भारत से जाते जाते अंग्रेज एक काम
कर गए, भेदभाव और भ्रष्टाचार के बीज हमारे नाम वसीयत कर गए। यह उन्हीं की अमानत है
जिससे हम काम चला रहे हैं, भ्रष्टाचार को दिन दुना रात चौगुना बढ़ा रहे हैं। वे बोले
थे भले जैसे भी राज काज चले चलाना, परन्तु भ्रष्टाचार के मूल मंत्र को भूल मत जाना।
हमारी भ्रष्टाचार और भेदभाव की विरासत को पीढी दर पीढी सुरक्षित सौंपते ही जाना।
अंग्रेजों ने भ्रष्टाचार की नई जमीन खोजी और उसके साथ भेदभाव के बीज भी बो दिए थे।
उन्हीं के राज में हमने नैतिकता और ईमानदारी के अपने मूल्य खो दिए थे। आजादी के बाद
जब भ्रष्टाचार की नरम नरम कोंपलें पक कर नागफनी बन रही थीं, काले धन की काली चादर
समाज पर तन रही थी। तब हमारे परम प्रिय प्रथम प्रधानमंत्री जी ने था फरमाया, काला
धन भी तो देश में ही है समाया। इसने किसी विदेशी देश को कहाँ है भरमाया, मुझे
विश्वास है कि एक दिन यही बनेगा देश का सरमाया। देश की विकास दर भी पीछे रह जायेगी,
काली कमाई ही देश को आगे बढ़ायेगी। स्वतंत्रता का उषा काल था, देश नेताओं की
कुर्बानियों पर निहाल था। उस समय हमारे नेताओं और अधिकारियों को विदेशी बैंक कम ही
लुभाते थे, बहुत थोड़े से नेताओं के विदेशों में खाते थे। अभी भ्रष्टाचार आटे में
नमक की सौगात थी, इसलिए बहुत थोड़ी सी ही यह
चिन्ता की बात थी।
लाल बहादुर शास्त्री बहुत थोड़ी सी देर के लिए पर्दे पर आये थे, इस विषय में वह भी
कहाँ कुछ कर पाये थे। एक प्रकार से उन्होंने जो कुछ पंड़ित जी से लिया था उसे ज्यों
का ज्यों इंदिरा जी को सौंप दिया था। पण्डित नेहरू की सुपुत्री श्रीमती इन्दिरा
गांधी ने जब देश के खजाने को संभाला, तो निसंकोच भ्रष्टाचार का परम कल्याण कर डाला।
बोली भ्रष्टाचार तो विश्वव्यापी सच्चाई है, इसे स्वीकार करने में ही हमारी और देश
की भलाई है। अपना भ्रष्टाचार छिपाने को तो उन्होंने कमाल ही कर डाला, विश्व के सबसे
बड़े लोकतंत्र को आपात काल का निवाला बना डाला। मोरारजी भाई बहुत ही ऊँची हवा में
रहते थे, स्वमूत्र को हर रोग की दवा कहते थे। कोका कोला और आई बी एम को देश से क्या
निकाला स्वयं ही सत्ता से बेदखल हो गए, उनके राज में उनके बेटे भी भ्रष्टाचार के
बीज बो गए। चरण सिंह सत्ता के लिए कांग्रेस के चरण दास हो गए और जैन शुद्ध वनस्पति
के परांठे खा कर सत्ता के नशे में खो गए। राजीव गांधी ने परिवारवाद के इसी यथार्थ
को धरती पर उतारा और रुपए में ८३ पैसे के भ्रष्टाचार को डंके की चोट स्वीकारा। पर
स्वयं ही भ्रष्टाचार से मात खा गए क्योंकि
बोफर्स की तोप चला गए।
विश्व नाथ प्रताप सिंह ईमानदारी की ताल ठोक कर आये थे परन्तु कश्मीर की समस्या से
बहुत घबराये थे। कमंडल ने जब राजनीति में कमाल किया, तो उन्होंने देश को मंडल से
हलाल किया। उनका बोया हुआ जहर देश आज तक काट रहा है, आने वाली पीढ़ियों को वर्ग और
जातिवाद बाँट रहा है। बहुत भारी चन्द्रशेखर की महत्वाकांक्षाओं का खजाना था, जैसे
भी हो जोड़ तोड़ करके उन्हें तो सत्ता को हथियाना था। इस समय में भी भ्रष्टाचार ने
अपना रंग दिखाया, और तो और देश का स्वर्ण तक
विदेश में गिरवी रखवाया।
नरसिंह राव के काल में तो भ्रष्टाचार सर्वसिद्ध सत्य हो गया, उसकी आलोचनाओं का दौर
