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१८. १०. २०१०

सप्ताह का विचार- तर्क से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सकता। मूर्ख लोग तर्क करते हैं, जबकि बुद्धिमान विचार करते हैं। -श्री परमहंस योगानंद

अनुभूति में-
डॉ. राधेश्याम शुक्ल, देवेंद्र शर्मा इंद्र, ज़क़िया ज़ुबैरी, महेश नारायण और संजय कुमार की रचनाएँ।

सामयिकी में- वृद्धों की बढ़ती जनसंख्या और युवकों की व्यस्तताओं के बीच रास्ता खोजता विद्याभूषण अरोड़ा का लेख वरिष्‍ठ नागरिकों की देखरेख...

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव- त्वचा का रूखापन दूर करने के लिये जैतून-का-तेल, दूध और शहद मिलाकर चेहरे पर लगाएँ और गुनगुने पानी से धो दे।

पुनर्पाठ में- विशिष्ट कहानियों के स्तंभ गौरव गाथा के अंतर्गत १ जनवरी २००२ को प्रकाशित सैय्यद इंशा अल्ला खाँ की 'रानी केतकी की कहानी'।

क्या आप जानते हैं? हीरों के सबसे बड़े उपभोक्ता देशों में भारत तीसरे स्थान पर है। पहले व दूसरे स्थान पर क्रमशः अमेरिका और जापान हैं।

शुक्रवार चौपाल- आज का दिन कहानियों का दिन था। सबसे पहले प्रकाश और अमीर पहुँचे। थोड़ी ही देर बाद डॉ लता, सुमित, सुनील और ऊष्मा... आगे पढ़े

नवगीत की पाठशाला में- इस सप्ताह कार्यशाला- १० के पूरा होते ही कार्यशाला- ११ के नवगीतों का प्रकाशन शुरू हो जाने वाला है। आगे पढ़ें...


हास परिहास


सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में यू.एस.ए से
इला प्रसाद की कहानी एक अधूरी प्रेमक
था

मन घूमता है बार-बार उन्हीं खंडहर हो गए मकानों में, रोता-तड़पता, शिकायतें करता, सूने-टूटे कोनों में ठहरता, पैबन्द लगाने की कोशिशें करता... मैं टुकड़ा-टुकड़ा जोड़ती हूँ लेकिन कोई ताजमहल नहीं बनता!

ये पंक्तियाँ मेरी नहीं, निमिषा की हैं। मैने जब पहली बार उसकी डायरी के पन्ने पर ये पंक्तियाँ पढ़ीं तो चकित रह गई थी। यह लड़की इतना सुन्दर लिख सकती है! उसका उत्साह और बढ़ा था, उसने कुछ और पन्ने चुन- चुन कर मुझे पढ़ाए थे।
हम तो डूबने चले थे मगरसागरों में ही अब गहराइयाँ नहीं रहीं!

"कैसे लिख लेती हो तुम ऐसा?" मैने प्रशंसा की थी। उसने कुछ शरमा कर अपनी डायरी बंद कर दी थी। लेकिन तब मैं बिल्कुल नहीं सोच पाई थी कि किस सन्दर्भ-में-ये-पंक्तियाँ-उसके मन में उपजी होंगीं!
पूरी कहानी पढ़ें...
*

हरि जोशी का व्यंग्य
कार्यालयों की गति
*

रश्मि सिंह का आलेख
माउसलेस- एक अदृश्य कंप्यूटर माउस

*

देवेंद्र चौबे की कलम से-
मुक्तछंद के प्रथम कवि महेश नारायण
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पर्यटक के साथ करें
बात बर्लिन की

पिछले सप्ताह
 

रामवृक्ष सिंह का व्यंग्य
आक्टोपस बाबा पधारो म्हारे देस
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गौतम सचदेव का ललित निबंध
बिल्ली और छींका
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डॉ. शिवकुमार माथुर का आलेख
मालवा का लोक नाट्य- माच
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विजयदशमी के अवसर पर विशेष-
मैसूर का दशहरा

*

समकालीन कहानियों में यू.एस.ए से
प्रतिभा सक्सेना की कहानी स्वीकारोक्ति

ट्रेन का सफ़र कभी-कभी बड़ा यादगार बन जाता है। मुझे बहुत यात्राएँ करनी पड़ी हैं और अधिकतर अकेले ही। पति अधिकतर टूर पर और फिर उन्हें इतनी छुट्टी भी कहाँ। उस दिन भी विषय-विशेषज्ञ बन कर एक मीटिंग में जा रही थी। पहले ही पता कर लिया था जिस कूपे में मेरा रिज़र्वेशन है उसमें एक महिला और हैं। मुझे सी ऑफ़ कर ये चले गए। वे महिला समवयस्का निकलीं। चलो, अच्छी कट जाएगी!
बातें शुरू -
'आप कहाँ जा रही हैं।'
'इंदौर, और आप?'
'हमें तो उज्जैन तक जाना है, आप भी अकेली हैं?'
'हाँ अकेली ही, अक्सर जाना-आना पड़ा है, आदत-सी हो गई है।' पूरी कहानी पढ़ें...

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