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हिमालय का चितेरा रोरिक
सुदर्शन वशिष्ठ
हिमालय सदा चितकों, साधकों के
लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। अनेक ऋषि मुनि पुरातन समय में
हिमालय की शरण में आए। साहित्यकारों, कलाकारों ने भी समय समय
पर हिमालय में जाकर रचनाकर्म किया। हिमालय में स्विटरजरलैंड के
समान है कुल्लू जहाँ सुदूर रूस से आए एक कलाकार ने अपना साधना
स्थल बनाया। ९ अक्टूबर १८७४ को रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में
जन्मे निकोलस के. रोरिक ने गोबी रेगिस्तान, चीन, तिब्बत और
मध्य एशिया के वीरानों में भटकने के बाद कुल्लू में अपना
ठिकाना बनाया।
कुल्लू में व्यास नदी के बाएँ किनारे प्राचीन राजधानी नग्गर
तथा नग्गर किले के ऊपर है ’’रोरिक आर्ट गैलरी‘‘। नग्गर किला जो
प्राचीन काष्ठ ’काठकूणी‘ शैली का एक अद्भुत उदाहरण है, अब
हिमालय पर्यटन निगम का होटल है। होटल के ऊपर त्रिपुरा सुंदरी
के पैगोडा शैली के मंदिर के ऊपर स्थित है यह गैलरी जिसमें
रोरिक के अद्भुत चित्र उसी पुरातन घर में प्रदर्शित हैं जिस
में रोरिक रहा करते थे। इस छोटे से घर में निचली मंजिल में
घुसते ही आर्ट गैलरी है, जिसमें चित्र सुसज्जित हैं। ऊपर की
मंजिल में रोरिक का आवास है जिसे संरक्षित किया गया है। बाहर
उनकी पुरानी गाड़ी एक स्मृति के रूप में खड़ी रहती है। प्रागंण
में कुछ मुर्तियों के नीचे इस कलाकार की समाधि है। रोरिक १३
दिसम्बर १९४७ को यही दिवंगत हुए। समाधि पर उनके अंतिम संस्कार
की तिथि ३० माघ २००४ वि. दी है जो १५ दिसम्बर १९४७ है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी रोरिक न केवल एक महान चित्रकार ही थे
बल्कि पुरातत्ववेत्ता, कवि, लेखक, दार्शनिक और शिक्षाविद् थे।
वे हिमालय में एक इंस्टीट्यूट स्थापित करना चाहते थे। इस
उद्देश्य से उन्होंने राजा मण्डी से १९२८ में ’’हॉल एस्टेंट
नग्गर‘‘ खरीदा।
गैलरी
के बाहर नीचे की ओर व्यास घाटी तो ऊपर की ओर लाहौल के बर्फीले
पर्वतों की चोटियाँ नजर आती हैं। बाहर जैसा चित्ताकर्षक दृश्य
है, वैसा ही भीतर टंगे चित्रों में देखने को मिलता है। चित्रों
में धूप छांव, बर्फ से निकलती रोशनियाँ, पर्वतों का रहस्यमय
आवरण, उनकी गहराई, उनका उठान और उफान, समय समय पर बदलते अद्भुत
रंग और मूड, बादलों को चीर कर निकलती रोशनी की लाट, चमकते
सितारे, जाते हुए पर्वत यात्री, बौद्ध भिक्षु: सब एक रहस्यमय
और विचित्र संसार की रचना करते हैं।
सात हजार से अधिक चित्रों का निर्माता रोरिक के प्रसिद्ध
चित्रों में टूटा तारा, दूर देश का आगत, कल्कि अवतार, दाता
