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२२. २. २०१०

सप्ताह का विचार- महापुरुष वे ही होते हैं जो विभिन्न परिस्थितियों के रंगों में रंगे जाने के बाद भी अपने व्यक्तित्व की पहचान को खोने नहीं देते। -मुक्ता

अनुभूति में- पिछले अंक के वसंतोत्सव के क्रम में नयी वसंत रचनाओं के साथ छोटे काव्यमय शुभकामना संदेशों का संग्रह- शुभकामना।

कलम गहौं नहिं हाथ- ऋतु वसंत की हो तो फूलों की बात होना स्वाभाविक है और फूलों की बात हो तो गुलाब की बात होना स्वाभाविक है, लेकिन...आगे पढ़ें

सामयिकी में- भारत में आतंकवादी हमलों के संबंध में ताज़ा घटनाओं का उल्लेख करते हुए ओमकार चौधरी का आलेख- भारत की सुरक्षा चिंताए

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव - १० लीटर पानी में दो बड़े चम्मच गुलाबजल मिलाकर नहाने से त्वचा स्वस्थ और सुंदर बनती है।

पुनर्पाठ में- १ नवंबर २००१ के अंक में विशिष्ट कहानियों के स्तंभ गौरव गाथा के अंतर्गत प्रकाशित रांगेय राघव की चर्चित कहानी - गदल

क्या आप जानते हैं? कि भारत क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में सातवाँ और जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरा सबसे बड़ा देश है।

शुक्रवार चौपाल- आज का दिन काजल ओझा वैद्य के गुजराती नाटक का हिंदी रूपांतर पढ़ने का था। रूपांतर डॉ. शैलेष उपाध्याय ने किया है... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-७ में वसंत के रंगों से सराबोर ३० से अधिक  गीतों-नवगीतों का प्रकाशन जारी है। आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा है।


हास परिहास

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में कैनेडा से
डॉ. शैलजा सक्सेना की कहानी- शार्त्र

आज तक अनेकों साक्षात्कार मैंने लिए हैं, अनेकों कहानियाँ सुनी हैं पर यह साक्षात्कार बिल्कुल भिन्न था। इसके बाद जीवन के प्राप्य को मैंने कुछ दूसरी ही दृष्टि से देखना शुरू कर दिया। वह आवश्यक कागज़ों को भर कर फाइल सँभाले थोड़ी उद्विग्नता से कुर्सी में सधी बैठी थी। मैंने पहली बार उसे इसी अवस्था में देखा था। काले चमड़े से मढ़ा शरीर, चमकती सफेद आँखें और चमकते सफेद दाँत। थोड़ा भारी शरीर। काले बालों के बीच हाईलाइट की हुईं लाल लटें, मुझे किसी ने बताया था कि अफ्रीकी महिलाएँ प्राय: विग पहनती हैं क्योंकि उनके बालों का प्रकार उन्हें आधुनिक केश-सज्जा नहीं करने देता। उसके बालों को देख कर मैं क्षण भर को सोच में पड़ी थी कि क्या यह भी विग है? अगर सुंदरता में शरीर के गोरे होने की शर्त न हो तो उसे सुंदर कहा जा सकता था। उसे ''हलो'' कह कर, मौसम का हाल पूछती साक्षात्कार के कमरे में ले आई थी। नाम पूछने पर बताया-- शार्त्र लूले... पूरी कहानी  पढ़ें...
*

प्रमोद ताम्बट का व्यंग्य
डेंगू परिवार जाली के उस पार
*

डॉ विजय कुमार उपाध्याय का आलेख
प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक: भास्कराचार्य

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होली की रंगभरी तैयारियों के साथ
घर परिवार में- रंग बरसे
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समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

पिछले सप्ताह वसंत विशेषांक में

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' का व्यंग्य-
लूट सके तो लूट
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डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव का दृष्टिकोण
हिंदी के ये उत्सव ये सम्मेलन

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विज्ञानवार्ता में डॉ. गुरुदयाल प्रदीप
का आलेख- हाय रे दर्द
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समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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समकालीन कहानियों में संयुक्त अरब इमारात से
स्वाती भालोटिया की कहानी- क्या लौटेगा वसंत

नदी किनारे, घास पर पग सहलाता, बौद्ध मंदिर को स्वयं में समाए टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों पर डोलता-सा रायन, अपने स्वच्छंद चेहरे पर धूप का ताप लिए, मेरी ओर ही चला आ रहा था। अपने गेरुए चोंगे में, सर मुँडाए, रायन मुझे सदा से किसी ऐतिहासिक बौद्ध भिक्षु की भाँति ही लगता है जो किसी ईश्वरीय माया से, धुंध उड़ाती दार्जिलिंग की पर्वत-शृंखलाओं के बीच, अनायास ही प्रकट हो गया हो। जब भी मैं ग्रीष्मावकाश में अपने वार्षिक भ्रमण के लिए दार्जिलिंग आती, रायन मुझसे यों ही रोज़ मिलने आता, पास बैठा-बैठा बातें करता, निहारता और लजायी-सी हताशा फैला जाता। इस बार भी पिता द्वारा सहेजकर बनवाई गई, बरसों पुरानी ईटों से बने श्वेत घर का पल्लवित आकर्षण कलकत्ता शहर के कोलाहल से दूर मुझे इस हरित भूमि में खींच ही लाया। प्रवेश द्वार पर पत्थर की सीढ़ियों के किनारे, गेरू पुते गमलों पर खिले, केसरी फूल... आगे पढ़ें...

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