वृद्धों की बढ़ती जनसंख्या और युवकों की व्यस्तताओं के बीच
रास्ता खोजता विद्याभूषण अरोड़ा का लेख...
वरिष्ठ नागरिकों की देखरेख
हम एक
ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जहाँ वृद्ध लोगों की
संख्या बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ वर्षों से दुनिया
की आबादी में उच्च जन्म दर एवं उच्च मृत्यु
दर के स्थान पर अब निम्न जन्म दर एवं निम्न
मृत्यु दर की प्रवृत्ति देखी जा रही है जिसका परिणाम
वृद्धजनों की संख्या और अनुपात में बहुत वृद्धि के
रूप में सामने आया है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
के अनुसार सभ्यता के इतिहास में ऐसी तीव्र, विशाल और
सर्वव्यापी वृद्धि पहले कभी नहीं देखी गई। विश्व
स्वास्थ्य संगठन ने अनुमान व्यक्त किया है कि
दुनिया भर में ६० वर्ष की उम्र के लगभग ६० करोड़
व्यक्ति हैं तथा २०१५ तक यह संख्या दुगुनी हो जाएगी
और २०५० तक ६० वर्ष के व्यक्तियों की संख्या दो अरब
तक हो जाने की संभावना है। इनमें से अधिकतर लोग
विकासशील जगत के होंगे। संयुक्त राष्ट्र सचिवालय,
आर्थिक एवं सामाजिक विभाग के जनसंख्या प्रभाग की
भविष्यवाणी है कि वर्तमान जनसांख्यिकीय क्रांति आने
वाली सदियों तक जारी रह सकती है। इस क्रांति की प्रमुख
विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
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इस समय हर दस व्यक्तियों में से एक व्यक्ति ६०
वर्ष या उससे अधिक उम्र का है, वर्ष २०५० तक हर
पाँच में से एक व्यक्ति ६० वर्ष या उससे अधिक
उम्र का हो जाएगा और २१५० तक हर तीन व्यक्तियों
में से एक ६० वर्ष या उससे अधिक उम्र का होगा।
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इसी प्रकार वृद्ध आबादी और भी बूढ़ी होती जा रही
है। वृद्धों की आबादी में सबसे बूढ़े (८० वर्ष या
उससे अधिक) व्यक्तियों का वर्ग बड़ी तेजी से
बढ़ता जा रहा है।
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वर्तमान में ६० से अधिक आयु वर्ग का अनुपात
१३ प्रतिशत है, २०५० तक यह बढ़कर २० प्रतिशत हो
जाएगी।
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२००५ में शतायु (१०० वर्ष या उससे अधिक उम्र)
व्यक्तियों की संख्या २६५,००० हो जो २०५०
तक १४ गुणा वृद्धि होकर, ३७ लाख होने की संभावना
है।
इस
प्रकार के जनसांख्यिकीय आँकड़े, नति-निर्धारण के लिये नए सिरे से विचार की आवश्यकता पर बल देते हैं ताकि
वैज्ञानिकों को इन बदलती परिस्थितियों के अनुरूप तैयार
किया जा सके जहाँ न केवल वृद्धजनों की देखरेख
महत्त्वपूर्ण हो बल्कि वरिष्ठ नागरिकों की क्षमताओं
का पूरी तरह प्रयोग करने के तरीके तलाशने पर भी बराबर
बल दिया जाए। शायद वह समय आ गया है जब हमें वृद्ध
नागरिकों के बारे में अपने दृष्टिकोण में बदलाव करना
बहुत आवश्यक हो गया है। इसके अतिरिक्त उनकी
प्रत्यक्ष सीमाओं के बारे में अपनी धारणाओं में भी
बदलाव करने का समय आ गया है। वैज्ञानिकों को वृद्धजनों
के अनुभव और निष्क्रिय क्षमताओं का लाभ उठाना सीखना
चाहिए तथा इस नई
चुनौती का सामना करने के लिए वर्तमान ढाँचे में
आवश्यक बदलाव भी करने चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र के दस्तावेज़ "वृद्ध समाज के
निहितार्थ" के खंड "नीतिगत विमर्श में" टिप्पणी की गई
है – “वृद्ध नागरिकों के योगदान को समाज द्वारा
