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क्या बड़े जलाशय
भूकंप का कारण होते हैं
– विपिन चंद्र चतुर्वेदी
यह कोई कोरी
कल्पना नहीं है बल्कि इस बारे में तमाम वैज्ञानिक तथ्य भी इस बात
की पुष्टि करते हैं कि बड़े जलाशय भूकंप का कारण बनते हैं।
दुनिया भर में विभिन्न जलाशयों से एकत्र किए गए वैज्ञानिक
आँकड़ों ने यह साबित किया है कि जलाशयों में पानी भरने और भूकंप
के बीच आपसी सम्बंध है।
अभी हाल ही में
नवंबर २००९ में महाराष्ट्र स्थित कोयना बाँध के आस पास एवं
मुम्बई के कुछ इलाकों में भूकंप का अनुभव किया गया। रिचर स्केल
पर इसकी तीव्रता ४.८ मापी गई थी। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह
भूकंप बाँध की वजह से आया था। जबकि दावा किया गया कि कोयना बाँध
सुरक्षित है। इससे पहले कोयना बाँध की ही वजह से सन १९६७ में एक
जबरदस्त भूकंप भी आ चुका है, जो कि महाराष्ट्र में अब तक का सबसे
ज्यादा तीव्रता वाला भूकंप था। उस समय भूकंप की तीव्रता रिचर
स्केल पर ६.३ मापी गई थी, और भूकंप का असर उसके केन्द्र से २३०
किमी दूर तक अनुभव किया गया था। उस भूकंप में १८० लोग मारे गए थे
और हजारो लोग बेघर हुए थे। उस समय बाँध को भी काफी नुकसान हुआ था
और पावरहाउस ने काम करना बंद कर दिया था, जिससे मुम्बई स्थित
उद्योगों को भी बिजली आपूर्ति रुक गई थी। उस जलाशय के बनने के
बाद से उस इलाके में वह अब तक का सबसे ताकतवर भूकंप था। ज्ञातव्य
है कि कोयना बाँध सन १९६२ में बनकर तैयार हुआ था। जबकि भूकंप तब
आया जब बाँध के दीवार के पीछे पानी भरा गया। १० दिसंबर १९६७ को
आए उस भूकंप में बाँध के निकट कोयनानगर गाँव पूरी तरह नष्ट हो
गया था। विशेषज्ञों के अनुसार बाँध में पानी भरने बाद पानी के
अत्यधिक दबाव के कारण जलाशय के नीचे का सतह स्थानांतरित हुआ और
जिसकी वजह से भूकंप आया। कोयना बाँध बनने के बाद इस इलाके में सन
२००५ तक ५ या उससे ज्यादा के तीव्रता वाले कुल १९ भूकंप आ चुके
हैं। जबकि बाँध बनने से पहले इस इलाके को भूकंप से सुरक्षित माना
जाता था।
दुनिया भर में
जिन बांधों की वजह से भूकंपीय अनुभव हुए हैं उनमें भारत के
महाराष्ट्र में कोयना, जाम्बिया में लेक कैरिबी, यूनान में लेक
क्रामिस्टा, यू.एस. में लेक मीड, इटली में वाजोंट बाँध, रूस में
मर्क बाँध, पाकिस्तान में तारबेला बाँध एवं जापान में क्यूरोबा
बाँध प्रमुख हैं। इटली के वाजोंट बाँध में तो सबसे भयानक अनुभव
हुए हैं। जब यह बाँध बनकर तैयार हुआ तो इसमे सितंबर १९६३ में
पानी भरना शुरू किया गया तो १५ दिनों के अंदर भूकंप के ६० झटके
महसूस किए गए। ९ अक्तूबर १९६३ को माउंट टाक से ३५ करोड़ घनमीटर
का एक चट्टान जलाशय में गिरा और बाँध ओवरफ्लो होकर बहने लगा।
इससे बाँध के डाउनस्ट्रीम में एक किमी दूर स्थित कस्बा लोंगारोन
एवं तीन अन्य गाँवों में जबरदस्त बाढ़ आई। इसके वजह से करीब २६००
लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था। गत वर्ष चीन के सियाचीन इलाके
