इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
मयंक श्रीवास्तव, धीरेन्द्र कुमार सिंह सज्जन, नीलम मिश्रा,
सोनल रस्तोगी और
दीपिका जोशी की रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
1
समकालीन कहानियों में भारत से
हरि भटनागर की कहानी
ग्रामोफोन
जाफर मियाँ
शहनाई के लिए मुहल्ले क्या अपने पूरे कस्बे में मशहूर
थे। तीन-चार बजते ही वे शहनाई लेकर चबूतरे पर आ बैठते और धूप
निकलने तक बजाते रहते। वे शहनाई बजाते और ढोल पर साथ देता उनका
दोस्त, सम्भू। सम्भू शहनाई के बजते ही उठ बैठता और जाफर मियाँ
के साथ ताल भिड़ाता। बताने वाले बताते हैं कि शहनाई का ऐसा
बजैया और ढोल का ऐसा पिटैया कस्बेत क्या, दूर-दूर के इलाके में
दूसरा न था। सवेरे शहनाई और ढोल न बजे तो मुहल्ले के लोगों की
आँखें न खुलती थीं। लगता कि रात है, अभी सोये रहो। लेकिन अब न
शहनाई है और न ढोल की आवाज़। लम्बे समय से सब कुछ ख़ामोश है
जैसे सज़ा दे दी गयी हो। और वास्तलव में सजा दे दी गयी थी। ढोल
और शहनाई को नहीं, जाफर मियाँ को। उस सजा से जाफर मियाँ इतने
ग़मगीन हुए कि उन्होंने शहनाई बजाना ही छोड़ दिया। शहनाई से
जैसे उनका कभी कोई ताल्लुक ही न रहा हो! और जब शहनाई नहीं बज
रही थी तो ढोल क्यों बजेगा?
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प्रमोद ताम्बट का व्यंग्य
सुस बैंक में खाता
*
भक्तदर्शन श्रीवास्तव से विज्ञानवार्ता
भौतिकी का नोबेल और फैलता हुआ ब्रह्मांड
*
डॉ. दिवाकर गरवा का आलेख
राजस्थानी लोकनाट्यः ख्याल
*
पुनर्पाठ में राजेन्द्र तिवारी का आलेख
आलेख- हिमांचल का रेणुकाजी मेला |
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पिछले सप्ताह- |
1
रमेश बतरा की लघुकथा
लोग
*
सुशील सिद्धार्थ का आलेख
व्यंग्य के विलक्षण शिल्पी- श्रीलाल शुक्ल
*
पुनर्पाठ में श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास
राग विराग पर कृष्ण बिहारी
*
समाचारों में
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ
*
प्रसिद्ध लेखकों की चर्चित
कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में भारत से श्रीलाल शुक्ल की
कहानी-
इस
उम्र में
व्यंग्य के नाम पर, या सच तो यह
है कि किसी भी विधा के नाम पर पत्र-पत्रिकाओं के लिए जल्दबाजी
में आएँ-बायँ-शायँ लिखने का जो चलन है, उसके अंतर्गत कुछ दिन
पहले मैंने एक निबंध लिखा था। वह एक पाक्षिक पत्रिका में
‘हास्य-व्यंग्य’ के स्तंभ के लिए था। हल्केपन के बावजूद उसे
लिखते-लिखते मैं गंभीर हो गया था (बक़ौल फ़िराक़, ‘जब पी चुके
शराब तो संजीदा हो गए’) यानी, इस निबंध से ‘शायँ’ ग़ायब हो गई
थी, सिर्फ ‘आयँ-बायँ’ बची थी। ‘आयँ-बायँ’ की प्रेरणा शहर के एक
बहुत बड़े दार्शनिक ने दी थी जो उतने ही बड़े कवि और कथाकार भी
थे परंतु वास्तव में प्रेरणा उन्होंने नहीं, उनकी मौत ने दी
थी। वे एक सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे। एक सप्ताह तक
अस्तापल और घर की सेवा अपसेवा के बीच झूलते हुए उनकी मृत्यु हो
गई।...
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