|  | 
                    उसका का दिल आज बेचैन है, किसी 
                    भी तरह काबू में नहीं आ रहा, तबीयत बहुत उखड़ी हुई और भीतर जैसे 
                    कुछ टूटता-सा महसूस हो रहा है। सुबह के पाठ में भी मन नहीं 
                    रमा। चित्त स्थिर नहीं हो पा रहा था, भीतर-बाहर की घुटन जब बढ़ 
                    गई, तो वह अपने बिस्तर से उठ गया। कमरे की खिड़की खोली, ताज़ी 
                    हवा का झोंका आया, पर अस्थिरता बढ़ती गई। वह कमरे में ठहर नहीं 
                    सका। बाहर दलान में आ गया। उजाला दबे पाँव फैलने की कोशिश कर 
                    रहा था। धुंधली रौशनी में वह अपनी नवार की मंजी देखने लगा। 
                    जिसे उसने बड़े शौक से पंजाब से मँगवाया था। वह खेत के एक कोने 
                    में पड़ी थी। घुसपुसे में सँभल-सँभल कर पाँव रखता, राह को टोह 
                    -टोह कर चलता, वह चारपाई तक पहुँच गया, धम्म से उस पर बैठ गया, 
                    जैसे मानों बोझ ढोह कर लाया हो और चारपाई पर पटका हो। खुली हवा 
                    में उसने लम्बा-सा साँस लिया, तनाव ग्रस्त स्नायु ढीले पड़ते 
                    महसूस हुए। खेतों में नवार की मंजी पर बैठना उसे हमेशा अच्छा 
                    लगता है। कल यहीं धूप में बैठ कर ही तो उसने अखबार की वे ख़बरें पढ़ीं 
                    थीं।
 ''सूखे से तंग आ कर पंजाब के किसानों ने आत्महत्याएँ कीं।''
 ''क़र्ज़ में डूबे बुंदेलखंड के किसानों ने पत्नियाँ लगाईं 
                    'सेल' पर।'' इन समाचारों को पढ़ कर, वह बहुत विचलित हो गया था।
 वह स्वयं से ही बातें करने लगा- ''अगर मैं अमेरिका न आता और 
                    पंजाब में ही होता, तो मुझे भी शायद आत्महत्या करनी पड़ती।
 |