समकालीन कहानियों में भारत से
हर्ष कुमार की कहानी
फौजी
इंदौर स्टेशन पर खड़ी
इंदौर-निज़ामुद्दीन एक्सप्रेस में अपनी सीट पर बैठ कर आराम से
किताब पढ़ रहा था कि अचानक फर्श पर पड़ रहे किसी के कड़क जूतों की
आवाज़ से उसका ध्यान बँट गया। अगर आप किसी ट्रेन यात्रा
कर रहे हों तो ट्रेन चलने से पहले स्टेशन लोगों के इधर-उधर
भागने से जूतों की आवाज़ होती ही रहती है और उससे आपका ध्यान
नहीं बँटता। पर यह आवाज एक अलग तरह की थी – सालों की कवायद के
बाद पड़ी आदत से सख्ती से तन कर चलते हुये किसी फौजी की चाल की
आवाज़। वह भी अकेली एक आवाज़ नहीं। एक साथ दो लोगों के चलने की
आवाज़। आवाज़ मेरे पास आकर रुक गई थी। शायद यही कारण था कि मैं
चौंक गया था। पर मैंने सिर ऊपर नहीं उठाया और आँखों को किताब
पर ही रखा। बस आँखों के कोने से देखने की कोशिश की कि कौन है।
दो लोग थे एक के पीछे एक। अगला आदमी बड़ा अफसर था और...
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