तो बहुत पीछे खो गया। भ्रष्टाचार को मात दे गया था घोटाला, घोटाला को धूल चटा गया
था हवाला। बहुत होशियारी से अपनी सरकार चला गए, अल्पमत की सरकार का संसद में ही
सांसद खरीद कर बहुमत दिखा गए। नरसिंह राव ने भले ही नेहरू और इन्दिरा गांधी की
धरोहर को विरासत में नहीं पाया, इसीलिए लालकिले से ऐसी घोषणाओं के करने से स्वयं को
था बचाया। यदि वह उसी थाती को छाती से लगाते, तो लाल किले से यह अवश्य ही फरमाते।
भ्रष्टाचार आज का युग धर्म है, इसको अपनाने का यही मर्म है। धर्म निरपेक्षता के साथ
हम आज भी इस धर्म का निर्वाह कर रहे हैं और देश की स्थापित परम्पराओं पर ही चल रहे
हैं। तब भी लोग सन्तुष्ट नहीं थे, भले ही श्री राव के मंत्रिमंडल से रुष्ट नहीं थे।
पुरानी परम्परा के किसी वारिस की खोज जारी रही, जब तक पूरी न हो खोज देश को किसी न
किसी तरह चलाना राव की लाचारी रही। वह यह कहने
का साहस जुटा नहीं पाये कि वे धृतराष्ट्र हैं और भारत एक भ्रष्ट राष्ट्र है।
जब उन्होंने तेरह दलों की दलदल को अपनाया है और अपने समर्थन से गुलाबी चने और टाट
पट्टी जैसे कांड़ों की परम्परा को यूरिया, पशु चारे और संचार माध्यमों तक बढ़ाया है।
जब देवेगौडा इस देश के सरदार रहे वे भी भ्रष्टचार के ही शिकार रहे। इन्द्र कुमार
गुजराल बिना किसी राजनीतिक जमीन के जमींदार रहे, अपने से अधिक अपने पड़ोसी के हितों
का ध्यान रखने के लिए तैयार रहे। अटल बिहारी वाजपेयी पहले ऐसे गैर कांग्रेसी नेता
थे जो प्रधान मंत्री पद पर पूरा कार्यकाल रहे इनके शासनकाल में भी भ्रष्टाचारी
निहाल रहे। भ्रष्टाचार और रिश्वत रोकने में इन्होंने भी कोई कमाल नहीं दिखाया हाँ
दुनिया के आणविक सम्पन्न देशों की श्रेणी में भारत को ला बिठाया। मनमोहन सिंह का भी
बहुत कम राजनैतिक आधार है फिर भी उन्हें भ्रष्टाचार का दिखता नहीं कारोबार है।
महंगाई निरंतर बढ़ रही है,एक श्रेष्ट अर्थशास्त्री की राजनीति की बलिवेदी पर बलि चढ़
रही है। अब तक यह तथ्य तो साफ और उजागर हो गया है कि नेता और
अधिकारी ही भ्रष्टाचार के मीठे फलों को खाते हैं, आम
नागरिक तो सूखी गुठलियों तक के लिए ललचाते हैं।
भले ही भारत के कुछ नागरिक भ्रष्टाचार की चर्चा को मानते हैं विपक्षी दलों का
दिखावा, पर हमारे शीर्षस्थ नेताओं ने इस सत्य को सार्वजनिक रूप से बार बार है
स्वीकारा। उन्होंने माना की राजनीति भ्रष्टाचार की चाशनी से सनी है, उसकी ईमानदारी
से कब और कहाँ बनी है। दोनों सरस्वती और लक्ष्मी सी साथ-साथ रहती हैं, हर को अपना
अपना चमत्कार दिखाती हैं। ईमानदारी के नश्वर शरीर के नीचे ही तो भ्रष्टाचार पलता
है, वह किसी की उज्ज्वल आत्मा को कहाँ छलता है। भ्रष्टाचार की मिठास को कहाँ कोई
छोड़ता है, कटी पतंग की डोर कब कोई हाथ आने पर तोड़ता है। यही देखने तो इस बार
अंग्रेज कॉमन वेल्थ खेलों के बहाने इस देश में आ रहे हैं, वे जानना चाहते हैं कि
भारत के लोग अरबों रुपए वाले बजट से कितने खरब रुपए खा रहे हैं। लगता है कलमाड़ी
उन्हें होने नहीं देगें निराश, उनकी पूरी करेगे हर आस। हम उन्हें दिखा देगें कि
उनका सौंपा हुआ पौधा आज कितना बड़ा बट वृक्ष बन पूजनीय और महान है। अंग्रेजों की
विरासत हमने संभाल कर रखी है इसका यही सबसे बड़ा प्रमाण है। |