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पर्यटन

बात बर्लिन की
- पर्यटक


स्प्री नदी के तट पर ट्रेप टावर के सामने मालिक्यूल मैन


बर्लिन एक ऐसा शहर है जिसके कण-कण में ऐतिहासिक परिदृष्य छिपे हुए हैं। शहर की ऐसी विलक्षणता ही पर्यटक को भ्रमण के लिये सहज आकर्षित कर लेती है। बर्लिन विश्व संस्कृति का प्रमुख केन्द्र है। विमान से बर्लिन के लिये उड़ते समय मन रोमान्च से भरा हुआ था। शायद इसके पृष्ठ में घुमक्कड़ मन में जर्मनी को देखने की तीव्र उत्कंठा का अंकुरित होता बीज था। विमान के निकलते ही मन में नवीन उल्लास की अनुभूति होने लगी।

मूलत: बर्लिन स्प्री नदी के तट पर बसाया गया था। यही छोटी सी बस्ती आज विकास की बुलंदियों को छूता हुआ जर्मनी का सबसे बड़ा शहर बर्लिन है। आज वहाँ की जनसंख्या लगभग ३५ लाख है। बर्लिन विलक्षण एवं असाधारण ढ़ंग से पूर्णाकृति लेता हुआ २१ वी शताब्दी में जर्मनी की राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है, जिसके अन्तरमन में धब्बे के सदृश कुख्यात दीवार तथा निर्जन भूपरिदृश्य नवीन रूप धारण कर चुके हैं।
विश्व की सबसे खतरनाक राजनीतिक त्रुटि के प्रतीक बंकर और भू खदाने जो अतीत की कालिमा के द्योतक थे, की जगह अब ऊँची गगनचुम्बी इमारतों की चमचमाती मंजूषाएं स्थापित है। स्थापत्य की दृष्टि से अदभुत इन इमारतों की संरचना यहाँ के सुप्रसिद्ध स्थापत्य विद फिलिप्स जानसन, रेन्जोपियानो और नारमन फास्टर ने की है। बर्लिन भ्रमण अत्यंत सरल है। दीवार और उसके अवशिष्ट अंशों में सोवियत सैनिकों की क्रूरता की स्पष्ट छाप देखने को मिलती है।

पोटस्डेमर प्लाज बर्लिन का ऐतिहासिक केन्द्रीय बिन्दु है जो आधुनिक सुविधा सम्पन्न होटल एवं रेस्ट्रां से युक्त है। यह द्वितीय विश्व युद्ध में पूर्णतय: क्षतिग्रस्त एवं दीवार से विभक्त हो गया था। आज इसका पुर्ननिर्माण कार्य प्रगतिपर है। बहुसंख्यक कार्यालयों, घरों, दुकानों तथा सांस्कृतिक संस्थानों का निर्माण चल रहा है तथा कुछ बन कर तैयार भी हो चुके हैं। सोनी कम्पनी का नया यूरोपियन मुख्यालय 'सोनी सेन्टर' स्थापत्यकला की अनूठी कृति है।

पोटस्डेमर प्लाज के निकट टूरिस्ट बस से निर्माणाधीन बर्लिन के बदलते स्वरूप का एक दृष्यशहर में अव्यवस्थित रूप से फैले हुये बेतरतीब भूखण्डों पर लगातार हो रही संरचनायें नियमित पर्यटकों के मध्य आश्चर्य का भाव भर देती है। रूढिवादी संघीय प्रभाव समाप्त होता हुआ दिखता है जिसमें से प्राचीन सांस्कृतिक विरासत के ऊपर विकासशील नया रूप पल्लवित हो रहा है।

जर्मनों के अन्दर बर्लिन को यूरोप में अद्वितीय बनाने की महत्वाकांक्षा कूट-कूट कर भरी हुई है। आत्मसम्मान की भावना जर्मर्नों का नैसर्गिक गुण है। जर्मन लोग लगन के पक्के और सहिष्णु होते हैं। आज भी बर्लिन नये अनुभवों और खोजों में सक्रिय है, जिसकी झलक कलाविथिकाओं, संगीत समारोहों एवं रंगशालाओं में देखी जा सकती है।

