इतिहास– भारतीय रेल (पत्रिका) | ||
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1 रेल मंत्रालय रेलवे बोर्ड द्वारा प्रकाशित मासिक हिंदी पत्रिका 'भारतीय रेल' अगस्त, २००९ में अपनी गौरवशाली यात्रा के पचासवें वर्ष में प्रवेश करते हुए स्वर्णजयंती वर्ष मना रही है। भारतीय रेल को इस महादेश की धड़कन और जीवन रेखा कहा जाता है। इसी प्रकार भारतीय रेल पत्रिका नें रेलकर्मियों के साथ अन्य पाठक वर्ग में भी अपनी एक अलग पहचान बनाई है। सौ सालों की इस लंबी अवधि के दौरान जहाँ एक ओर पत्रिका की साज-सज्जा, विषय सामग्री और मुद्रण के स्तर में निखार आया है, वहीं इसके पाठकों की संख्या में भी निरंतर वृद्धि हुई है। |
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यह पत्रिका रेल प्रशासन, रेलकर्मियों और रेल उपयोगकर्ताओं के बीच एक संपर्क सूत्र का काम भी करती रही है। रेलों से संबंधित तकनीकी विषयों की सरल-सहज भाषा में जानकारी सुलभ कराने में इस पत्रिका का ऐतिहासिक योगदान रहा है। इतना ही नहीं रेलकर्मियों का मनोबल बढ़ाने, उनकी रचनात्मक क्षमता के विकास और अन्य पहलुओं पर भी पत्रिका खरी उतरी है। भारतीय रेल पत्रिका का पहला अंक १५ अगस्त, १९६० को प्रकाशित हुआ था। श्री बीरबल सिंह, श्री द्वारका नाथ तिवारी, श्री महेन्द्रनाथ सिंह, श्री नयनतारा दास, श्री भक्तदर्शन, श्री सत्येन्द्र सिंह, श्री विपिन बिहारी, श्री मथुरा प्रसाद मिश्र, श्री कमल सिंह समेत कुल २१ लोकसभा सदस्यों के संयुक्त हस्ताक्षर से १५ दिसंबर, १९५८ को तत्कालीन रेल मंत्री श्री जगजीवन राम को पत्र लिखकर हिंदी में पत्रिका शुरू करने का अनुरोध किया था। इसके पूर्व तत्कालीन रेल मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री से भी कई संसद सदस्यों ने मुलाकात कर अनुरोध किया था कि हिंदी में पत्रिका निकलनी चाहिए। पत्रिका का पहला अंक २६ जनवरी को प्रकाशित, होना निश्चित हुआ था लेकिन यह वर्ष के अंत में १९ दिसंबर, १९५८ को शुरू हो पाई जब तत्कालीन रेल मंत्री श्री जगजीवन राम द्वारा रेलवे बोर्ड के अधिकारियों को इससे संबंधित निर्देश दिये गए। दिल्ली में काक्सटन प्रेस कनाट प्लेस को पत्रिका के प्रकाशन का काम सौंपा गया। 'भारतीय रेल' के पहले अंक की कुल एक हज़ार प्रतियाँ प्रकाशित की गई थीं जिसकी कुल पृष्ठ संख्या कवर सहित ४४ थी। उस समय भारतीय रेल पत्रिका के संपादक मंडल के सदस्य श्री डी.सी. बैजल (सदस्य कर्माचारी वर्ग) सचिव रेलवे बोर्ड, श्री जी.सी. मीरचंदानी सह निदेशक जनसंपर्क, श्री राममूर्ति सिंह हिंदी अधिकारी रेलवे बोर्ड, श्री वमष्ण गुलाटी संपादक तथा श्री राम चंद्र तिवारी सहायक संपादक, हिंदी थे। हिंदी पत्रिका का सारा दायित्व विख्यात विद्वान और लेखक श्री राम चंद्र तिवारी पर था। वे ही इसके असली कर्ताधर्ता थे और उनके ही सक्षम नेतृत्व में भारतीय रेल एक गरिमामय स्थान पाने में सफल रही। पत्रिका की वार्षिक चंदा दर सर्व साधारण के लिए छह रुपए रखी गई थी, जबकि रियायती दर पर रेलकर्मियों के लिए चार रुपए थी। एक अंक का मूल्य था ६० नए पैसे। पत्रिका के पहले अंक का मुखपृष्ठ विख्यात कलाकार श्री अमर लाल ने बनाया था। इस पत्रिका के प्रकाशन के अवसर पर तत्कालीन रेल मंत्री श्री जगजीवन राम, रेल उपमंत्री शाहनवाज खां तथा सं. वै. रामस्वामी के बहुत सारगर्भित संदेश भी प्रकाशित किए गए थे। जिसमें कामना की गई थी कि रेल मंत्रालय के प्रयासों को जनता तक पहुँचाने और जनता में रेलों के प्रति सद्भाव बढ़ाने में नई पत्रिका 'भारतीय रेल' पूर्णत: सहायक सिद्ध होगी। 