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हमारा संसद भवन
डॉ. बसंतीलाल बाबेल
हमारा संसद
भवन देश की वास्तुकला की अमूल्य धरोहर और बेजोड़ मिसाल है।
यह विश्व के श्रेष्ठतम भवनों में से एक है। विश्व
विख्यात वास्तुविद् सर हरबर्ट बेकर तथा सर एडविन लूटयंस की
कला का यह अनूठा उदाहरण है। इस भवन का डिजाइन सन्
१९१९ में तैयार किया गया था और
इसका शिलान्यास १२ फरवरी, १९२१ को ड्यूक ऑव कनॉट द्वारा
संपन्न हुआ था। इसके निर्माण में लगभग छह वर्ष लगे। तत्कालीन
गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन द्वारा १८ जनवरी, १९२७ को इस ऐतिहासिक
इमारत का उद्घाटन किया गया।
संसद भवन की बनावट में भारतीय कलात्मक शैलियों के प्रति
वास्तुविदों का प्रेम परिलक्षित होता है। यह एक ऐसी विशाल
गोलाकार इमारत है जिसका व्यास १७१ मीटर तथा परिधि ०.५४ कि.मी.
है। इसकी प्रथम मंजिल पर क्रीम रंग के बलुआ
पत्थरों के १४४ स्तंभ हैं तथा प्रत्येक स्तंभ की ऊंचाई ८.२
मीटर है। छह एकड़ क्षेत्र में फैले इस भवन के कुल १२ द्वार
हैं।
केंद्रीय कक्ष
संसद भवन के ठीक बीचो-बीच तीन चेंबरों, तीन सुंदर प्रांगणों,
हरे-भरे उद्यानों तथा फव्वारों से घिरा एक विशाल केंद्रीय
कक्ष है। इसकी आकृति गोल है तथा व्यास २९.९ मीटर। यह वही
केंद्रीय कक्ष है जिसमें १४ अगस्त, १९४७ की मध्य रात्रि को
अंगरेजों से भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण हुआ था और इसी
में ९ दिसम्बर, १९४६ से २६ नवम्बर, १९४९ तक संविधान सभा की
बैठकें हुई थीं। केंद्रीय कक्ष का उपयोग मुख्य रूप से दोनों
सदनों की संयुक्त बैठकों के लिए किया जाता है। कक्ष विख्यात
राष्ट्रीय नेताओं के चित्रों से सुसज्जित है।
केंद्रीय कक्ष के तीन ओर लोक सभा, राज्य सभा और ग्रंथालय के
तीन कक्ष हैं। उनके बीच सुंदर बगीचा है जिसमें घनी हरी घास के
मैदान तथा फव्वारे हैं। इन तीनों कक्षों के चारों ओर एक चार
मंजिला वृत्ताकार इमारत बनी हुई है, जिसमें मंत्रियों, संसदीय
समितियों के सभापतियों और पार्टी के कार्यालय हैं। लोक सभा तथा
राज्य सभा सचिवालयों के महत्त्वपूर्ण कार्यालय और संसदीय
कार्य मंत्रालय के कार्यालय भी यहीं हैं।
पहली मंजिल पर चार समिति
कक्षों का प्रयोग संसदीय समितियों की बैठकों के लिए किया जाता
है। इसी मंजिल पर तीन अन्य कक्षों का प्रयोग संवाददाताओं
द्वारा किया जाता है। संसद भवन के भूमि-तल पर गलियारे की बाहरी
दीवार को अनेक भित्ति-चित्रों से सजाया गया है। जिनमें प्राचीन
काल से भारत के इतिहास तथा पड़ोसी देशों के साथ भारत के
सांस्कृतिक संबंधों को प्रदर्शित किया गया है।
लोक सभा कक्ष में, आधुनिक ध्वनि व्यवस्था है। दीर्घाओं में
छोटे छोटे लाउडस्पीकर लगे हुए हैं। सदस्य माईक्रोफोन के पास
आए बिना ही अपनी सीटों से बोल सकते हैं। लोक सभा कक्षा में
स्वचालितमत-अभिलेखन उपकरण लगाए गए हैं। जिनके द्वारा सदस्य
मतविभाजन होने की स्थिति में शीघ्रता के साथ अपने मत अभिलिखित
कर सकते हैं। राज्य सभा कक्ष लोक सभा कक्ष की भांति ही है। यह
आकार में छोटा है। इसमें २५० सदस्यों के बैठने के लिए स्थान
हैं। केंद्रीय कक्ष के दरवाजे के ऊपर पंचतंत्र से संस्कृत का
एक पद्यांश देखने को मिलता है। जिसका अर्थ है, “यह मेरा है तथा
वह पराया है, इस तरह की
धारणा संकीर्ण मन वालों की होती है। किंतु विशाल हृदय वालों के
लिए सारा विश्व ही उनका कुटुंब होता है।”
संसदीय सौध
संसद भवन के उत्तर में तालकटोरा रोड की ओर अपनी अद्भुत छटा
बिखेरता संसदीय सौध अवस्थित है। इस सौध की इमारत ९.८ एकड़
भूखंड पर बनी हुई है जिसका क्षेत्रफल ३५,००० वर्ग मीटर है।
इसका निर्माण १९७०-७५ के मध्य हुआ था। आगे तथा पीछे के ब्लाक
तीन मंजिला तथा बीच का ब्लाक ६ मंजिला है। नीचे की मंजिल पर
जलाशय है जिसके ऊपर झूलती हुई सीढ़ियाँ हैं।
भूमितल की संरचना
अत्याधुनिक है। यहाँ राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन
होते हैं। एक वर्गाकार प्रांगण के चारों ओर एक मुख्य समिति
कक्ष तथा चार लघु समिति कक्षों का समूह है। इस प्रांगण के बीच
में एक अष्टकोणीय जलाशय है। प्रांगण में ऊपर की ओर पच्चीकारी
युक्त जाली का पर्दा है। वहाँ पौधे लगाकर एक प्राकृतिक दृश्य
तैयार किया गया है। इसमें पत्थर की टुकड़ियों तथा छोटे
पत्थरों के खंड बनाए गए हैं। पाँचों समिति कक्षों तथा संसद
भवन में लोक सभा तथा राज्य सभा कक्षों की भांति साथ साथ
भाषांतर की व्यवस्था है। प्रत्येक कक्ष के साथ संसदीय
समितियों के सभापतियों के कार्यालयों के लिए एक कमरा है।
स्वतंत्रता के पश्चात संसद के बढ़ते हुए आकार को दृष्टिगत
रखते हुए इस भवन का निर्माण कराया गया। २४ अक्टूबर, १९७५ को
तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा इसका
उद्घाटन किया गया । इसका डिजाइन मुख्य वास्तुविद् श्री
जे.एम. बेंजामिन तथा के.आर. जानी द्वारा तैयार किया गया था। इस
भवन के भीतर मध्यवर्ती सीढि़यों का दृश्य देखते ही बनता है।
स्वागत एवं पूछताछ कक्ष, डाकघर, चिकित्सा केन्द्र, सुपर
बाजार एवं जलाशय से सुसज्जित यह इमारत दर्शकों के लिए आकर्षण
का केन्द्र भी है । यह सौध संसदीय अध्ययन तथा प्रशिक्षण की
सुविधाएँ भी जुटाता है। बौद्ध चैत्य महराबों की याद ताजा
करनेवाली पच्चीकारी युक्त जाली की सुंदर आकृति शांति का
संदेश देती हैं। वास्तुकला के इस अनूठे सौंदर्य पर प्रत्येक
भारतवासी को गर्व है।
९ अगस्त
२०१० |