बापू
के निर्वाण दिवस पर देश के नेताओं, चमचों एवं अधिकारियों ने
उनके आदर्शों का अनुकरण करने की शपथ ली। अख़बारों और
दूरदर्शनी चैनलों ने इसे प्रमुखता से प्रचारित किया।
अगले दिन एक तिहाई अर्थात नेताओं और चमचों ने अपनी आँखों पर
हाथ रख कर कर्तव्य की इति श्री कर ली। उसके बाद दूसरे तिहाई
अर्थात अधिकारियों ने कानों पर हाथ रख लिए, तीसरे दिन शेष
तिहाई अर्थात पत्रकारों ने मुँह पर हाथ रखे तो भारत माता
प्रसन्न हुई कि देर से ही सही इन्हे सदबुद्धि तो आयी।
उत्सुकतावश भारत माता ने नेताओं के नयनों पर से हाथ हटाया तो
देखा वे आँखें मूँदे जनगण के दुःख-दर्दों से दूर सत्ता और
सम्पत्ति जुटाने में लीन थे।
दुखी होकर भारत माता ने दूसरे बेटे अर्थात अधिकारियों के
कानों पर रखे हाथों को हटाया तो देखा वे आम आदमी की पीड़ाओं
की अनसुनी कर पद के मद में मनमानी कर रहे थे। नाराज भारत
माता ने तीसरे पुत्र अर्थात पत्रकारों के मुँह पर रखे हाथ
हटाये तो देखा नेताओं और अधिकारियों से मिले विज्ञापनों से
उसका मुँह बंद था और वह दोनों की मिथ्या महिमा गाकर ख़ुद को
धन्य मान रहा था।
अपनी सामान्य संतानों के प्रति तीनों की लापरवाही से क्षुब्ध
भारत माता के मुँह से निकला- ‘ऐसे पूतों से तो मैं निपूती ही
भली थी।
१५ अगस्त २०११ |