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१६. ८. २०१

सप्ताह का विचार- बुद्धि के सिवाय विचार प्रचार का कोई दूसरा शस्त्र नहीं है, क्योंकि ज्ञान ही अन्याय को मिटा सकता है।- शंकराचार्य

अनुभूति में-
विजयकिशोर मानव, राजेन्द्र पासवान घायल, प्रयाग शुक्ल, सुषमा भंडारी और रवींद्र मोहन दयाल की  रचनाएँ।

कलम गहौं नहिं हाथ- इस सप्ताह स्वतंत्रता दिवस के शुभ दिन अभिव्यक्ति अपने जीवन के दस वर्ष पूरे करेगी। इसका पहला अंक १५ अगस्त...आगे पढ़ें

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव- सुंदर चेहरे के लिये बदाम, गुलाब के फूल, चिरौंजी और पिसा जायफल रात को दूध में भिगोएँ और सुबह पीसकर मुख पर लगाएँ।

पुनर्पाठ में- विशिष्ट कहानियों के स्तंभ गौरव गाथा के अंतर्गत १ जुलाई २००२ को प्रकाशित गजानन माधव मुक्तिबोध की कहानी - 'ब्रह्मराक्षस का शिष्य'

क्या आप जानते हैं? कुंग फू के जनक तत्मोह या बोधिधर्म नामक एक भारतीय बौद्ध भिक्षु थे जो ५०० ईस्वी के आसपास भारत से चीन गए।

शुक्रवार चौपाल- समय था वर्षिकोत्सव के बाद वाले शुक्रवार का और सबके चेहरों पर उत्सव की सफलता स्पष्ट दिखाई दे रही थी। आगे पढ़ें...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-१० के विषय- मेघ बजे पर रचना भेजने की अंतिम तिथि बीत चुकी है। नई रचनाओं का प्रकाशन शीघ्र प्रारंभ हो जाएगा।


हास परिहास


सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में भारत से
सुकेश साहनी की कहानी पुल

फैजाबाद की ओर जाने वाली किसान एक्सप्रेस रद्द थी। इसके बावजूद इलाहाबाद पैसेंजर में, जिसे हम प्यार से लढ़िया कहते थे, अधिक भीड़ नहीं थी। घर से चलते समय हमें इस बात का कतई अनुमान नहीं था कि राजनीतिक हो–हल्ले का इतना अधिक असर दिखाई देगा। बहुत से लोगों ने आज एहतियातन अपनी यात्राएँ स्थगित रखी थीं। हमारे डिब्बे में डेली पैसेंजर अधिक थे। माहौल भी रोज जैसा ही था। कुछ पैसेंजर ऊपर वाली सीट पर चढ़कर सो गए थे, कुछ अखबार पढ़ रहे थे और कुछ ताश में मशगूल थे। प्रभात अपनी आदत के मुताबिक किसी पत्रिका के पन्नों में डूबे हुए थे। डेली पैसेंजरी के मामले में वे मेरे गुरु थे। उन्हें इस रूट पर चलते हुए दस वर्ष हो गए थे ;जबकि मेरा यह तीसरा साल था। उनके गम्भीर स्वभाव के चलते सभी उनका सम्मान करते थे और प्रभात भाई कहकर पुकारते थे। ...पूरी कहानी पढ़ें।
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बलराम अग्रवाल की लघुकथा
गुलमोहर
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तुलसी जयंती के अवसर पर
संकलित आलेख- हुलसी के तुलसी
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मजीद अहमद का निबंध
तुलसीदास की प्रथम रचना- राम लला नहछू

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डॉ.अनुराग विजयवर्गीय से जानें
तुलसी का महत्त्व

पिछले सप्ताह
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर

सचिन खरे का प्रेरक प्रसंग
भारतमाता का घर
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डॉ. बसंतीलाल बाबेल से जानकारी
हमारा संसद भवन
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गोपीचंद श्रीनागर का निबंध
डाकटिकटों में अशोक स्तंभ

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राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह का आलेख
वंदे मातरम की रचना

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समकालीन कहानियों में भारत से शुभदा मिश्र की कहानी मुक्ति पर्व

फँस गईं दीदी आप ...' सामने वाली पड़ोसिन अपने फाटक पर दोनों कुहनियाँ टिकाए, हथेलियों में चेहरा रखे विगलित दृष्टि से उन्‍हें देखती कह रही थीं।  जा रही थीं सामने सड़क पर, थकी-हारी क्‍लांत। एक हाथ में दवाइयों का पैकेट लिए और साथ ही साड़ी का पायचा उठाए, दूसरे हाथ में गर्म पानी की बोतल और छाता लिए। इधर दो दिन से लगातार बारिश हो रही थी। बुरी तरह फँसा दिया गया इन्‍हें तो...' अगले दरवाजे पर खड़ी कई एक पड़ोसिनों का झुंड दयार्द्र ही नहीं, परेशान भी हो उठा था।उसकी सेवा करते-करते कहीं ये खुद भी बीमार न पड़ जाएँ। वैसे भी मौसम खराब है। घर-घर में लोग बीमार पड़ रहे हैं।'तुम्‍हीं लोग ने तो फँसाया है मुझे ...', उनके शिथिल क्‍लांत चेहरे पर एक क्षीण सी मुस्‍कान उभरी...पूरी कहानी पढ़ें।

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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