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१५. ८. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
देशभक्ति की भावनाओं से ओतप्रोत प्रतिष्ठित रचनाकारों की बहत्तर काव्य रचनाओं का संकलन- मेरा भारत।

- घर परिवार में

रसोईघर में- टिक्की, कवाब व पकौड़े- बारह चटपटे और स्वादिष्ट व्यंजनों की शृंखला में इस सप्ताह प्रस्तुत है- सोया टिक्की।

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का ३३वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- श्वास रोगों के लिये दूध और पीपल।

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १५ अगस्त से ३१ अगस्त २०११ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- नॉर्टन व मैक ऐफी जैसे महँगे ऐंटी वाईरस की जगह मुफ्त के अनेक ऐंटी वाईरस उपलब्ध हैं जो गुणवत्ता में किसी भी तरह...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-१७ 'शहर का एकांत' विषय पर रचनाओं का प्रकाशन निरंतर जारी है। रचनाएँ अभी भी भेजी जा सकती हैं।

वर्ग पहेली-०४२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- अभिव्यक्ति के पुराने अंकों में से प्रस्तुत है- २४ अप्रैल २००४ को प्रकाशित तरुण भटनागर की कहानी- ढँकी हुई बातें

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर साहित्य व संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियो में भारत से
नीलम राकेश की कहानी- उनसे मिलना

महात्मा गाँधी के बजाये क्रान्ति के बिगुल से हर दिल में स्वतंत्रता की ज्योति जल उठी थी। एक अजब सा आलम था चारों ओर। कुछ कर गुजरने की तमन्ना हर दिल में थी। क्या स्त्री क्या पुरुष हर एक के हृदय में स्वतंत्रता की चिनगारी भड़क रही थी। हर इंसान बड़ी से बड़ी कुर्बानी के लिये तैयार था।

यह बात सन १९४२ की है, इलाहाबाद में कर्फ्यू लगा दिया गया था। परन्तु हमारे जोश और उत्साह में कोई कमी नहीं थी। हम बीस-पच्चीस लोग एकत्र होकर सड़क पर निकल पड़ते और सूनी पड़ी सड़कें हमारे बुलन्द नारों से गूँज उठतीं।
‘इंक्लाब...ज़िन्दाबाद...’
‘इंक्लाब...ज़िन्दाबाद...’
पुलिस तुरन्त हमारी ओर दौड़ती किन्तु उन्हें देखते ही हम अगल-बगल की पतली गलियों में तितर-बितर हो जाते।
पूरी कहानी पढ़ें...
*

संजीव सलिल की लघुकथा
निपूती भली थी
*

कैलाश बुधवार की चेतावनी
क्या हम नव-साम्राज्यवाद के सामने घुटने टेक देंगे?

*

अजय ब्रह्मात्मज की कलम से
हिंदी फ़िल्मों में राष्ट्रीय भावना
*

पुनर्पाठ में सुनील मिश्र का आलेख
महेन्द्र कपूर : देशराग के अनूठे गायक

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पिछले सप्ताह-

1
मनजीत शर्मा मीरा का व्यंग्य
महँगाई मार गई
*

डॉ. अनिल कुमार का आलेख-
नवगीत- परिप्रेक्ष्य और प्रासंगिकता

*

अभिलाष अवस्थी की दृष्टि से
सूर्यबाला का कहानी संग्रह- गौरा गुनवंती
*

पुनर्पाठ में रति सक्सेना का
नगरनामा- सागरी झीलों का शहर त्रिवेन्द्रम

*

सिद्ध लेखकों की चर्चित कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में भारत से मन्नू भंडारी की कहानी-
स्त्री सुबोधिनी

प्यारी बहनों, न तो मैं कोई विचारक हूँ, न प्रचारक, न लेखक, न शिक्षक। मैं तो एक बड़ी मामूली-सी नौकरी पेशा घरेलू औरत हूँ, जो अपनी उम्र के बयालीस साल पार कर चुकी है। लेकिन उस उम्र तक आते - आते जिन स्थितियों से मैं गुज़री हूँ, जैसा अहम् अनुभव मैंने पाया... चाहती हूँ, बिना किसी लाग - लपेट के उसेआपके सामने रखूँ और आपको बहुत सारे खतरों से आगाह कर दूँ। अब सीधी बात सुनिये। सीधी और सच्ची ! मेरा अपने बॉस से प्रेम हो गया। वाह! आपके चेहरों पर तो चमक आ गयी ! आप भी क्या करें? प्रेम कम्बख्त है ही ऐसी चीज़। चाहे कितनी ही पुरानी और घिसी-पिटी क्यों न हो जाये... एक बार तो दिल फड़क ही उठता है... चेहरे चमचमाने ही लगते हैं। खैर, तो यह कोई अनहोनी बात नहीं थी। पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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