'भारतीय रेल' पत्रिका की शुरुआत में स्थाई स्तंभ थे संपादकीय, सुना आपने, रेलों के अंचल से, भारतीय रेलें सौ साल पहले और अब, कुछ विदेशी रेलों से, क्रीडा जगत में रेलें, मासिक समाचार चयन, रेलवे शब्दावली और हिंदी पर्याय, कविता, कहानी। इसी के साथ पत्रिका को रोचक बनाने के लिए 'भगत जी' कार्टून के माधयम से भी रेलकर्मियों और यात्रियों दोनों के जागरण का प्रयास किया गया था। आगे कुछ और स्तंभ शुरू किए गए तथा पत्रिका दिनों-दिन निखरने लगी। पहले अंक से ही वरिष्ठतम रेल अधिकारियों के साथ हिंदी के विख्यात लेखकों का स्नेह और मार्गदर्शन इस पत्रिका को मिलता जिसके कारण 'भारतीय रेल' पत्रिका की गुणवत्ता की लगातार सराहना होती रही है। पत्रिका के विशेषांक में रेल मंत्री, रेल राज्य मंत्री समय-समय पर और अध्यक्ष रेलवे बोर्ड तथा अन्य सदस्यगण और क्षेत्रीय रेलों तथा उत्पादन इकाइयों के महाप्रबंधक नियमित लिखते रहे हैं। आचार्य जे.बी. वमपलानी और श्री के.के. बिड़ला से लेकर श्री सुनील दत्त जैसी हस्तियों ने अपने व्यस्ततम समय में कुछ समय निकाल 'भारतीय रेल' के लिए लेख लिखा है। यही नहीं वर्ष १९६० के बाद के सारे रेल बजट विस्तारपूर्वक भारतीय रेल पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। इस नाते अनुसंधानकर्ताओं के लिए भी यह अनिवार्य पत्रिका बनी। इस पत्रिका में कुछ अत्यंत महत्त्वपूर्ण लेख प्रकाशित हुए हैं जैसे- पहले अंक में अध्यक्ष रेलवे बोर्ड श्री करनैल सिंह का आलेख 'चित्तरंजन तथा सवारी डिब्बा कारखाना एक स्वप्न की साकार प्रतिमा', श्री हेमेन्द्र प्रसाद घोष का लेख 'भारतीय रेलों की स्थापना के पहले और अब', श्री श्रीनाथ सिंह की कहानी 'गुप्तेश्वर बाबू' और बाल स्वरूप राही की कविता 'यात्रा' तथा श्री वमष्ण गुलाटी का लेख 'खेलगाँव से खेलगाँव तक' पहले अंक से ही भारतीय रेल ने रेलवे के तकनीकी साहित्य को हिंदी में उतारने का कार्य भी किया। भारतीय रेल पत्रिका का पहला विशेषांक 'रेल सप्ताह अंक १९६१ के नाम से अप्रैल १९६१ में प्रकाशित किया गया। करीब १०० पन्नों के इस विशेषांक का मूल्य सवा रुपए रखा गया था। इस अंक की काफी धूम रही। पत्रिका में समय के साथ तमाम बदलाव आते रहे और कई नए कालम भी जुड़ते रहे। भारतीय रेल के संपादकों में श्री रामचंद्र तिवारी और श्री प्रमोद कुमार यादव के विशेष प्रयासों के कारण उन्हें पत्रकारिता और साहित्य में विशेष योगदान के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान तथा हिंदी अकादमी, दिल्ली समेत कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। श्री यादव का स्नेह आज भी इस पत्रिका को समय-समय पर मिलता रहता है। भारतीय रेल का संपादक मंडल के सम्मानित सदस्य और खासतौर पर निदेशक, सूचना एवं प्रचार, रेलवे बोर्ड का इस पत्रिका के विकास से संबंधित मामलों में नियमित रुचि लेते रहे हैं। भारतीय रेल पत्रिका को चार-चाँद लगाने में इसके स्थाई स्तंभों का भी विशेष योगदान रहा है। हालाँकि समय के साथ कई स्तंभ बंद हो गए और उनकी जगह नए स्तंभों ने ले ली, लेकिन इसके सभी स्तंभ बेहद लोकप्रिय रहे। शुरुआत में पत्रिका के स्थाई स्तंभ थे- सुना आपने, रेलों के अंचल से, भारतीय रेलें सौ साल पहले और अब, कुछ विदेशी रेलों से, क्रीड़ा जगत में रेलें, मासिक समाचार