मैंने टूरिस्ट बस से शहर देखने के लिये टिकट ले रखा थी। बस से जाने वाले हम तीस पैंतीस पर्यटक थे। यात्रा से पूर्व गाइड ने सबको होटल लाउंज में एक साथ बैठ कर बर्लिन का संक्षिप्त परिचय दिया जिससे शहर देखते समय कोई असुविधा न रहे। गाइड ने जर्मन, फ्रेंच और अंग्रेजी तीनों भाषाओं में पर्यटकों को समझाया। उसके बोलने का लहजा ऐसा था मानो जैसे कोई रिकार्ड बज रहा हो।

लगभग १ बजे बस चल पड़ी। बस की छत और चारो तरफ की खिड़कियां शीशे की थी जिससे सभी दृश्यों का अवलोकन चलती हुई बस से भी किया जा सकता था। साथ-साथ बीच-बीच में गाइड माइक से हमें जानकारी भी देता जा रहा था। टापर गार्डन बड़े उद्यान से हमारी बस धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी।

इस बगीचे के बीच से १७ जनवरी नाम की एक सड़क जाती है। उद्यान में ही अनेकों दुर्लभ पशु पक्षियों को देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ। थोड़ी देर हम लोग रूके। इसके बाद हम लोगों का काफिला दूसरे संग्रहालय की दुर्लभ कृतियों को देखने पहुँचा। इजिप्शियन संग्रहालय की एक अमूल्य निधि है प्राचीन मिस्र की महारानी नेफ्रीतीती के मस्तक की प्रति मूर्ति। तीन साढे तीन हजार वर्ष पूर्व में यह कलापूर्ण प्रतिमा बनाई गई थी। आज तक इतनी सजीव प्रस्तर मूर्ति देखने को नहीं मिली।

टवेल नदी के किनारे किनारे ग्रेनवाल के राजपथ से बढ़ती हुई हमारी बस ओलम्पिक स्टेडियम पहुँच गई। १९३६ के विश्व खेल प्रतियोगिताओं के लिये इसका निर्माण हुआ था। इस स्टेडियम में लाखों दर्शकों के बैठने का स्थान है तथा यह स्थान रेस्ट्रां, विश्राम कक्ष, पुस्तकालय, वाचनालय जैसी अनेकों सुविधओं से युक्त है।

दोपहर हो गई थी, भोजन के लिये हमें अपने होटल वापस आना पड़ा। खाना खा के थोड़ी देर बाद हम लोग उसी बससे पुन: भ्रमण के लिये निकल पड़े। लगभग तीन बजे हम यहाँ का विजय स्तम्भ देखने पहुँचे। २१० फुट ऊँचा यह स्तम्भ १८७० में फ्रान्स पर जर्मनी की विजय के स्मृति में बनाया गया था। सर्पीली सीढ़ियों वाले इस स्तंभ के ऊपर से समूचा बर्लिन हमारी आँखों में कैद हो रहा था।

रेचसटैग किसी भी भ्रमण का केन्द्र बिन्दु है, जर्मन संसद को मूर्तरूप में देखने के लिये दर्शक दीर्घा में अपना स्थान सुरक्षित करा लेना ज्यादा सुविधाजनक होता है। जर्मनी के रेचसटैग जैसी कोई दूसरी इमारत नहीं है जिसने अनेकों राजनीतिक और संरचनागता सुधारों को देखा हो। अपने १०० वर्षों के इतिहास में अनेकों बार विध्वंस और पुर्ननिर्माण के दौर से गुजरी आज यह जर्मन संसद के रूप में प्रतिष्ठित है। इमारत के वर्तमान ग्लास गुम्बद, जो संसदीय कक्ष के ऊपर बना हुआ है, की संरचना सुप्रसिद्ध स्थापत्य बिद नारमन फास्टर की अगुवाई में हुई।

यह विलक्षण गुम्बद जर्मन लोकतन्त्र की पारदर्शिता के प्रतीकशास्त्र की तरह अडिग हैं। डोम तक पहुँचने के लिये सर्पाकार सीढ़ियाँ है, जहा से पर्यटक नीचे संसद के सदस्यों को देखते हुये शहर का नज़ारा भी कर सकते हैं। उसके विस्तृत टैरेस पर आनन्ददायी रेस्ट्रां में खाते हुये बर्लिन के उत्कृष्ट परिदृष्य का अवलोकन भी किया जा सकता है। पूर्ण संसद दीवार से जुड़ी है और टेरेस से वही दृश्य साफ झलकता है।