बुद्ध, चरक, त्रिरत्न आदि निगाए जा सकते हैं। तिब्बत शीर्षक
चित्र में एक छोरतेन के पीछे तिब्बत के घर बर्फीलें पर्वतों की
बेकग्राउंड में बनाए गए हैं। एक चित्र में बौद्ध भिक्षु दिखाए
हैं। जो पर्वत के इस ओर नतमस्तक हो रहे हैं। एक से दो चित्र
अद्भुत है। जिनमें एक तारा टूटता हुआ दिखाया है। एक चित्र
’’हिमालय‘‘ में नीचे तीन प्राचीन घर और आकाश में टूटते हुए
तारे की लम्बी लकीर है जो एक चित्र में कुछ पतली है तो दूसरे
में कुछ चौड़ी। ’’ओवर द पास‘‘ चित्र में यात्री पास से गुजरते
हुए दिखाए गए हैं, साथ के पहाड़ पर एक मानव आकृति चित्रित हुई
है। दो अन्य चित्र जो समानता लिए हुए हैं; ’मडोना‘ और ’मदर ऑफ
द वर्ल्ड‘ है। मेडोना अपनी परम्परागत वेशभूषा में है तो मदर
तिब्बती पोशाक में है। बर्फीले पर्वतों, उनके ऊपर नीले आकाश,
बादलों से छन कर आती सूर्य किरणों के अनेकों चित्रों के साथ एक
चित्र ’’द ग्रेट स्प्रिट ऑफ हिमालयाज‘‘ में एक ओर के पर्वत की
सेनापति सी मुखाकृति बनाई गई है।
बनारस तथा इलाहबाद में रोरिक के नाम से अलग वीथिका समर्पित है।
कलकत्ता, मद्रास, मैसूर, हैदराबाद, इन्दौर आदि स्थनों में भी
इनके चित्र हैं। बनारस में ’’दाता बुद्ध‘‘, ’’कल्कि अवतारर‘‘,
भगवान श्रीरामकृष्ण तथा इलाहबाद मंे ’’मैत्रेय‘‘, ’’अरहट‘‘ आदि
प्रमुख चित्र गिनाए जा सकते हैं। सन् १९५७ में जब रोरिक के
ज्येष्ठ पुत्र यूरी रोरिक वापस रूस गये तो अपने साथ चार सौ
चित्र ले गए।
रोरिक
के पर्वत चित्रण में समुद्र के नीचे जगत की भान्ति पर्वतों की
अनेक गुंजलकें, उनमें रंगों की अद्भुत आभा, सूर्य की किरणों के
अनेक रंग, दिव्य आभा से चमकते शिखर, रोशनी के स्तम्भ, आकाश में
तारों का संगम, रोशनी के फूटते हुए झरने और पर्वतों का
मानवीकरण मुख्य विशेषताऐं हैं। इन चित्रों में एक रहस्यमय
वातावरण का निर्माण हुआ है। अपने चित्रों के माध्यम से रोरिक
अपने समय के इतिहास पुरूष बने हैं। चित्रों की विषयवस्तु,
अद्भुत रंगों का प्रयोग, धूप छांव का चित्रण, ऊंचाई गहराई का
प्रर्दशन, बादलों के अनेकों रूप और रंग, प्रतीकों का प्रयोग
आदि विशेषताओं से इन्हें पर्वतों का कुशल चितेरा कहा जा सकता
है।
गैलरी में पण्डित जवाहर लाल नेहरू की बैठी हुई मुद्रा में तथा
इन्दिरा गांधी का खड़ी हुई मुद्रा में आकर्षक चित्र लगे हैं।
रोरिक ने लिखा है कि नेहरू अपनी पुत्री सहित उनके साथ नग्गर
में सप्ताह भर रहे। स्वेतोस्लाव ने उनका पोटेªट बनाया जो दो
फुट ऊंचा और छः फुट चौड़ा था और जिसके पीछे बेकग्राउंड में
कांग्रेस का झण्डा बनाया था। गैलरी के दो मंजिलें कॉटेज में
अठारह कमरे हैं। इनमें पुरानी पुस्तकें तथा पाण्डुलिपियाँ भी
