अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

पुरालेख तिथि-अनुसार। पुरालेख विषयानुसार हमारे लेखक लेखकों से
तुक कोश  //  शब्दकोश // SHUSHA HELP // पता-


१०. १०. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में- मधुकर अष्ठाना, हस्ती मल हस्ती, ललित अहलूवालिया आतिश, अरुणा सक्सेना और अब्बास रज़ा अल्वी की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- उत्सव का मौसम आ गया है। इसे स्वाद और सुगंध से भरने के लिये पकवानों की शृंखला में इस सप्ताह प्रस्तुत है-- कलाकंद

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का ४१वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- पेट में कीड़ों के लिये अजवायन और नमक

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १६ अक्तूबर से ३१ अक्तूबर २०११ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- अलग-अलग जालस्थलों के लिये कभी भी एक ही कूटशब्द (पासवर्ड) का प्रयोग नहीं करना चाहिये क्योंकि अगर किसी भी कारणवश...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-१८, विषय- उत्सव का मौसम में गीतों का प्रकाशन नियमित रूप से जारी है। रचनाएँ अभी भी भेजी जा सकती हैं।  

शुक्रवार चौपाल- दो महीनों की लंबी छुट्टी के बाद आज चौपाल लगी। विशेष अवसर था थियेटरवाला द्वारा उठाए गए नए नाटक के पात्रों के चयन का।

वर्ग पहेली-०५०
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

अपनी प्रतिक्रिया लिखें / पढ़ें

साहित्य व संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में भारत से
अमिता नीरव की कहानी बोनसाई

ट्रेन निकल गई और प्लेटफॉर्म बहुत हद तक खाली हो गया...सुमि को लगा कि एक बंधन के खुल जाने से उसकी जिंदगी की पोटली खुलकर बिखर रही है... वह एकाएक निरुद्देश्य...निरुपाय और निराश्रित हो आई...रेल गुजर जाने के बाद भी वह वहीं रुकी रह गई...वह दो बार प्लेटफॉर्म के अंतिम सिरे तक होकर आ चुकी थी। घर जैसी किसी भावना का सिरा ही पकड़ में नहीं आ पा रहा है। यूँ लग रहा है उसे जैसे वह बिना किसी तैयारी के युद्ध में ढ़केली गई है। आदत की लकड़ी के तड़ाक से टुकड़े हो चुके हैं और एक आकारहीन, खुरदुरा सा सिरा निकल आया था। मेधा के बिना उसकी आत्मा सूनी हो आई थी। मेधा- उसकी बेटी, पति के असमय दिवंगत हो जाने से उसके जीवन में मेधा के सिवा अब कुछ न रह गया था। वह प्लेटफॉर्म पर बहुत देर तक बैठी रही। मुम्बई जाने वाली ट्रेन के निकल जाने के बाद स्टेशन की भीड़ छँट चुकी थी। इक्का-दुक्का यात्री के अलावा ठेले वाले, रेलवे के स्टॉफ के लोगों के साथ बड़ा और खुला सा स्टेशन और खुल गया।... विस्तार से पढ़ें...

सुरेश यादव की लघुकथा
करवाचौथ
*

शशिपाधा का संस्मरण
विजय स्मारिका

*

रंगमंच में सूर्यकांत जोशी का आलेख
'त्रियात्र'
- गोवा का अनोखा लोकनाट्य
*

पुनर्पाठ में रति सक्सेना से सुनें
आस की कथा प्यास की व्यथा

अभिव्यक्ति समूह की निःशुल्क सदस्यता लें।

पिछले सप्ताह-

1
डॉ. अशोक गौतम का व्यंग्य
हाय रे मेरे भाग
*

मनोहर पुरी का आलेख
दसों पापों को हरने वाला दशहरा

*

शैलेन्द्र पांडेय के साथ पर्यटन
धनुषकोटि जहाँ राम ने सेतु बाँधा था
*

मानोशी चैटर्जी के साथ देखें
पुनर्पाठ में- चंदनपुर की जगद्धात्री पूजा

*

साहित्य संगम में भारत से रवीन्द्रनाथ ठाकुर की
बांग्ला कहानी का हिंदी रूपांतर- विद्रोही

लोग कहते हैं अँग्रेजी पढ़ना और भाड़ झोंकना बराबर है। अँग्रेजी पढ़ने वालों की मिट्टी खराब है। अच्छे-अच्छे एम.ए. और बी.ए. मारे-मारे फिरते हैं, कोई उन्हें पूछता तक नहीं। मैं इन बातों के विरुद्ध हूँ। अँग्रेजी पढ़-लिखकर मैं डॉक्टर बना हूँ। अँग्रेजी शिक्षा के विरोधी तनिक आँख खोलकर मेरी दशा देखें। सोमवार का दिन था। सवा नौ बजे मेरे मित्र बाबू सन्तोषकुमार बी.एस-सी. एक नवयुवक रोगी को साथ लिये मेरे दवाखाने में आये। उस रोगी की आयु अठारह-उन्नीस से अधिक न थी। गेहुआँ रंग, बड़ी-बड़ी आँखें, गठीला शरीर, कपड़े स्वदेशी, किन्तु मैले थे। सिर के बाल लम्बे और रूखे। सन्तोषकुमार ने युवक का परिचय कराते हुए कहा- आप जिला नदिया के निवासी हैं, नाम ललित हैं। एम.ए. में पढ़ते थे; परन्तु किसी कारणवश कॉलेज छोड़ दिया। मैंने मुस्कराते हुए पूछा- आजकल आप क्या करते हैं?... विस्तार से पढ़ें...

अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ

आज सिरहानेउपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व पंचांग घर–परिवार दो पल नाटक परिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुलेडाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसरहमारी पुस्तकेंरेडियो सबरंग

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

Google
Search WWW Search www.abhivyakti-hindi.org

blog stats
आँकड़े विस्तार में
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ०