सामयिकी– भारत से |
पिछले सप्ताह दिवंगत जाने माने कवि लेखक और अनुवादक विंदा करंदीकर को टीम अभिव्यक्ति की श्रद्धांजलि- विंदा करंदीकर का जाना
जाने-माने मराठी कवि गोविंद विनायक करंदीकर का रविवार १४
मार्च २०१० को ९१ वर्ष की आयु में निधन हो गया। २३ अगस्त
१९१८ को महाराष्ट्र के सिंधदुर्ग जिले के खांडवल गांव
में जन्मे इस महान रचनाकार ने मुंबई के भाभा अस्पताल में
अंतिम श्वास ली। उनका जाना केवल मराठी ही नहीं संपूर्ण
भारतीय कविता को शोकाकुल कर गया। उन्हें
श्रद्धांजलि देते हुए वर्ष २००८ में ज्ञानपीठ पुरस्कार
से सम्मानित हिंदी के वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण ने कहा,
विंदा को सिर्फ मराठी कवि कहना गलत होगा। वह असल में एक
विश्व स्तरीय कवि के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने एक
ओर गंभीर लेखन किया, वहीं बाल साहित्य भी लिखा। विंदा का
निधन मराठी ही नहीं, पूरे साहित्य जगत के लिए क्षति है।
वरिष्ठ कवि चंद्रकांत देवताले के
शब्दों में- “मुझे एक बार एक कार्यक्रम के सिलसिले में
उडीसा में उनके साथ रहने का मौक़ा मिला। तब मुझे यह
मालूम हुआ कि वे जितने बडे कवि हैं, मूल्यों के मामले
में भी उतने ही बड़े व्यक्तित्व के धनी हैं। उनके निधन
से पूरे साहित्य जगत को क्षति पहुँची है।“ लोकप्रिय
रचनाकार सुभाष भेंडे ने कहा कि हालाँकि उनके मित्र
उन्हें कंजूस कोंकणी कहकर चिढ़ाते थे, लेकिन हम सभी
जानते हैं कि उनके जैसा दानी कोई नहीं था। गैर-सरकारी
संस्थाओं से जितनी भी नकद राशि पुरस्कार के तौर पर मिली,
उन सभी को विंदा ने दान कर दिया। चाहे बात संयुक्त
महाराष्ट्र आंदोलन की हो या बढ़ती कीमतों की विंदा हमेशा
आम आदमी के लिए गलियों में उतरे। साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जिनमें केशवसुत पुरस्कार, कबीर सम्मान, सोवियत लैंड नेहरू साहित्य पुरस्कार और १९९६ में साहित्य अकादमी फेलोशिप। २००३ में विंदा को भारतीय साहित्य का शिखर पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे विष्णु सखाराम खांडेकर (१९७४) और विष्णु वामन शिरवाडकर कुसुमाग्रज (१९८७) के बाद ज्ञानपीठ सम्मान पाने वाले तीसरे मराठी कवि थे। अपने अंतिम समय में श्री करंदीकर काफी लंबे समय से बीमार रहने के कारण बांद्रा के भाभा अस्पताल में भर्ती थे। पर ९२ साल की उम्र में भी वे जाते-जाते लोगों को सही रास्ता दिखा गए। उन्होंने मृत्यु के बाद अपने शरीर को मेडिकल छात्रों को शोध के लिए और शरीर के अंगों को गरीबों के लिए दान किया। साहित्य सहवास के उनके मित्रों का कहना है कि विंदा हमेशा लोगों को देने में यकीन रखते थे। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग साहित्य सहवास में ही बिताया था। |
१५ मार्च २०१० |