यहाँ से निकलने के बाद चक्करदार रास्ते से मैं फ्लो बाजार पहुँच गया। यहाँ अबतक सोवियत सैनिकों की वर्दी और मेडल मिल सकते हैं। जिसे सैनिकों ने जाते समय छोड़ दिया था। यहीं से आप ब्रान्डेनबर्ग गेट की ओर भी जा सकते हैं। सड़क के पार नाजी तानाशाही हिटलर के बंकर का अवशेष देखा जा सकता है, जिसे नाजी समाधि के रूप में भी जाना जाता है।

थोड़ा आगे बढ़ने पर पूर्व दीवार से जुड़ा हुआ मार्टिन ग्रोविअर्स नामक इमारत है, जो अब एक कला संग्रहालय के रूप में स्थापित हो गई है जो युद्ध के समय यह गेस्टापो का मुख्यालय था। संग्रहालय के पीछे है गेस्टपो का द्रुतशीतल यन्त्रणा कक्ष जिसे "आतंक की स्थलाकृति" के रूप में जाना जाता है। वास्तव में इस महाद्वीप पर अपने सुनहरे एवं अद्वितीय भविष्य की महत्वाकांक्षा के लिये जितना उत्साह एवं उत्तेजना बर्लिन में है उतना अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। प्राचीन समय से यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल रहा है। इसके कण कण में इतिहास का कलेवर अक्षरश:चढ़ा हुआ है।

पाँच बार जर्मनी द्वारा पेरिस को अधिग्रहीत किया गया। ऐसी लोलुपता के उदाहरण से इतिहास के पन्ने रंगे हुये हैं। किन्तु मैंने अनुभव किया कि आधुनिक जर्मन वासियों में विस्तारवादी विघटनात्मक, एवं विध्वंसक नीति से सबक लेकर शान्ति तथा सदभावना के विकास के प्रति झुकाव बढ़ा है।

पेरागमन का विशालकाय प्रांगणबर्लिन में संग्रहालयों की प्रचुरता है। पेरागमन संग्रहालय के अन्दर पुराकालिक असाधारण कलात्मक वस्तुयें संरक्षित है। यह यहाँ का प्रतिष्ठित संग्रहालय है जहाँ लगभग ६ लाख पर्यटक प्रतिवर्ष भ्रमण करते हैं। इस की गणना राज्य संग्रहालय के रूप में होती है। इस संग्रहालय में ही इस्लामिक कला एवं पूर्वी कला का भी अनूठा संग्रह किया गया है। दिन में जहाँ शहर के भ्रमण का आनंद लिया जा सकता है वही शाम को मोजार्ट, महलेर के भावोद्दीपक संगीत की मधुर व गम्भीर स्वर लहरी का रसास्वादन किया जा सकता है जिसे बर्लिन के संगीत प्रेमियों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।

बोख मोजार्ट, स्टाडस और महलें पाश्चात्य संगीत के चमकते सितारे हैं। वे सभी जर्मन हैं। इनकी संगीत लहरियों को सुनकर केवल यूरोप ही नही अपितु सुदूर अमेरिका, आस्ट्रेलिया तथा विश्व के अन्य देशों में भी मुरझाये मन से नई लहर उठने लगाती है। विश्व के प्रसिद्ध आर्केस्ट्रा भी यही हैं।

आजकल विदेशी पर्यटकों के बहुतायत आवागमन से बर्लिन में विश्व की सबसे शानदार पाक-प्रणाली विकसित हो चुकी है जिसको यहाँ के निवासियों ने भी अपना लिया है। आज बर्लिन को बहुसांस्कृतिक पाकविद्या का स्वर्ग कहा जाता है। यहाँ टर्किश, इटैलियन, थाई और भारतीय रेस्त्राओं का आधिक्य है। बर्लिन में २००० है ज्यादा इटालियन रेस्ट्रां हैं। यह सब देखते हुए रात में काफी देर से होटल लौट पाया। सड़के रंग बिरंगे प्रकाश से चमक रही थी। चहल-पहल, आजादी तथा बेफिक्री से घूमते हुये युवकों और युवतियों के समूह अपनी धुन में मस्त थे। बर्लिनवासियों के आत्मगौरव और शहरी जीवन के पुर्नरूत्थान से उनका शहर विश्व के प्रमुख राजस्थानी के रूप प्रतिबिंबित होता है।

आज बर्लिन भूत और भविष्य के सम्मिश्रण का मोहक स्थल है। सच पूछिये तो बर्लिन की बात ही निराली है।

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