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फैजाबाद की ओर जाने वाली किसान
एक्सप्रेस रद्द थी। इसके बावजूद इलाहाबाद पैसेंजर में, जिसे हम
प्यार से लढ़िया कहते थे, अधिक भीड़ नहीं थी। घर से चलते समय
हमें इस बात का कतई अनुमान नहीं था कि राजनीतिक हो–हल्ले का
इतना अधिक असर दिखाई देगा। बहुत से लोगों ने आज एहतियातन अपनी
यात्राएँ स्थगित रखी थीं।
हमारे डिब्बे में डेली पैसेंजर अधिक थे। माहौल भी रोज जैसा ही
था। कुछ पैसेंजर ऊपर वाली सीट पर चढ़कर सो गए थे, कुछ अखबार
पढ़ रहे थे और कुछ ताश में मशगूल थे।
प्रभात अपनी आदत के
मुताबिक किसी पत्रिका के पन्नों में डूबे हुए थे। डेली
पैसेंजरी के मामले में वे मेरे गुरु थे। उन्हें इस रूट पर चलते
हुए दस वर्ष हो गए थे ;जबकि मेरा यह तीसरा साल था। उनके गम्भीर
स्वभाव के चलते सभी उनका सम्मान करते थे और प्रभात भाई कहकर
पुकारते थे।
बरेली से चलकर ट्रेन चनेहटी पर रुकी।
एक मुस्लिम परिवार डिब्बे में चढ़ा–– पति–पत्नी और उनके साथ एक
गोरी,सुन्दर, नाजुक–सी लड़की। वे तीनों हमारे सामने वाली सीट
पर बैठ गए । |