स्वीकार करना महत्त्वपूर्ण है तथा यह उनकी विशेष
योग्यता के प्रति सम्मान को प्रकट करता है। ज्ञान और
बुद्धि अकसर आयु बढ़ने के साथ-साथ बढ़ते हैं। वह
आंतरिक जागरूकता का हिस्सा है जिसका व्यापार नहीं
किया जा सकता, जिसे बेचा नहीं जा सकता या चुराया नहीं
जा सकता। लेकिन समाज के हर क्षेत्र में हमारी
सृजनात्मक क्षमता बढ़ाने के लिए इसका सक्रिय और
विस्तृत इस्तेमाल किया जाना चाहिए।”
हर साल पहली अक्तूबर का दिन दुनिया भर में
अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाया जाता
है। संयुक्त राष्ट्र ने वृद्ध व्यक्तियों के लिए
संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय दिवस के लिए कुछ
उद्देश्य निर्धारित किए हैं जिनमें संयुक्त राष्ट्र
में वैश्विक वृद्ध कार्यक्रम और कार्यनीतियों की
वर्तमान अवस्था से निपटना, वृद्धावस्था के संदर्भ
में सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों की समीक्षा करना तथा
ऐसी नई परियोजनाओं को खोजना शामिल है जो वृद्धावस्था
के बारे में वैश्विक कार्यसूची को आगे बढ़ा रहे हैं।
यह प्रलेख (दस्तावेज) संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों
में वृद्धावस्था को और व्यापक रूप में शामिल करने की
आवश्यकता पर बल
देता है।
भारत में वृद्धजनों की आबादी
हमारे देश में वृद्ध लोगों की आबादी स्थायी रूप से
बढ़ती जा रही है तथा सामान्य आबादी की तुलना में इसका
अधिक तेजी से बढ़ने का अनुमान है। इसके २०११ तक लगभग
१० करोड़, २०१६ तक १२ करोड़ और २०२६ तक १७ करोड़ से
अधिक हो जाने का अनुमान है।
२००१ की जनगणना के अनुसार वरिष्ठ नागरिकों की कुल
आबादी ७ करोड़ ७० लाख थी जिसमें से पुरुषों की आबादी ३
करोड़ ८० लाख और महिलाओं की आबादी ३ करोड़ ९० लाख थी।
कुल आबादी में वरिष्ठ नागरिकों का औसत ७.५ प्रतिशत
है। हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा,
ओड़ीशा, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, गोवा,
केरल, तमिलनाडु और पांडिचेरी में वरिष्ठ नागरिकों की
संख्या, राष्ट्रीय औसत (७.५ प्रतिशत) से अधिक है।
वर्ष १९९१ में कुल आबादी के ६.८ प्रतिशत लोगों की आयु
६० वर्ष या उससे अधिक थी। यह संख्या २०२६ में १२.४
प्रतिशत होने का अनुमान है। पिछले कुछ वर्षों से
स्वास्थ्य देखरेख सुविधाओं में सुधार भारत में
वरिष्ठ नागरिकों की आबादी का अनुपात निरंतर बढ़ने का
मुख्य कारण है। वे न केवल लम्बा जीवन जिएँ बल्कि
सुरक्षित, प्रतिष्ठित और उत्पादक जीवन जिएँ यह
सुनिश्चित करना एक प्रमुख चुनौती है। वरिष्ठ नागरिकों
की कुछ मुख्य समस्याओं में सुरक्षा,
स्वास्थ्य देखरेख एवं
रखरखाव की ज़रूरत शामिल हैं जिन पर स्थायी रूप से
ध्यान देने की ज़रूरत है।
राष्ट्रीय वृद्धजन नीति १९९९
संशोधनाधीन
भारत सरकार ने वृद्धजनों
का कल्याण सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को और
पुष्ट करने के लिए जनवरी, १९९९ में पहली राष्ट्रीय
वृद्धजन नीति की घोषणा की थी। इस नीति में वृद्धजनों
की वित्तीय एवं खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य देखरेख,
आवास तथा अन्य ज़रूरतें, विकास में बराबर की
हिस्सेदारी, दुर्व्यवहार एवं शोषण से सुरक्षा तथा
उनके जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए सेवाओं की
उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए राज्य की सहायता पर
