इस सप्ताह-
वर्षा ऋतु विशेषांक में |
अनुभूति
में-
विभिन्न रचनाकारों की विभिन्न विधाओं में लिखी गई रक्षाबंधन
पर्व को समर्पित रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
१
समकालीन कहानियों में भारत से
पुष्पा सक्सेना की कहानी
अनाम रिश्ता
“ये पोटली
बाँध कर कहाँ चलीं, माँजी?”जस्सी के घर से बाहर जाने के उपक्रम
पर निम्मो बहू ने आवाज़ लगाई।
1
“आज सरसों का साग पकाया था, भाई जी को बहुत अच्छा लगता है।
थोड़ा सा साग और चार मकई की रोटी ले जा रही हूँ।“ जस्सी ने धीमी
आवाज़ में कहा।
“बहुत सेवा कर ली भाई जी की, अच्छा हो उन्हीं के घर रहकर उनकी
पूरी देखभाल कर लीजिए।“
“ये क्या कह रही है, निम्मो, अपना घर छोड़ कर उनके घर जा कर
रहूँ? विस्मित जस्सी समझ नहीं पाई, निम्मो क्या कहना चाहती थी।
“ठीक ही तो कह रही हूँ, अपने बेटे के समझाने पर भी बात समझ में
नहीं आती। ये रोज़-रोज़ भाई जी के घर के चक्कर लगाने पर
मुहल्ले-पड़ोसी कितनी बातें बना रहे हैं। कुछ तो अपने बेटे की
इज्ज़त का ख्याल कीजिए। क्यों हमारी नाक कटाने पर तुली हैं?”
“किन मुहल्ले वालों की बात कर रही है, निम्मो? मेहर की-मौत-के-बाद-कहाँ-थे-ये-मुहल्ले-वाले?
विस्तार से पढ़ें
*
संजीव सलिल
की
लघुकथा-
मोहन भोग
*
बीनू भटनागर का
आलेख-
राष्ट्रकवि की काव्य साधना
*
डॉ. उषा गोस्वामी की कलम से
संस्कृत भाषा और साहित्य का
महत्त्व
*
पुनर्पाठ में रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति का
संस्मरण- मनोहर श्याम जोशी |
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पिछले सप्ताह-
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१
शरद तैलंग का व्यंग्य
पिया तू अब
तो आजा
*
डॉ. अश्विनी कुमार विष्णु की रचना-
छायावादी काव्य में वर्षा ऋतु
की उपस्थिति
*
उर्मिला शुक्ला का आलेख
भक्ति काल में वर्षा ऋतु
*
पुनर्पाठ में प्रभात कुमार से जानकारी
मानसून प्रकृति का जीवन संगीत
*
समकालीन कहानियों में भारत से
शुभ्रा उपाध्याय की कहानी
बारिश
आसमान काले-काले बादलों से भर
गया। ठंडी हवाओं ने तन मन को तरावट दी। उसका बेहद उकताया हुआ
मन जैसे नई ऊर्जा से उमग गया। अभी-अभी आग की बारिश करता मौसम
बिल्कुल बदल गया।
जैसे किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो। कितनी देर से उसकी खीझ अपने से
होती हुई मौसम के वाहियात रवैये पर आकर अटक गई थी, किन्तु यहाँ
तो पल में सबकुछ छू मंतर हो गया। हवाएँ देह को सहलाती
धीरे-धीरे बह रही थीं...
बादलों की नमीं आँखों के सहारे मन की गहराइयों में उतर रही
थी...
और उसका मन बूँद-बूँद भीगता क्रमश: गीली मिट्टी में तब्दील
होता जा रहा था। उसने एक लम्बी साँस ली। आँखें
बंद कर। कुछ पल अपनी अनुभूतियों में समेट कर ऊपर देखा। बादल न
जाने किस देश दौड़े जा रहे थे। फिर भी वे इतने बेफिक्र भी न थे
कि मिलने वाले जलद खण्डों से खैरियत भी न पूछ सकें। ...
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