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घर-परिवार बचपन की आहट


शिशु का ४१वाँ सप्ताह
इला गौतम


आपकी बातों का पिटारा

शिशु ने अब कई साधारण शब्द और वाक्य समझना शुरू कर दिया है, इसलिए अब बहुत ही आवश्यक है कि उससे ढेर सारी बातें की जाएँ। शिशु जो भी कहता है उसको दोबारा वयस्क भाषा में दोहराएँ ताकि हमारे गप्पी बच्चे को शुद्घ भाषा की ओर एक अच्छी शुरुआत मिले। उदाहरण के तौर पर यदि शिशु कहे "बा-बा" तो कोमलता से शुद्ध उच्चारण के साथ शिशु से पूछें "क्या तुम्हे बोतल चाहिए?" इस चरण में जितनी कम बच्चों की भाषा में बात की जाए उतना शिशु के लिए अच्छा होगा। बच्चों की तरह बोलने में मज़ा आता है लेकिन सही शब्दों को सुनना शिशु के विकास के लिए इस वक्त बहुत ज़रूरी है। हालाकि यह बहुत मूर्खतापूर्ण लग सकता है, लेकिन शिशु से बातचीत करना उसके भाषा कौशल को प्रोत्साहित करने का एक बहुत अच्छा तरीका है। जब शिशु बड़बड़ाकर कोई वाक्य बोल रहा हो तब उसका उत्तर ऐसे दें "अच्छा! सच में? अरे वाह! सम्भवतः शिशु मुस्कुराएगा और बड़बड़ाना ज़ारी रखेगा।

बहुत जल्द आपको लगेगा कि आप शिशु के कुछ शब्द और इशारे समझ पा रहे हैं, और संचार के कई और रूप भी जैसे किसी की तरफ़ उँगली दिखाना और घुरघुराना। ज़रूरी है कि आप उस वस्तु को नाम से बुलाएँ जिसकी ओर शिशु उँगली दिखा रहा है। या फिर आप खुद एक वस्तु की ओर उँगली कर के उसका नाम बोल सकते हैं ताकि शिशु वस्तुओं के नाम सीख पाए। आप जो कुछ भी कर रहे हैं उसका विवरण शिशु को विस्तार से दें - चाहे आप रात के खाने के लिए प्याज़ काट रहे हों या फिर कपड़े धोने के लिए डाल रहे हों। जब आप उसे स्ट्रोलर में बिठाएँ तो कहें "यह बैठ गया मेरा प्यारा मुन्ना स्ट्रोलर में। आओ अब पट्टा बाँध कर तुम्हे आराम से बैठाएँ। अब हम तैयार हैं पार्क में घुम्मी जाने के लिए।"

आप शिशु को बालगीत भी सुना सकते है और उसे वह क्रियाएँ भी दिखा सकते है जो उनके साथ की जाती हैं जैसे बोलना "अल्विदा" और हाथ हिलाना। आप शिशु के साथ खेल भी खेल सकते हैं जैसे "पोशम्पा भई पोशम्पा" जिससे शिशु मुख्य शब्दों और वाक्यों को पहचानने लगे। बहुत जल्द शिशु सम्बंध स्थापित करने लगेगा। वह समय दूर नही जब आपके ताली बजाने पर आपको देख कर शिशु भी ताली बजाएगा। हो सकता है कि वह माँ की ओर देखकर "माँ" कहे और जब पिता कमरे में प्रवेश कर रहे हों तब "पापा" बोले (हालाकि वह अभी इन दो शब्दों को बिना भेद के इस्तेमाल करेगा मतलब वह पिता को "माँ" बुला सकता है या माँ को "पापा" भी कह सकता है)।

खेल खेल खेल-

  • कुर्सियों का सहारा- शिशु जब मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह तैयार होगा तभी अपने पैरों से चलेगा। यह एक ऐसा कौशल है जिसमें आप जल्दी नही कर सकती। लेकिन जब शिशु अपना पहला कदम लेने के करीब पहुँच रहा हो तब उसका चीज़ें पकड़-पकड़कर चलने का आनंद लेने में बहुत मज़ा आएगा। इस खेल के लिए हमें चाहिए कुछ कुर्सियाँ। 

    दीवार से टिकाकर ५-६ कुर्सियाँ पँक्ति में लगा दें (हो सकते तो कालीन वाले कमरे में)। शिशु को खड़े होने में मदद करें और उसे कुर्सियों की पँक्ति के शुरू में खड़ा कर दें। फिर उसको दिखाएँ कि वह कैसे कुर्सी की मदद से एक कुर्सी से दूसरी कुर्सी पर आ सकता है। शिशु के प्रोत्साहन के लिए उसका मनपसंद खिलौना सबसे दूर वाली कुर्सी पर रख दें। जब शिशु खिलौने तक पहुँच जाए तो उसे खिलौना लेने में मदद करें, ताली बजाएँ और शिशु को गले से लगा लें। फिर विपरीत किनारे कि कुर्सी पर खिलौना रख दें और शिशु को वापस दूसरी दिशा में भेजें। आप इसे तब तक कर सकते हैं जब तक शिशु को मज़ा आ रहा हो और वह अपने पैरों पर खड़े होने के लिए तैयार हो।

    इस खेल से शिशु के हाथ और आँख का समन्वय विकसित होता है और शिशु को चलने का अभ्यास भी मिलता है। 

याद रखें, हर बच्चा अलग होता है

सभी बच्चे अलग होते हैं और अपनी गति से बढते हैं। विकास के दिशा निर्देश केवल यह बताते हैं कि शिशु में क्या विकास होने की संभावना है - यदि अभी नही तो बहुत जल्द। ध्यान रखें कि समय से पहले पैदा हुए बच्चे सभी र्कियाएँ करने में ज़्यादा समय लेते हैं। यदि माँ के मन में बच्चे के स्वास्थ या विकास से सम्बन्धित कोई भी प्रश्न हो तो उसे अपने स्वास्थ्य केंद्र की सलाह लेनी चाहिए।

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