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जिन हालात
में मुझे लगभग अचानक दिल्ली के लिए रवाना होना पड़ रहा था। वह
बेहद त्रासद था और लग रहा था, अब मेरे जीवन में लम्बे समय तक
शिकारी कुत्तों की तरह पीछा करने वाली परेशानियों का एक लम्बा
सिलसिला शुरू हो जाएगा। दरअस्ल हुआ यह था कि दिल्ली के
मुख्यालय से अप्रत्याशित संदेश मेरे उच्चाधिकारी के पास आया था
कि मुझे किसी खास वजह से मुख्यालय में अविलम्ब उपस्थित होना
है। आदेश के न पालने की स्थिति में विभाग द्वारा अनुशासनात्मक
कार्यवाही भी हो सकती है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसा
क्या हो गया कि मुख्यालय ने मेरी ताबड़तोड़ उपस्थिति के फरमान
अचानक जारी कर दिये।
पिछले बीस साल के सेवाकाल में
मुझसे अपने दायित्वों को विधिवत निभाने में कहीं कोई रत्ती भर
भी चूक नहीं हुई थी। किसी तरह की कोई आर्थिक अनियमितता भी नहीं
हुई। बावजूद इस सब के कभी-कभी मैं अचरज में पड़ जाता था कि ऐसा
क्यूँ होता है कि सारे सवाल, सारी जाँचें तहकीकातें विभाग में
सिर्फ मेरे ही 'किये धरे' को लेकर होती रहती है ? जबकि मेरे
बहुत सारे सहकर्मी भ्रष्टाचार या अनियमितता की तमाम सीमाएँ
बेशर्मी से लाँघे हैं और दुनियादारी की निगाह से वे दफ्तर में
मेहनती कर्मचारी और घर में जिम्मेदार पिता और जिम्मेदार पति
सिद्ध होते रहते हैं। |