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कलम गही नहिं हाथ  

 

 

 

काँटों बिना गुलाब

ऋतु वसंत की हो तो फूलों की बात होना स्वाभाविक है और फूलों की बात हो तो गुलाब की बात होना स्वाभाविक है, लेकिन गुलाब अगर ऐसा हो जिसमें काँटे न हों तो यह अस्वाभाविक है। इस अस्वाभाविक को स्वाभाविक बनाया है भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के गुलाब प्रजनक डॉ. ए पी सिंह ने।

दस सालों के निरंतर अनुसंधान के बाद काँटों रहित गुलाब की कई किस्में तैयार की गई हैं जिसमें पूसा मोहित, पूसा अभिषेक, पूसा मनहर, पूसा मुस्कान, पूसा उर्मिल और पूसा रंजा प्रमुख हैं। पूसा ने इन किस्मों के गुलाब के पौधे का मूल्य तीस रुपये रखा है जबकि बाज़ार में ये पचास रुपये में खरीदा जा सकेंगे। इन किस्मों के गुलाब के पौधों पर चालीस गुलाब लगते हैं। डॉ. सिंह के अनुसार इन नई किस्मों के पौधों को विशेष रूप से उत्तर भारत की परिस्थितियों के अनुकूल विकसित किया गया है। एक हेक्टेयर ज़मीन में इन किस्मों के लगभग बत्तीस हज़ार पौधे लगाए जा सकते हैं जो फूल उत्पादकों के लिए अच्छा लाभ देने वाले सिद्ध होंगे। बिना काँटों वाला गुलाब उपहार में दिए जाने वाले फूलों के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है। फूलों की दूकानों पर भी इनका मूल्य सामान्य गुलाब से अधिक मिलता है। एक समय था जब यह कहा जाता था कि काँटों के बिना गुलाब का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। काँटे ही तो हैं जो उसके जीवन और सौंदर्य की रक्षा करते हैं लेकिन जिसे अनुसंधान संस्थानों में विकास का अवसर प्राप्त हो, जब कड़ी देखरेख में उसकी खेती करने वाले हों और जब दूकानों पर उसकी जबरदस्त माँग हो तो गुलाब को काँटों की सुरक्षा की क्या ज़रूरत। स्नेह की सुरक्षा काँटों की सुरक्षा से कहीं अधिक मज़बूत होती है।

इतना सब कुछ जानने के बाद विचार करने की बात यह है कि बात अगर गुलाब की हो रही है तो चित्र में सरसों के फूल क्यों है? भई खेत में सरसों फूली हो और उस पर बैठा हो यह नन्हा कीड़ा तो फिर कौन घर की क्यारी छोड़कर दूकान से गुलाब खरीदने जाएगा। वैसे भी-- जहाँ काम आए सुई कहा करै तलवार... वसंत की बात कहीं सरसों के बिना होती है?

पिछले अंक यानी वसंत विशेषांक को अच्छी लोकप्रियता मिली, पाठकों को धन्यवाद जिन्होंने उसे सराहा। अगला अंक होली विशेषांक होगा। दोनों के बीच यह अंक सामान्य है लेकिन रंगों के मौसम ने पृष्ठभूमि को इस अंक में भी रंगीन रखा है। अनुभूति का यह अंक भी वसंत अंक है, अगला अंक होली विशेषांक होगा। वसंत और होली का यह रंगारंग मौसम जीवन के रंगों को खिलाए रखे इसी शुभकामना के साथ,

पूर्णिमा वर्मन
२२ फरवरी २०१०
 

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