इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
नवीन चतुर्वेदी, प्राण
शर्मा,
मीनाक्षी धन्वंतरि, सुदर्शन प्रियदर्शिनी और उमा आसोपा की रचनाएँ। |
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साहित्य व संस्कृति में-
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1
समकालीन कहानियों में भारत से
ज्योतिष जोशी की कहानी-
कितने
अकेले
आधी रात की
गहन स्तब्धता में तेज़ बौछार के साथ वर्षा और बिजली की ज़ोरदार
गरज। खिड़की से रह-रह कर आते भीगी हवा के झोंके से तपते जिस्म
को थोड़ी सी राहत मिल जाती थी। पर मन किसी अनजान कोने में टिका
बार बार विचलित हो जाता था। इतनी देर रात गए आँखों में नींद
नहीं और रह-रह कर खाँसी की सुरसुरी सीने के बल को तोड़े जा रही
थी। उसने कई बार पदमा को आवाज़ दी पर वह अनसुना किए सोई रही। वह
हिम्मत करके उठा और जैसे तैसे एक गिलास पानी लेकर हलक में
उतारा। बार बार खाँसने खँखारने के बाद भी छाती में जमा बलगम
बाहर नहीं आता। नाक अब भी बन्द थी। सिर लगातार टनक रहा था और
शरीर ऐसा पस्त था कि ज़ोर न लगे तो दो कदम चलना भी मुश्किल। वह
आहिस्ता-आहिस्ता चहलकदमी कर रहा था कि अचानक स्टूल पर रखा गिलास
हाथ के झटके से फर्श पर लुढ़क पड़ा...टनाक...। पदमा अचकचाकर उठ
पड़ी...
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अश्विन गाँधी के साथ
दो पल में- साहूकार
*
रघु ठाकुर का आलेख-
भारत में फैलता इंडिया
*
अष्टभुजा शुक्ल का ललित निबंध
सूरज डूब गया
*
पुनर्पाठ में गुरूदयाल प्रदीप से-
विज्ञानवार्ता-
नैनो टेक्नालाजी या
जादुई चिराग |
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पिछले
सप्ताह- |
1
मनोहर पुरी का व्यंग्य
भ्रष्टाचार हटाने की
जरूरत क्या है
*
अर्बुदा ओहरी से जानें-
पता स्वास्थ्य का पत्ता गोभी
*
भारतेन्दु मिश्र का यात्रा संस्मरण
लौट के बुद्धू घर को आए
*
पुनर्पाठ में सेवाराम त्रिपाठी का आलेख
हिंदी गजल के नये पड़ाव
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समकालीन कहानियों में भारत से
सूर्यबाला की कहानी-
एक स्त्री के कारनामे
मैं औसत
कद-काठी की लगभग ख़ूबसूरत एक औरत हूँ बल्कि महिला कहना ज़्यादा
ठीक होगा। सुशिक्षित, शिष्ट और बुद्धिमती बल्कि बौद्धिक कहना
ज़्यादा ठीक होगा। शादी भी हो चुकी है और एक अदद, लगभग गौरवर्ण,
सुदर्शन, स्वस्थ, पूरे पाँच फुट ग्यारह इंच की लंबाई वाले
मृदुभाषी, मितभाषी पति की पत्नी हूँ।
बच्चे? हैं न। बेटी भी, बेटे भी। सौभाग्य से समय से और सुविधा
से पैदा हुए; भली-भाँति पल-पुस कर बड़े होने वाले। आज्ञाकारी और
कुशाग्रबुद्धि के साथ-साथ समय से होमवर्क करने वाले। सम्पन्नता
और सुविधाएँ इतनी तो हंभ कि एक पति, दो कावालियों और तीन
बच्चों वाला यह कारवाँ कदम-कदम बढ़ाते हुए लगभग ट्यूशन, टर्मिनल
सब कुछ बहुत सुभीते और सलीके से। पूरी ज़िन्दगी ही। जितने पैसे
माँगती हूँ पति दे देते हैं। जहाँ जाना चाहती हूँ पति जाने
देते हैं, कभी रोकते टोकते नहीं।
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