चयन, रेलवे शब्दावली और हिंदी पर्याय। इसमें रेलवे शब्दावली की अपनी विशेष माँग थी और रेलों में हिंदी को बढ़ावा देने में भी इस स्तंभ ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई। आगे के वर्षों में रेल बजट समाचार पत्रों की दृष्टि में, रेलवे समाचार, बहिनों का पन्ना, नई वमतियाँ, नन्हे मुन्ने, नियुक्ति और स्थानांतरण, आत्मनिर्भरता की ओर, महत्वपूर्ण रेलवे संस्थाएँ, रेलों के उत्पादन कारखाने से, माह का सर्वोत्तम चित्र तथा आपके प्रश्न हमारे उत्तर स्तंभ खास सराहे गए। रेलों के अंचलों की खास खबरों के साथ पत्रिका में परिवहन के अन्य क्षेत्रों के बारे में शुरू से ही उचित सामग्री प्रदान की जाती रही है। स्तरीय साहित्य तो पत्रिका के पहले ही अंक से देखने को मिलता है और अवधी में भी कविताएँ छापी गई हैं। नई कृतियों से पाठकों को अवगत कराने में भी पत्रिका का विशेष योगदान रहा है। इस क्षेत्र में भारतीय रेल को श्री विष्णु स्वरूप सक्सेना और श्री कौटिल्य उदियानी से लेकर जाने-माने लेखक श्री प्रेमपाल शर्मा का लंबे समय से सहयोग मिल रहा है। भारतीय रेल में कई अंकों में तो १०-१५ तक नई किताबों की समीक्षाएँ छपी हैं। इसी तरह बंबई, दिल्ली, कलकत्ता, गोरखपुर, गोहाटी और हैदराबाद की चिट्ठियों का स्थाई स्तंभ भी काफी लोकप्रिय रहा। पत्रिका के अगस्त, १९६८ के अंक से साज-सज्जा में परिवर्तन कर नारी जगत जैसे स्तंभ भी शामिल किए गए, बच्चों के लिए विशेष और रुचिकर सामग्री प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया और पत्रिका में सभी आयुवर्ग के पाठकों का कुछ न कुछ ज्ञानार्जन हो सके, इस बात का सदा प्रयास किया गया। इसी के साथ सूचना देने पर भी विशेष ध्यान रखा गया। भारतीय रेलों के प्रमुख अफसरों की नाम निर्देशिका भी पत्रिका में शुरुआती दौर में छापी जाती थी और नई सूझ-बूझ के धनी रेल कर्मियों पर केंद्रित एक विशेष कालम भी। कई तरह की परिचर्चाएँ भी पत्रिका में आयोजित की गईं और कई अधिकारियों की विदेश यात्राओं के संस्मरण भी खास चर्चा में रहे। भारतीय रेल के विशेषांक भी पाठकों द्वारा विशेष रूप से सराहे गए हैं। पत्रिका के वार्षिक विशेषांक की माँग तो सन १९६१ से ही होती रही है पर इसके कई अन्य विशेषांक भी खूब चर्चा में रहे। १९६२ में 'यात्रा विशेषांक' अक्तूबर, १९६४ में 'आत्मनिर्भरता विशेषांक', अक्तूबर, १९६८ में 'पर्यटन विशेषांक', नवंबर १९६५ में 'एशियाई रेल सम्मेलन अंक' खूब सराहे गए और इसमें एशिया की सभी प्रमुख रेल प्रणालियों पर विशेष सामग्री को खासतौर पर मीडिया ने खूब उपयोग किया। जनवरी, १९७६ में प्रकाशित 'ललित नारायण मिश्र स्मृति अंक', अगस्त, १९७६ में प्रकाशित रेलवे निर्माण कार्य विशेषांक तथा नवंबर, १९७६ में प्रकाशित रेलें और 'उद्योग विशेषांक' भी खूब चर्चा में रहा। भारतीय रेल का 'राजभाषा हिंदी अंक' ;फरवरी, १९७६ राजभाषा पर निकले अन्य पत्रिकाओं के विशेषांकों की तुलना में मील का पत्थर माना जाता है। भारतीय रेल का १९७९ में प्रकाशित पर्यटन अंक तो इतना लोकप्रिय हुआ था कि पाठकों की माँग को पूरा करने के लिए उसे पुनर्मुद्रित कराना पड़ा। इस विशेषांक में सभी रेलों की पर्यटन यात्राओं के विवरणों के साथ देश भर के मेले, त्यौहारों, दर्शनीय स्थलों का विवरण भी था। भारतीय रेल का जून, २००९ विशेषांक भी काफी सराहा गया है। |
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२८ दिसंबर २००९ |