संग्रहित हैं जिनमें कुछ पाण्डुलिपियाँ मोटी या तिब्बती में
हैं। मध्य एशिया से सम्बन्धित कुछ हथियार भी रखे गए हैं। कुछ
सजावट की पुरातन वस्तुएँ भी गैलरी में सुरक्षित हैं। बाहर पचास
के लगभग पाषाण कलाकृतियाँ हैं जिनमें देवताओं की प्रतिमा अधिक
हैं। प्रांगण के बगीचे में तरह तरह के फूल लगे हुए हैं। गैलरी
से ऊपर संग्रहालय तथा नवनिर्मित ओपन एयर थियेटर है।
पहले इस गैलरी की देखभाल रोरिक के समय की एक महिला करती थीं।
बाद में उनके साथ दोरजे ने भी मैनेजर का काम सम्भाला। उन लोगों
ने इस थाती को सम्भाले रखा, इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।
विष्णु शरण और मैना देवी ने ’’बड़े साब‘‘ रोरिक के पास लगभग
१९४० में काम करना आरम्भ किया। इनके विवाह का खर्चा भी रोरिक
ने उठाया। रोरिक के अपने नौकरों और गांव वालों से मधुर सम्बन्ध
थे। विष्णु शरण और मैना देवी को अच्छी तरह स्मरण था जब पण्डित
जवाहर लाल नेहरू १९४२ में रोरिक से मिलने आए और लगभग दस दिन तक
उनके गेस्ट हाउस ’’अर्केडिया‘‘ में ठहरे। मैना के अनुसार रोरिक
अपनी पेटिंग्ज में व्यस्त रहते थे और सुबह नौ बजे नाश्ता, एक
बजे लंच और रात नौ बजे के लगभग खाना खाते थे। उनका एक सिद्धू
माली भी था जो बाग की देखभाल करता था।
रोरिक
ने किशोरावस्था में ही कविताएँ लिखनी प्रारम्भ कीं जो बाद में
१९२९ में ये ’’फ्लेम इन चालिके‘‘ नाम से प्रकाशित हुई। इनकी
पुस्तकों में ’’आर्ट-ए प्रीडोमिनेंट फेक्टर इन आर्किओलोजी‘‘,
’’ओल्ड ट्रजरर्ज सेंट पीटरबर्ग‘‘, ’’रशियन आर्ट लण्डन‘‘,
’’ब्यूटीफुल यूनिटी बाम्बे‘‘ आदि हैं।
रोरिक की पत्नी एलीना लेवानोवना (१८७९-१९५५) भी लेखक थीं। इनके
ज्येष्ठ पुत्र यूरी निकोलेविच (१९०२-१९६०) ऑरिएँटल स्टडीज के
प्रोफेसर रहे हैं जो १९५७ में रूस चले गए। दूसरे पुत्र
स्वेतोस्लेव रोरिक भी एक जाने चित्रकार रहे हैं जिनके बनाए
जवाहर लाल नेहरू तथा इन्दिरा गांधी के पोट्रेट संसद भवन दिल्ली
में लगे हैं। वे बैंगलोर में रहते थे। इनकी पत्नी प्रसिद्ध
प्रथम अभिनेत्री देविका रानी थीं। अप्रैल १९९३ में ’’इंटरनेशनल
रोरिक मेमोरियल ट्रस्ट‘‘ नाम से न्यास गठित हुआ जिसके अध्यक्ष
प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी
वाजपेयी के इस गैलरी में आगमन पर इसके लिए एक करोड़ का अनुदान
सरकार द्वारा दिया गया जिससे गैलरी में एक रूसी
संग्रहालयाध्यक्ष और अन्य स्टाफ रखा गया। एक ओपन थियेटर का
निर्माण हुआ। एक आर्ट स्कूल भी यहाँ चल रहा है। कुल्लू मनाली
के पार्वती नैसर्गिक सौंदर्य के बीच यह कला दीर्घा एक मणि के
समान है।
५ नवंबर
२०१२ |