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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से जयनंदन की कहानी— खैरियत की खाक


छुनन मियाँ मुकदमा हार गये।
गाँव वाले हैरान थे। यह हार एक आदमी की नहीं, बल्कि शराफत और सच्चाई की हार थी।

छुनन मियाँ के प्रति सबकी हमदर्दी थी, विशेषकर उनकी पालकी को लेकर। पालकी, जो कल्याणी नाम से जानी जाती थी और जिसके दोनों तरफ के द्वार पर तुलसी की यह चौपाई लिखी थी :
परहित सरिस धरम नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।

कल्याणी पूरे इलाके में परिचित थी। किसी से भी पूछकर आप इसकी महिमा का बखान सुन लीजिए। इसके बारे में कई पीढ़ियों से यह मान्यता चली आ रही थी कि वर-वधू इस पर चढ़ लें तो उनकी शादी का शुभ, सफल और सुखमय होना निश्चित है।

छुनन मियाँ जब इस आस्था के बारे में सोचते थे तो उन्हें हँसी आ जाती थी। अच्छा भी लगता था कि चलो हमारी अन्तर्चेतना कहीं एक बिंदु पर जुड़ती तो है इस माध्यम से। इस बहाने जाति-धर्म और हैसियत के अहंकार-विकार से कुछ समय के लिए मुक्त तो हम हो जाते हैं।

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