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                    बाहर शोरगुल मचा। डोड़ी ने 
                    पुकारा, ''कौन है?''कोई उत्तर नहीं मिला। आवाज आई, ''हत्यारिन! तुझे कतल कर 
                    दूँगा!''
 स्त्री का स्वर आया, ''करके तो देख! तेरे कुनबे को डायन बनके न 
                    खा गई, निपूते!''
 डोड़ी बैठा न रह सका। बाहर आया।
 ''क्या करता है, क्या करता है, निहाल?''  डोड़ी बढ़कर 
                    चिल्लाया, ''आखिर तेरी मैया है।''
 ''मैया है!'' कहकर निहाल हट गया।
 ''और तू हाथ उठाके तो देख!'' स्त्री ने फुफकारा, ''कढ़ीखाए! 
                    तेरी सींक पर बिल्लियाँ चलवा दूँ! समझ रखियो! मत जान रखियो! 
                    हाँ! तेरी आसरतू नहीं हूँ।''
 ''भाभी!'' डोड़ी ने कहा, ''क्या बकती है? होश में आ!''
 वह आगे बढ़ा। उसने मुड़कर कहा, ''जाओ सब। तुम सब लोग जाओ!''
 निहाल हट गया। उसके साथ ही सब लोग इधर-उधर हो गए।
 डोड़ी निस्तब्ध, छप्पर के नीचे लगा बरैंडा पकड़े खड़ा रहा। 
                    स्त्री वहीं बिफरी हुई-सी बैठी रही। उसकी आँखों में आग-सी जल 
                    रही थी।
 उसने कहा, ''मैं जानती हूँ, निहाल में इतनी हिम्मत नहीं। यह सब 
                    तैने किया है, देवर!''
 ''हाँ गदल!'', डोड़ी ने धीरे से कहा, ''मैंने ही किया है।''
 गदल सिमट गई। कहा, ''क्यों, तुझे क्या जरूरत थी?''
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