इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
चौदह नवंबर बाल दिवस के अवसर पर विभिन्न रचनाकारों की ढेर सी
बालगीत एवं शिशुगीत रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
1
समकालीन कहानियों में
भारत से
शीला इंद्र की कहानी-
मेरा पूरा नाम?
आज सुबह से
मीना की आँखों में बार-बार आँसू भर आते हैं। रह-रह कर उसे वह
दिन याद आ रहा है जब वह पहली बार स्कूल गई थी। कितना उत्साह,
कितनी प्रसन्नता थी उसे स्कूल जाने में। नए-नए कपड़े, नई-नई
पुस्तकें और नया-नया शानदार बस्ता! सब कुछ उसे अपनी गुड़िया से
भी अधिक प्यारा लग रहा था।
उसके साथ उसके माँ और पापा भी कितने प्रसन्न थे। बार-बार उसे
कितनी बातें प्यार से समझाते। स्कूल में कैसे बात करना,
अध्यापिकाओं और लड़कियों से कैसा व्यवहार करना, मेहनत से पढ़ना
और ध्यान से सुनना, बार बार न जाने कितनी बातें! उसे ऐसी अच्छी
तरह याद है जैसे कल की ही बात हो। उसकी माँ बार-बार बड़े उत्साह
से उसके पापा से कहतीं-
‘देखो, मीना के स्कूल में सब बड़े-बड़े आदमियों के बच्चे पढ़ते
हैं, उसके लिए भी बढ़िया-बढ़िया कपड़े लाना!
आज वे सब बातें याद करके उसे वैसी गुदगुदी नहीं होती, जैसी कि
बचपन की बातें याद करके होती है। आज तो उसकी आँखें भर-भर आतीं
हैं।
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आकांक्षा यादव की
लघुकथा- बच्चा
*
आज सिरहाने- नरेन्द्र कोहली की बाल कथाएँ
हम सबका घर तथा अन्य कहानियाँ
*
डॉ. श्रीप्रसाद का दृष्टिकोण
बच्चे पसंद करते हैं
शिशुगीत
*
पुनर्पाठ में डॉ. जगदीश व्योम का आलेख
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पिछले सप्ताह- |
1
प्रमोद ताम्बट का व्यंग्य
सुस बैंक में खाता
*
भक्तदर्शन श्रीवास्तव से विज्ञानवार्ता
भौतिकी का नोबेल और फैलता हुआ ब्रह्मांड
*
डॉ. दिवाकर गरवा का आलेख
राजस्थानी लोकनाट्यः ख्याल
*
पुनर्पाठ में राजेन्द्र तिवारी का आलेख
आलेख- हिमांचल का रेणुकाजी मेला
*
प्रसिद्ध लेखकों की चर्चित
कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में भारत से श्रीलाल शुक्ल की
कहानी-
इस
उम्र में
व्यंग्य के नाम पर, या सच तो यह
है कि किसी भी विधा के नाम पर पत्र-पत्रिकाओं के लिए जल्दबाजी
में आएँ-बायँ-शायँ लिखने का जो चलन है, उसके अंतर्गत कुछ दिन
पहले मैंने एक निबंध लिखा था। वह एक पाक्षिक पत्रिका में
‘हास्य-व्यंग्य’ के स्तंभ के लिए था। हल्केपन के बावजूद उसे
लिखते-लिखते मैं गंभीर हो गया था (बक़ौल फ़िराक़, ‘जब पी चुके
शराब तो संजीदा हो गए’) यानी, इस निबंध से ‘शायँ’ ग़ायब हो गई
थी, सिर्फ ‘आयँ-बायँ’ बची थी। ‘आयँ-बायँ’ की प्रेरणा शहर के एक
बहुत बड़े दार्शनिक ने दी थी जो उतने ही बड़े कवि और कथाकार भी
थे परंतु वास्तव में प्रेरणा उन्होंने नहीं, उनकी मौत ने दी
थी। वे एक सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे। एक सप्ताह तक
अस्तापल और घर की सेवा अपसेवा के बीच झूलते हुए उनकी मृत्यु हो
गई।...
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