाजर के गुण
*
पुनर्पाठ में- डॉ. सत्येन्द्रनाथ राय का आलेख
कनाडा में भारतीय मूल के
निवासी
*
समकालीन कहानियों में भारत
से जयनंदन
की कहानी-
खैरियत की
खाक
छुनन मियाँ
मुकदमा हार गये।
गाँव वाले हैरान थे। यह हार एक आदमी की नहीं, बल्कि शराफत और
सच्चाई की हार थी।
छुनन मियाँ के प्रति सबकी हमदर्दी थी, विशेषकर उनकी पालकी को
लेकर। पालकी, जो कल्याणी नाम से जानी जाती थी और जिसके दोनों
तरफ के द्वार पर तुलसी की यह चौपाई लिखी थी :
परहित सरिस धरम नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।
कल्याणी पूरे इलाके में परिचित थी। किसी से भी पूछकर आप इसकी
महिमा का बखान सुन लीजिए। इसके बारे में कई पीढ़ियों से यह
मान्यता चली आ रही थी कि वर-वधू इस पर चढ़ लें तो उनकी शादी का
शुभ, सफल और सुखमय होना निश्चित है।
1
छुनन मियाँ जब इस आस्था के बारे में सोचते थे तो उन्हें हँसी आ
जाती थी। अच्छा भी लगता था कि चलो हमारी अन्तर्चेतना कहीं एक
बिंदु पर जुड़ती तो है इस माध्यम से। इस बहाने जाति-धर्म और
हैसियत के अहंकार-विकार से कुछ समय के लिए मुक्त तो हम हो जाते
हैं।
आगे- |
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