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अभिव्यक्ति हिंदी पुरस्कार- २०१२ //  तुक कोश  //  शब्दकोश //
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१२. ११. २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
नए पुराने अनेक रचनाकारों की अनेक विधाओं में दीपावली की ज्योति से जगमग विविध रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- पर्वों के दिन शुरू हो गए हैं और दावतों की तैयारियाँ भी। इस अवसर के लिये विशेष शृंखला में शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- बादाम दीप

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु- दीपावली बच्चों के साथ

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के पाक्षिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- दीपावली

- रचना और मनोरंजन में

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२४ की सभी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी है। अगली कार्यशाला की घोषणा ५ दिसंबर को की जाएगी।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है पुराने अंकों से १६ अक्तूबर २००६ को  प्रकाशित शिवानी की कहानी—"पिटी हुई गोट"।

वर्ग पहेली-१०७
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
          कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

दीपावली विशेषांक में
साहित्य संगम के अंतर्गत अरुण मांडे की मराठी कहानी का हिंदी रूपांतर- ड्रैगन के अंडे

सुबह उठा। आज ऑफ़िस जाने की कोई जल्दी नहीं थी। एक माह की छुट्टी ले ली थी। दीपावली अंकों के लिए विज्ञान-कथाएँ लिखनी थीं। एक-दो कहानियाँ लिख कर भेज चुका था। शुरूआत तो अच्छी हुई थी। परंतु कल ही एक कहानी वापस आ गई थी। संपादक महोदय को पसंद न आने के कारण कोई दूसरी कहानी भेजने का आदेश दिया गया था। वस्तुतः इतनी अच्छी कहानी वापस भेजने की वजह समझ में नहीं आई। ठीक है। जैसे ’’बॉस इज़ ऑलवेज़ राइट‘‘, वैसे ही ’’संपादक इज़ ऑलवेज राइट!‘‘ कोई बात नहीं। दूसरी कहानी भेज देंगे। वापस आई हुई कहानी कहीं और भेज देंगे। दूसरे संपादक को वह अधिक पसंद आने की संभावना थी। ख़ैर! तो मैं स्नान आदि से मुक्त हो कर प्रसन्नचित्त से कहानी लिखने बैठा। काग़ज़ निकाले रोटरिंग पेन खोला। लेकिन कुछ सूझ नहीं रहा था। फिर एक अगरबत्ती जलाई। गणेश की तस्वीर को प्रणाम किया। आगे-
*

शेरसिंह की लघुकथा
भाई दूज
*

ओम निश्चल का निबंध
अँधेरे में एक दिया तो बाले

*

कुमार रवीन्द्र का चिंतन
तुलसी के राम की मर्यादा और उनका राज्यादर्श
*

पुनर्पाठ में- प्रेम जनमेजय की कलम से
त्रिनिडाड-की-जगमगाती-दीवाली-और-अकेलेपन-से-लड़ता-मैं

*

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पिछले-सप्ताह-


शंकर पुणतांबेकर का व्यंग्य
संगमरमर की सीढ़ियाँ
*

इतिहास में ममता की कलम से
भारतीय आप्रवासी- डॉ. धनीराम प्रेम

*

सुदर्शन वशिष्ठ का आलेख
हिमालय का चितेरा रोरिक
*

पुनर्पाठ में- अनूप शुक्ला का संस्मरण
बोलो न बोलो- रमानाथ अवस्
थी
*

समकालीन कहानियों में यू.के. से
दिव्या माथुर की कहानी हिंदी@स्वर्ग.इन

सेंट मार्लिबन क्रैमेटोरियम, जहाँ महावीर शर्मा जी की अंत्येष्टि होनी तय हुई थी, मुझे आसानी से मिल गया किंतु उसका मुख्य द्वार अभी तक बन्द था। यह देखने के लिए कि अन्दर जाने के लिए शायद कोई और द्वार हो, मैं कार को मुख्य सड़क पर आगे पीछे दौड़ा रही थी। यह जगह मेरे लिए नई थी, मुझे जानकारी नहीं थी कि कार को कहाँ पार्क किया जाए। ग्यारह बजने वाले थे और मैं अभी पार्किंग ही ढूँढ रही थी। देर से पहुँचूँगी तो लोग मुझे ऐसे घूर कर देखेंगे कि जैसे मैंने एक बड़े महत्वपूर्ण काम में बाधा डाल दी हो चाहे उनके दिमाग़ों में उस समय मृतक के सिवा कुछ भी घूम रहा हो। दरवाज़ा खुलने की एक हल्की सी चरमराहट से मेहमानों की गर्दनें प्रवेश-द्वार की ओर घूम जाएँगी, मंत्रोचारण करते हुए पंडित जी का ध्यान बँट जाएगा और हर चेहरे पर लिखा होगा, ‘लेट-लतीफ’, ऐसे नाज़ुक मौकों पर भी लोग समय पर नहीं--सकते!’-ख़ैर,-तभी-मैंने-देखा-कि... आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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