बल दिया गया है।
इस नीति की घोषणा को दस वर्ष हो चुके हैं। देश में
वरिष्ठ नागरिकों की बदलती जनांकिकी के मद्देनज़र
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने जनवरी २०१०
में समिति गठित की। सामान्य तौर पर वरिष्ठ नागरिकों
संबंधी विविध मसलों की वर्तमान स्थिति तथा विशेष रूप
से राष्ट्रीय वृद्धजन नीति, १९९९ के कार्यान्वयन का
आकलन करने के लिए यह समिति गठित की गई है। समिति नई
राष्ट्रीय वृद्धजन नीति के लिए मसौदे पर कार्य कर रही
है। समीक्षा समिति की अब तक चंडीगढ़, चेन्नई,
मुम्बई, गुवाहाटी और भुबनेश्वर में पाँच बैठक तथा
पाँच क्षेत्रीय बैठक हो चुकी हैं। आशा है कि समीक्षा
समिति दिसम्बर के आखिर तक अपनी सिफारिशें सौंप देगी।
माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का अनुरक्षण एवं
कल्याण अधिनियम, २००७
माता-पिता एवं वरिष्ठ
नागरिकों के लिए ज़रूरत आधारित अनुरक्षण तथा उनका
कल्याण सुनिश्चित करने के लिए दिसम्बर २००७ में
माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का अनुरक्षण एवं
कल्याण अधिनियम, २००७ बनाया गया। यह अधिनियम अन्य
बातों के साथ, न्यायाधिकरणों के जरिए बाध्यकारी एवं
न्यायोचित बनाकर बच्चों/रिश्तेदारों द्वारा
माता-पिता/वरिष्ठ नागरिकों का अनुरक्षण, रिश्तेदारों
द्वारा अनदेखी के मामले में वरिष्ठ नागरिकों द्वारा
संपत्ति के अंतरण के निरसन, वरिष्ठ नागरिकों के
परित्याग के लिए जुर्माने के प्रावधान तथा वरिष्ठ
नागरिकों के जीवन एवं संपत्ति की सुरक्षा जैसा संरक्षण
उपलब्ध कराता है।
यह अधिनियम अलग-अलग राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश
सरकार द्वारा अधिसूचना के जरिए राज्य में प्रभावी
होता है। फिलहाल यह अधिनियम २२ राज्यों और सभी
केन्द्र शासित प्रदेशों में अधिसूचित हो गया है। इस
अधिनियम को अधिसूचित करने वाले राज्यों को अधिनियम के
विविध प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए और
उपाय करने की भी ज़रूरत है। इन उपायों में नियम बनाना,
अनुरक्षण अधिकारी नियुक्त करना और अनुरक्षण एवं अपील
न्यायाधिकरण इत्यादि
गठित करना शामिल है।
अब तक, नौ राज्यों छत्तीसगढ़, गुजरात, केरल, मध्य
प्रदेश, ओड़ीशा, तमिलनाडु, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल
ने उल्लेखित सभी आवश्यक कदम उठाए हैं। केन्द्र
सरकार इस संबंध में जल्दी से जल्दी आवश्यक कार्रवाई
करने के लिए शेष राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को
निरंतर स्मरण करा रही है।
एकीकृत
वृद्धजन कार्यक्रम
मंत्रालय १९९२ से एकीकृत
वृद्धजन कार्यक्रम नामक केन्द्रीय क्षेत्र की योजना
कार्यान्वित कर रहा है। इस योजना का उद्देश्य वरिष्ठ
नागरिकों की बुनियादी ज़रूरतें, विशेष रूप से आवास,
भोजन एवं अभावग्रस्त वृद्धजनों की स्वास्थ्य
देखरेख जैसी आवश्यकता पूरी करके उनके जीवन स्तर में
सुधार करना है। इस योजना के तहत, वृद्धाश्रम, डे केयर
केन्द्र और सचल चिकित्सा इकाई चलाने एवं उनके
अनुरक्षण के लिए स्वयं सेवी संगठनों को परियोजना लागत
की ९० प्रतिशत तक सहायता उपलब्ध कराई जाती है। वर्ष
२००९-१० के दौरान, ३४५ वृद्धाश्रम, १८४ डे केयर
केन्द्र और २७ सचल चिकित्सा इकाई चलाने के लिए इस
योजना के तहत ३६० स्वयं सेवी संगठनों की सहायता की
गई। औसतन लगभग ३५,००० लाभार्थी हर साल इस योजना के
दायरे में लाए जा रहे हैं। |