कर्ज के बोझ से दबे बेरोजगार
पति को दुखभरी नजरों से देखती पूनम मन ही मन हताशा, गुस्से
और विद्रोह के मिले जुले विचारों के साथ वहाँ से उठ गई.
कहीं भी, कोई आशा की किरण दिखाई नही दे रही थी। कितनी बार
कहा है इनसे, कि ऐसे आडे वक्त के लिए कोई बचत करना सीखो
लेकिन हमेशा का एक ही ब्रम्ह वाक्य सामने रख देते हैं,
’मुझे खुद पर विश्वास है।”
पूनम को याद आया जब वो बचपन में नाट्य शिविर में जाती थी।
’मैं वापस आनेवाली हूँ” इस वाक्य को पूनम ने आठ अलग अलग
भावों के साथ बोलकर और अभिनय के साथ सभी के सामने प्रस्तुत
किया था और शिविर के पहले ही दिन सभी की चहेती बन गई थी।
वो तालियों की गड़गड़ाहट थी या प्रसिद्धि की बची खुची
सुप्त इच्छा- सामने आ खडी हुई, दरवाजा बंद कर आईने के
सामने फिर खडी थी पूनम। लेकिन इस बार संवाद बदल गया था।
पति का बार बार कहा जाने वाला वाक्य, ’मुझे खुद पर विश्वास
है’, जो इन दिनों उसके कानों में जहर घोलने लगा था, उसी को
लेकर आठ अलग अलग प्रकारों से बोलने का अभ्यास पूनम करने
वाली थी।
’मुझे खुद पर विश्वास है’ पूरे आत्मविशवास के साथ बोलने के
बाद उसे लगा जैसे पेट में एसिडिटी की जलन पर ठंडा दूध डाल
दिया हो किसी ने। मन में आशा के तार हल्के से झनझनाए, होंठ
हल्के से मुस्काए और फिर वही वाक्य निकला, किसी और भाव से
नही, थोड़े और आत्मविश्वास के साथ। ये सारी क्रियाएँ हुई,
फिर दूने उद्वेग के साथ। तीसरी बार में तो पति पर का सारा
गुस्सा जाता रहा और चौथे पांचवे में वह स्वयं ही अपने आप
को शक्तिशाली महसूस करने लगी। लगा कि जैसे उन्हें कोसकर
कितनी बेवकूफी करती रही है अब तक। कहीं कोई दीप जल उठा।
नाश्ते के वक्त, पति को रह रहकर आश्चर्य हो रहा था कि जिस
व्यवसाय ऋण के ”गुमे हुए” फॉर्म को इतने दिनों की मेहनत के
बाद भी वो खोज नही पाया था, वो अचानक पूनम को कैसे मिल
गया। और बरबस उसके मुख से निकल ही पडा, ’मैं नही कहता था
पूनम, ’मुझे खुद पर विश्वास है।’ और पूनम वाकई नाम की
माफिक रोशनी बिखेरती मुस्कुरा पडी थी।
१४ जनवरी २०१३ |