में रिचर स्केल पर ८ की तीव्रता वाला भूकंप आया था जिसमें मरने
वाले और लापता होने वाले लोगों की कुल संख्या करीब ८७,००० थी।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भूकंप केन्द्र के निकट ३१.५ करोड़
टन पानी की क्षमता वाला ५११ फुट ऊँचा जिपिंगपू बाँध स्थित है।
चीन एवं दुनिया भर के वैज्ञानिकों का मानना है कि वह भूकंप बाँध
में पानी का दबाव बढ़ने की वजह से आया था। सियाचीन जियोलाजी एंड
मिनरल ब्यूरो के मुख्य इंजिनियर फैन जिआयो का भी मानना है कि, इस
बात की काफी संभावना है कि बाँध में सन २००४ में पानी भरने के
बाद पानी का दबाव बढ़ने के कारण यह भूकंप आया हो। उनका कहना है
कि बाँध बनने से पहले आस-पास के किसी भी इलाके में ७ की तीव्रता
से ज्यादा का भूकंप नहीं आया था।
हालाँकि तमाम
विशेषज्ञ हमेशा से कहते रहे हैं कि बड़े जलाशयों की वजह से भूकंप
की संभावना उत्पन्न होती है लेकिन बाँध उद्योग का कहना होता है
कि यह सिर्फ भूकंप संभावित क्षेत्र में ही होता है। इस सन्दर्भ
में पैट्रिक मैकुली ने अपनी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'साइलेंस्ड
रिवर्स' में लिखा है कि, ''हालाँकि हर बाँध स्थल की अपनी खास
भूगर्भीय विशेषता होती है। इन विशेषताओं के बारे में जानकारी
हासिल करने में काफी धन और समय की जरूरत होती है। इसलिए बाँध
प्रयोक्ता किसी स्थल के भूगर्भीय सर्वेक्षण में ज्यादा पैसा खर्च
करने से बचते हैं और आंशिक भूगर्भीय जानकारी के आधार पर बाँध का
डिजाइन तय कर दिया जाता है।'' इस सन्दर्भ में सन १९९० में विश्व
बैंक ने एक विस्तृत अध्ययन कराया था। अध्ययन में दुनिया भर के
अलग-अलग जगहों के चुने गए ४९ परियोजनाओं का विस्तृत मूल्यांकन
किया गया। उनमें से तीन चैथाई से ज्यादा परियोजनाओं में
अप्रत्याशित भूगर्भीय समस्याओं का अनुभव किया गया। अध्ययन का
निष्कर्ष था कि बड़े बाँधों में भूगर्भीय समस्याओं का न होना
अपवाद माना जाना चाहिए, जबकि भूगर्भीय समस्या होना सामान्य बात
है।
भारत में अस्सी
के दशक में आए ९ भूकंपो में से ५ को बाँधों की वजह से आया माना
जाता है। अध्ययनों में यह बात साबित हुई है कि बड़े जलाशयों के
२५ किमी के आस-पास भूकंप आने की संभावना ज्यादा होती है। जैसे ही
किसी बाँध में पानी भरने की प्रक्रिया शुरू होती है वैसे ही पानी
के दबाव के समायोजन के लिए जलाशय के सतह में हलचल होती है। कई
बार यह हलचल काफी तेज भी हो सकती है। जैसे-जैसे जलाशय में पानी
का दबाव बढ़ता है भूगर्भीय हलचल की संभावना बढ़ने लगती है।
हालाँकि यह बात तो स्पष्ट है कि भूकंप प्राकृतिक कारणों से आते
जबकि बाँधों की वजह से उनकी तीव्रता बढ़ती है। हाँलाकि भारत में
बाँध प्रयोक्ता सिर्फ इतना ही आश्वासन दे पाते हैं कि बाँध का
निर्माण भूकंप रोधी तकनीक से किया गया है। लेकिन तमाम वैज्ञानिक
तथ्यों के बाद अब यह तो मानना ही होगा कि जलाशय आधारित भूकंप एक
सच्चाई है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
२२ मार्च २०१० |