सप्ताह का विचार-
विनम्रता की परीक्षा 'समृद्धि'
में और स्वाभिमान की परीक्षा 'अभाव' में होती है।
- आदित्य चौधरी |
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अनुभूति
में-
भगीरथ बड़ोले, सतपाल ख़याल, सतीश सिंह, महेन्द्र प्रताप पांडेय
'नंद' और प्रदीप कांत की रचनाएँ। |
कलम गहौं नहिं हाथ-
२२ मार्च अंतर्राष्ट्रीय जल
दिवस है। जल की महत्ता को स्वीकार करते हुए यूनाइटेड नेशंस की
जनरल असेंबली ने १९९३ में...आगे
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सामयिकी में- पिछले
सप्ताह दिवंगत जाने माने कवि लेखक और अनुवादक विंदा करंदीकर को
टीम अभिव्यक्ति की श्रद्धांजलि-
विंदा करंदीकर का
जाना। |
रसोईघर से सौंदर्य सुझाव - मसूर की दाल में हल्दी और नीबू
मिलाकर दूध में बनाया गया उबटन चेहरे पर लगाने से मुहाँसे और
उसके दाग दूर होते हैं। |
पुनर्पाठ में- १ सितंबर २००१
के अंक में विशिष्ट कहानियों के स्तंभ गौरव गाथा के अंतर्गत
प्रकाशित इस्मत चुगताई की कहानी -
लिहाफ़ |
क्या आप जानते
हैं? कि ब्राज़ील,
कोलम्बिया, वैनेज़ुएला और पेरू में पाई जाने वाली इलेक्ट्रिक ईल (एक
तरह की मछली) ४००-६५० वोल्ट तक करेंट पैदा करती है। |
शुक्रवार चौपाल- इस सप्ताह नाट्य-पाठ के अंतर्गत शरद जोशी के
नाटक एक था गधा उर्फ अल्लादाद खाँ का पाठ होना था, लेकिन पता चला कि...
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नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-७ में वसंत और होली के
गीतों-नवगीतों क्रम पूरा हुआ। प्रतीक्षा है इन रचनाओं पर
विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया की। |
हास
परिहास |
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सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
यू.के. से
तेजेन्द्र शर्मा की कहानी-
दीवार में रास्ता
छोटी जान आज़मगढ़ आ रही हैं।
मोहसिन को महसूस हुआ कि अब दीवार में रास्ता बनाना संभव हो
सकता है। भावज ने पोपले मुँह से पूछ ही लिया,''अरे कब आ रही
है? क्या अकेली आ रही है है या जमाई राजा भी साथ में होंगे?
सलमान मियाँ को देखे तो एक ज़माना हो गया है। वैसे, मरी ने आने
के लिए चुना भी तो रमज़ान का महीना!'' भावज की आँखों के कोर
भीग गए। रात को सकीना ने अपनी परेशानी मोहसिन के सामने रख
दी,''सुनिये जी, क्यों आ रही हैं छोटी जान? अचानक पचास साल बाद
क्यों हमारी याद आ गई?''
''कुछ साफ़ तो मुझे भी नहीं पता। सुनने में आ रहा है कि छोटी
जान इंग्लैंड में बड़ी सियासी शख़्सियत बन गई हैं। शायद एम.पी.
हो गई हैं शहर वालों ने इज्ज़त देने के लिए बुलाया है। मगर
उनके आने में अभी तो देर है''
''पता नहीं क्यों, मेरा तो दिल डोल रहा है''
''घबरा नहीं, सब ठीक हो जाएगा!'' पूरी कहानी पढ़ें...
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श्यामसुंदर घोष
का व्यंग्य
तकिया
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विपिन चंद्र चतुर्वेदी
का आलेख
क्या बड़े जलाशय
भूकंप का कारण होते हैं
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डॉ. भारतेंदु
मिश्र की कलम से-
छंदप्रसंग
के आदर्श: आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री
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शिवानी का संस्मरण
अरुंधती |
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पिछले सप्ताह
गुरमीत बेदी का व्यंग्य
बीटी बैंगन बनाम देसी बैंगन
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घर परिवार में-
अर्बुदा ओहरी का आलेख
हवाई यात्रा में सामान की
सुरक्षा
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नवरात्र के लिए
मधु गजधर की रसोई से फलाहार-
केले के दहीबड़े,
अरबी-चाट,
साबूदाना टिक्की
और रबड़ी
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पर्यटक के साथ
सैर
मनमोहक माल्टा
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समकालीन कहानियों में
भारत से
सुमन बाजपेयी की कहानी-
अदृश्य आकार
बाहर कोहरा
छाया हो तो उसका मन करता है कि कहीं घूमने निकल जाए। लाँग
ड्राइव पर जाना न मुमकिन हो तो कनाट प्लेस के गलियारे में
निरर्थक ही चक्कर काटती रहे। वैसे भी उसे सदियाँ बहुत अच्छी
लगती हैं। उमस भरी गर्मी और पसीना- बहुत चिढ़ है उसे। कभी आँधी
तो कभी धूल। एक उजाड़ मौसम लगता है जिसमें सिर्फ बेचैनी ही
महसूस होती है। ए.सी. की शरण लो तभी राहत मिलती है। राहत भी
कहाँ तब भी शरीर में दर्द की टीसें उठनी लगती हैं। सर्दी में
तो अच्छे से शरीर को लपेटो और निकल जाओ पर गर्मियों में आखिर
आप कितने कपड़ों का निष्कासन कर सकते हैं। कृत्रिमता तो हर
मायने में बुरी लगती है। ए.सी. की कृत्रिम हवा भला प्रकृति की
खुशनुमा हवा को पछाड़ सकती है। मौसम की सौम्यता देखनी हो तो
सर्दी में ही दिख सकती है। सब कुछ कितना शांत और सुंदर लगता
है।
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