हास्य व्यंग्य

वी.आई.पी. कबूतर
देवेन्द्र इन्द्रेश


वे जमाने लद गए जब खलील मियाँ फाख्ता उड़ाया करते थे। उस जमाने में फाख्ता उड़ने के लिए होती थी। अब फाख्ता
ही नहीं है तो उड़ाएँ क्या। खलील मियाँ तो अब भी हैं पर फाख्ता नहीं है। जब जमाना था तो खलील मियाँ ने बड़े फाख्त़े उड़ाए। और अब वे जिंदा हैं तो उन्हें कुछ न कुछ तो उड़ाना ही है। जिसने जिंदगी भर अपनाऔर परायों का उड़ाया हो वह बिना उड़ाए कैसे रह सकता है। सो खलील मियाँ ने कबूतर उड़ाना शुरू कर दिया।

कबूतर एक अदद सीधा सच्चा पक्षी। जो हमेशा उड़ना चाहता है। उड़ता रहता है, दूसरों के इशारे पर आँखें बंद करके। खलीलमियाँ का कबूतर उड़ाने का तरीका भी अजीबोगरीब था। वे पहले भोले भाले कबूतर को दाना डालते। धीरे-धीरे उनको अपनेदड़बे में रखते। उड़ने के हुनर सिखाते। और जब कबूतर हुनर सीख कर टंच हो जाता तो अपना दड़बा खोल जिस दिशा में चाहते उसदिशा में उड़ा देते। कबूतर भी खलील मियाँ के सभी इशारों को अच्छी तरह से समझने लगे थे।

खल़ील मियाँ भी शातिर कबूतरबाज थे। इससे पहले अनेक बार बटेरों को आपस में लड़ा कर लहुलुहान करवा चुके थे। बटेर बिना यह जाने कि वे आपस में क्यों लड़ रही हैं, लड़ती रहती थीं। खलील मियाँ उनको लड़ा कर आनन्दानुभूति करते थे तथा दर्शकों को भी बटेरों को लड़ते हुए देखने का सुख प्रदान करते थे। अब बटेर भी नहीं रहीं या यों कहें कि उन्होंने खलील मियाँ के इशारों पर लड़ना बंद कर दिया है। इसलिए खलील मियाँ कबूतरबाजी पर आन लगे। और अब कबूतरबाजी को बतौर धंधा अपना लिया है। उनके दड़बे में ऐसे-ऐसे नायाब कबूतर हैं जो उनके इशारे पर आसमान में भी सूराख करने की हिम्मत रखते हैं। ऐसी बात नहीं है कि खलील मियाँ की कबूतरबाजी से पहले कबूतर उड़ाए नहीं जाते थे। खूब उड़ाए जाते थे। लड़ाई के दिनों में तो कबूतरगुप्त संदेशों को इधर से उधर ले जाते थे।

कबूतर में पवन वेग की शक्ति है। ईश्वर ने उसे ऐसा वरदान दिया है कि वहसारे आकाश में जहाँ चाहे वहाँ स्वच्छंद घूम
सकता है। कबूतर की इसी खूबी ने खलील मियाँ को फाख्ता उड़ाने के बाद कबूतर उड़ाने को विवश कर दिया। संदेश कैसा भी हो कबूतर लाने और ले जाने में माहिर है।

कहते हैं यक्ष ने बादलों को दूत बनाकर अपनी यक्षिणी के पास विरह संदेश भेजा था। बादलों से पहले यक्ष ने कबूतर से ही अपना संदेश ले जाने की बात कही थी कि कबूतर भैया मेरा विरह संदेश मेरी प्रियतमा के पास ले जाओ। लेकिन कबूतर महाराज अड़ गए। और कहा तुम्हारा संदेश ले जाने पर मुझे क्या मिलेगा। क्या मुझे अलकापुरी में स्थाई बसेरा करने दोगे। यक्ष इस बात से सहमत नहीं हुआ और कबूतर का अनुबंध निरस्त हो गया। कबूतर को उड़ना तो था ही, सो खलील मियाँ के हत्थे चढ़ गए। तब से खलील मियाँ कबूतरों को विदेश की सैर करा रहे हैं। जब खलील मियाँ फाख्ता उड़ाया करते थे तो उस समय उनको फाख्ता उड़ाने में कोई विशेष मजा नहीं आता था, जितना अब कबूतर उड़ाने में आता है। इन दिनों खलील मियाँ का कबूतरबाजी का धंधा जोरों पर है। पहले उनके पास उड़ाने को केवल एक दो ही फाख्ता थे, जो यदि उड़ जाते थे तो उनके वापस लौटने की कोई गारंटी नहीं होती थी। लेकिन अब ऐसे हुनरमंद दर्जनों कबूतर खलील मियाँ के दड़बे में पल रहे हैं, जिनको वे आए दिन विदेशों में उड़ाते रहते हैं। कुछ कबूतर जोड़े से हैं कुछ अकेले। खलील मियाँ जोड़े से भी कबूतरों को विदेश के लिए उड़ाते हैं। जो कबूतर जोड़े से विदेश की ओर उड़ते हैं उनके वापस आने की संभावना कम ही रहती है। फाख्ता उड़ाने की फीस खलील मियाँ नहीं लिया करते थे, केवल अपने शौक के लिए उड़ाते थे। पर कबूतरों के इस धंधे में उन्हें अच्छी कमाई हो जाती है। कबूतरों से खलीलमियाँ अब अच्छी रकम ऐंठ लेते हैं। अब स्थिति यह है कि हर कबूतर खलील मियाँ के हाथों उड़ने के लिए छटपटा रहा है।

