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८. ११. २०१०

सप्ताह का विचार- बच्चे को बोलना सीखने में केवल दो वर्ष लगते हें पर क्या बोलना हे यह सीखने में सारा जीवन लग जाता है। -- स्वामी शिवानंद

अनुभूति में-
विभिन्न कवियों द्वारा रचित बयालीस रोचक और ज्ञानवर्धक बालगीतों से सजा बालदिवस विशेषांक।

सामयिकी में- विश्व में आज भी जारी गुलाम प्रथा का आकलन करता फिरदौस खान का लेख- गुलाम प्रथा- दुनिया की हाट में बिकते इनसान

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव- एक बड़े चम्मच शहद में दो बड़े चम्मच क्रीम मिलाकर मालिश करने से त्वचा खुश्क नहीं होती।

पुनर्पाठ में- साहित्य संगम के अंतर्गत १ मई २००५ को प्रकाशित मीना काकोडकर की कोंकणी कहानी का हिंदी रूपांतर ओ रे चिरुंगन मेरे

क्या आप जानते हैं? भारत की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील कश्मीर में (वुलर झील) और खारे पानी की सबसे बड़ी झील चिल्का, उड़ीसा में है।

नवगीत-की-पाठशाला-में- कार्यशाला-११ में मन की महक बिखरना जारी है। रचनाओं का आनंद लें और टिप्पणियों से कवियों को उत्साहित करें। आगे पढ़ें...

वर्ग पहेली
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल-और-----
----
रश्मि
-आशीष-के-सहयोग-से


हास परिहास


सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
बाल दिवस के अवसर पर
प्रताप नारायण सिंह की कहानी गोपाल

नदी का कछार। किनारे से दस फर्लांग ऊपर दो चर्मकर्मी नदी में बहकर आए मरे हुए बैल का चमड़ा निकाल रहे थे। उनके पास ही बैठकर गोपाल उन्हे काम करता हुआ देख रहा था। सुबह के लगभग दस बज रहे होंगे।
"का रे गोपला ! इहाँ आकर बैठा है?" दस कदम दूर से ही चन्दू चीखते हुए गोपाल की ओर झपटे। आवाज सुनते ही गोपाल स्प्रिंग की तरह उठ खड़ा हुआ और पनपनाकर भागा। चन्दू उसके पीछे दौड़े और चालीस-पचास कदम की दौड़ के बाद उसे दबोच लिया। ग्यारह साल के गोपाल के कदम, बीस साल के बड़े भाई के कदमों को नहीं छका सके। पकड़ते ही लात-घूसों से पीटना शुरु कर दिया- ’उहाँ चच्चा दो घन्टा तक जोह कर चले गए और तू भागकर हियाँ सिवान में मटरगस्ती कर रहा है।" चन्दू लगातार पीटते हुए गोपाल को घर ले जाने लगे, "सुबह से खोज खोज कर हलकान हो गए हैं सब लोग..."  
पूरी कहानी पढ़ें...
*

शशिप्रभा शास्त्री की लघुकथा-
शुरुआत
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विनोदचंद्र पांडेय का आलेख-
बाल साहित्य संरचना- ध्यान देने योग्य बातें
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अखिलेश श्रीवास्तव चमन का आलेख-
हिंदी बाल साहित्य का इतिहास
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फुलवारी में-
बच्चों की कहानियाँ

पिछले सप्ताह
दीपावली विशेषांक में

नरेंद्र कोहली का व्यंग्य-
अड़ी हुई टाँग
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कुमार रवींद्र का आलेख-
तुलसी के राम की मर्यादा और उनका राज्यादर्
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शशि पाधा का संस्मरण-
एक नदी एक पुल
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रमेश तिवारी 'विराम का ललित निबंध
ज्योतिपर्व की जय

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कालजयी कहानियों में
भीष्म साहनी की रचना- ओ हरामजादे

घुमक्कड़ी के दिनों में मुझे खुद मालूम न होता कि कब किस घाट जा लगूँगा। कभी भूमध्य सागर के तट पर भूली बिसरी किसी सभ्यता के खण्डहर देख रहा होता, तो कभी युरोप के किसी नगर की जनाकीर्ण सड़कों पर घूम रहा होता। दुनिया बड़ी विचित्र पर साथ ही अबोध और अगम्य लगती, जान पड़ता जैसे मेरी ही तरह वह भी बिना किसी धुरे के निरुद्देश्य घूम रही है।
ऐसे ही एक बार मैं यूरोप के एक दूरवर्ती इलाके में जा पहुँचा था। एक दिन दोपहर के वक्त होटल के कमरे में से निकल कर मैं खाड़ी के किनारे बैंच पर बैठा आती जाती नावों को देख रहा था, जब मेरे पास से गुजरते हुए अधेड़ उम्र की एक महिला ठिठक कर खड़ी हो गई। 
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