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अभिव्यक्ति हिंदी पुरस्कार- २०१२ //  तुक कोश  //  शब्दकोश // पता-


६. . २०१२

इस सप्ताह- वर्षा ऋतु विशेषांक में

अनुभूति में-
विभिन्न रचनाकारों की विभिन्न विधाओं में लिखी गई रक्षाबंधन पर्व को समर्पित रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- अंतर्जाल पर सबसे लोकप्रिय भारतीय पाक-विशेषज्ञ शेफ-शुचि के रसोईघर से जन्माष्टमी के अवसर पर लौकी का हलवा

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल-का-शिशु- अतिरिक्त ऊर्जा का प्रबंधन

बागबानी में- बगीचे की देखभाल के लिये टीम अभिव्यक्ति के अनुभवजन्य अनमोल सुझाव- इस अंक में- सजावटी पौधों के गमले

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १ अगस्त से १५ अगस्त तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२२ - में प्रकाशित नवगीतों पर समीक्षा प्रकाशित हो गई है। जल्दी ही नए विषय की घोषणा कर देंगे।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है- १ सितंबर २००७ को प्रकाशित डॉ. नरेन्द्र कोहली के उपन्यास वासुदेव का एक अंश- कृष्ण आ गया है

वर्ग पहेली-०९३
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-


समकालीन कहानियों में भारत से
पुष्पा सक्सेना की कहानी
अनाम रिश्ता

“ये पोटली बाँध कर कहाँ चलीं, माँजी?”जस्सी के घर से बाहर जाने के उपक्रम पर निम्मो बहू ने आवाज़ लगाई।
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“आज सरसों का साग पकाया था, भाई जी को बहुत अच्छा लगता है। थोड़ा सा साग और चार मकई की रोटी ले जा रही हूँ।“ जस्सी ने धीमी आवाज़ में कहा।
“बहुत सेवा कर ली भाई जी की, अच्छा हो उन्हीं के घर रहकर उनकी पूरी देखभाल कर लीजिए।“
“ये क्या कह रही है, निम्मो, अपना घर छोड़ कर उनके घर जा कर रहूँ? विस्मित जस्सी समझ नहीं पाई, निम्मो क्या कहना चाहती थी।
“ठीक ही तो कह रही हूँ, अपने बेटे के समझाने पर भी बात समझ में नहीं आती। ये रोज़-रोज़ भाई जी के घर के चक्कर लगाने पर मुहल्ले-पड़ोसी कितनी बातें बना रहे हैं। कुछ तो अपने बेटे की इज्ज़त का ख्याल कीजिए। क्यों हमारी नाक कटाने पर तुली हैं?”
“किन मुहल्ले वालों की बात कर रही है, निम्मो? मेहर की-मौत-के-बाद-कहाँ-थे-ये-मुहल्ले-वाले? विस्तार से पढ़ें

*

संजीव सलिल की
लघुकथा- मोहन भोग
*

बीनू भटनागर का आलेख-
राष्ट्रकवि की काव्य साधना

*

डॉ. उषा गोस्वामी की कलम से
संस्कृत भाषा और साहित्य का महत्त्व
*

पुनर्पाठ में रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति का
संस्मरण- मनोहर श्याम जोशी

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पिछले सप्ताह-


शरद तैलंग का व्यंग्य
पिया तू अब तो आजा
*

डॉ. अश्विनी कुमार विष्णु की रचना-
छायावादी काव्य में वर्षा ऋतु की उपस्थिति

*

उर्मिला शुक्ला का आलेख
भक्ति काल में वर्षा ऋतु
*

पुनर्पाठ में प्रभात कुमार से जानकारी
मानसून प्रकृति का जीवन संगीत

*

समकालीन कहानियों में भारत से
शुभ्रा उपाध्याय की कहानी बारिश

आसमान काले-काले बादलों से भर गया। ठंडी हवाओं ने तन मन को तरावट दी। उसका बेहद उकताया हुआ मन जैसे नई ऊर्जा से उमग गया। अभी-अभी आग की बारिश करता मौसम बिल्कुल बदल गया।
जैसे किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो। कितनी देर से उसकी खीझ अपने से होती हुई मौसम के वाहियात रवैये पर आकर अटक गई थी, किन्तु यहाँ तो पल में सबकुछ छू मंतर हो गया। हवाएँ देह को सहलाती धीरे-धीरे बह रही थीं... बादलों की नमीं आँखों के सहारे मन की गहराइयों में उतर रही थी... और उसका मन बूँद-बूँद भीगता क्रमश: गीली मिट्टी में तब्दील होता जा रहा था। उसने एक लम्बी साँस ली। आँखें बंद कर। कुछ पल अपनी अनुभूतियों में समेट कर ऊपर देखा। बादल न जाने किस देश दौड़े जा रहे थे। फिर भी वे इतने बेफिक्र भी न थे कि मिलने वाले जलद खण्डों से खैरियत भी न पूछ सकें। ... विस्तार से पढ़

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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