एक दिन जब खलील मियाँ अपने कबूतरों को दड़बे से निकाल कर परेड करा रहे थे, तब उनको आम कबूतरों के बीच वी.आई.पी. कबूतर दिखायी दिया। उन्हें बड़ी हैरानी हुई कि येवी.आई.पी. कबूतर मेरे आम कबूतरों में कैसे घुस गया। दड़बे में हाथ डाल कर उस वीआई.पी. कबूतर को निकाला। खलील मियाँके होश तब उड़ गए जब उस वी.आई.पी कबूतर ने कहा 'मियाँ मैं भी तुम्हारे हाथों विदेश में उड़ना चाहता हूँ। तुमने बहुत सारे कबूतरों को उड़ा कर विदेश पहुँचा दिया है। मैं भी दुनिया के सारे देशों में उड़ना चाहता हूँ। मेरी इच्छा है कि मैं आकाश में सर्वत्र घूमता रहूँ। मैं जिस दिशा में चाहूँ उस दिशा
में उडूँ। कोई मुझे पकड़े नहीं। बस यही मेरी इच्छा है इसलिए मैं तुम्हें मुँह माँगी रकम देनेको तैयार हूँ।`

खलील मियाँ ने उस वी.आई.पी. कबूतर से कहा 'हे वी.आई.पी. कबूतर जी, तुम तो खुद ही वी.आई.पी. हो। वी.आई.पी. होने के कारण तुम्हारे पास तो खुद ही इतनी सामर्थ्य है कि कितने ही कबूतरों को बिना पासपोर्ट, वीजा के विदेश की सैर करा सकते हो, और विदेश में परमानेंट निवास का जुगाड़ भी भिड़ा सकते हो। तुम्हें तो वी.आई.पी. होने केकारण यह सुविधा मिली हुई है कि तुम जहाँ चाहो, जिस दिशा में चाहो बिना रोक टोक के उड़ सकते हो। तुम्हें उड़ने से कौन रोक सकता है। फि तुम मेरे हाथों क्यों उड़ना चाहते हो।

वी.आई.पी. कबूतर ने कहा मियाँ जी, मेरा नाम लोटन कबूतर है। मैं पहले आसमान में इधर से उधर कारण तथा अकारण लोट लगाता रहता था। जमीन पर तो मेरे पैर ही नहीं पड़ते थे। इसलिए वी.आई.पी. समाज मुझे लोटन कबूतर कहता है। आजकल उड़ने उड़ाने में रोक लग गयी है। जो वीआई.पी. कबूतर विदेश की ओर खुद उड़ते हैं तथा अपने चमचे कबूतरों को अपने साथ विदेश की सैर कराते हैं, उनकी धरपकड़ होने लगी है। मियाँ जी तुम्हारी कबूतर उड़ाऊ एजेंसी है। इसलिए तुम्हारी एजेंसी के मार्फत उडूँगा तो किसी को शक भी नहीं होगा तथा पकड़ा भी नहीं जाऊँगा। सो मुझे अपने हाथों उड़ा दो। खलील मियाँ नेसोचा आज ऊँचा कबूतर हाथ लगा है, आज तो अपनी पौ बारह है। इस गरज से उन्होंने जैसे ही वी.आई.पी. कबूतर को अपने हाथ से उड़ाना चाहा, दड़बे में बंद सारे कबूतर गुटर गूँ-गुटर गूँ करके बाहर निकल आए और खलील मियाँ को चारों ओर से घेर लिया। इस लफड़े को देख वी.आई.पी कबूतर खलील मियाँ के हाथों से फुर्र उड़ गया। खलील मियाँ वी.आई.पी. कबूतर को आसमान में पश्चिम दिशा की ओर उड़ता हुआ निर्निमेष नेत्रों से देखते रहे और अपने हाथ मलते रहे।

३ जनवरी २०११