सप्ताह का विचार-
कोई भी भाषा अपने साथ एक संस्कार,
एक सोच, एक पहचान और प्रवृत्ति को लेकर चलती है। - भरत
प्रसाद |
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अनुभूति
में-
1
नचिकेता, कृष्ण शलभ, तनहा अजमेरी, शशि पाधा और ऋषिपाल धीमन की
रचनाएँ |
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इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
यू.एस.ए. से
सुधा ओम ढींगरा की कहानी
फन्दा
उसका का दिल
आज बेचैन है, किसी भी तरह काबू में नहीं आ रहा, तबीयत बहुत
उखड़ी हुई और भीतर जैसे कुछ टूटता-सा महसूस हो रहा है। सुबह के
पाठ में भी मन नहीं रमा। चित्त स्थिर नहीं हो पा रहा था,
भीतर-बाहर की घुटन जब बढ़ गई, तो वह अपने बिस्तर से उठ गया।
कमरे की खिड़की खोली, ताज़ी हवा का झोंका आया, पर अस्थिरता बढ़ती
गई। वह कमरे में ठहर नहीं सका। बाहर दलान में आ गया। उजाला दबे
पाँव फैलने की कोशिश कर रहा था। धुंधली रौशनी में वह अपनी नवार
की मंजी देखने लगा। जिसे उसने बड़े शौक से पंजाब से मँगवाया
था। वह खेत के एक कोने में पड़ी थी। घुसपुसे में सँभल-सँभल कर
पाँव रखता, राह को टोह -टोह कर चलता, वह चारपाई तक पहुँच गया,
धम्म से उस पर बैठ गया, जैसे मानों बोझ ढोह कर लाया हो और
चारपाई पर पटका हो। खुली हवा में उसने लम्बा-सा साँस लिया,
तनाव ग्रस्त स्नायु ढीले पड़ते महसूस हुए।
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दिनेश थपलियाल
का व्यंग्य
किस्सा कहावतों का
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तेजेन्द्र शर्मा के साथ मोहन
राणा की बातचीत
जीवन अगर कहानी है तो कहानी क्या है?
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डॉ. पवन
अग्रवाल का आलेख
लखनऊ विश्वविद्यालय
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पर्व परिचय में
वर्ष २०१० के पर्वों की सूचना पर्व
पंचांग में |
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पिछले सप्ताह
नव वर्ष विशेषांक में
डॉ रामनारायण
सिंह मधुर
का व्यंग्य
खर्च हुए वर्ष के नाम
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अरविंद कुमार सिंह का आलेख
भारतीय रेल पत्रिका का स्वर्णजयंती वर्ष
*
आशीष और दीपिका
के साथ मनाएँ
देश-देश में नव वर्ष
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समाचारों में
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ
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समकालीन कहानियों में
भारत से
सरस्वती माथुर की कहानी
पूर्व संध्या
राधा देवी ने
रोज़ की तरह अपना कंप्यूटर ऑन किया, पासवर्ड देकर डायरी का
पन्ना खोला लेकिन जाने क्यों उनका कुछ भी लिखने का मन नहीं
हुआ। उनकी बहू विभा कंप्यूटर इंजिनियर थी। उसने उनकी वेबसाइट
बना दी थी और जब भी वह अमेरिका से आती थी उन्हें काफी कुछ सिखा
जाती थी। कंप्यूटर
विंडो पर 'गूगल टॉक’ की खिड़की खोल कर राधा देवी ने सरसरी
निगाहें डाली तो पता लगा कोई भी आनलाईन नहीं है न उनके बच्चे न
पति।
वे उठीं और मेज़ पर बिखरे काग़ज़ों में कुछ ढूँढ़ने लगीं।
नए साल के अवसर पर बच्चों का अमेरिका से ग्रीटिंग कार्ड आया
था। उन्होनें एक सरसरी निगाह उस कार्ड पर डाली। फिर अमृतयान
निकेतन काटेज की अपनी बालकनी में कुर्सी पर बैठ कर वे वहाँ से
दूर दिखाई देती झील को देखने लगी।
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