दीपावली
विचार-
दीपक सोने का हो या मिट्टी
का मूल्य दीपक का नहीं उसकी लौ का होता है जिसे कोई अँधेरा नहीं
बुझा सकता।- विष्णु प्रभाकर |
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अनुभूति
में-
शतदल, आलोक श्रीवास्तव, संतोष कुमार खरे और इमरोज़ के साथ दीपावली की
ढेर सी रचनाएँ। |
कलम गही नहिं हाथ-
दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा का विधान है।
प्रकृति में श्वेत आक ऐसा पौधा है, जो... आगे पढ़ें |
दीपावली
सुझाव--मिट्टी
के दीये अच्छी तरह जलें और तेल अधिक न सोखें इसके लिए
उन्हें तीन घंटे तक पानी में भिगोने के बाद सुखाकर प्रयोग करें। |
पुनर्पाठ में - ९ नवंबर २००४
को घर परिवार में गपशप के अंतर्गत प्रकाशित
अनुराधा
का आलेख स्वस्तिक की
महिमा। |
क्या आप जानते हैं?
कि जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने दीपावली के ही
दिन पावापुरी में निर्वाण प्राप्त किया था।
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शुक्रवार चौपाल- शुक्रवार चौपाल इस बार अली भाई के घर पर लगी।
सबीहा का फोन जिसमें निज़ाम का नंबर था दगा दे गया। इस लिए...
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नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला- ५ की घोषणा हो गई है और इस बार जिस विषय पर नवगीत
लिखे जाएँगे वह विषय है- दीपावली। |
हास
परिहास |
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सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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इस सप्ताह दीपावली विशेषांक में
साहित्य संगम के
अंतर्गत प्रतिभा राय की ओड़िया कहानी का हिंदी रूपांतर-
पादुका
पूजन।
राम जैसा
पितृभक्त कौन है, लक्ष्मण-भरत जैसा भ्रातृभक्त और कौन जनमा है
अभी तक! पादुका पूजन में भरत से आगे निकल जाए- ऐसा आदमी नहीं
है इस दुनिया में। विधानबाबू के घर पादुका पूजन देख कोई ऐसा
सोचता है तो कोई हँसता है। कुछ सोचते हैं कि यह सब दिखावटी
भक्ति है। पादुका पूजन, वह भी पिता का नहीं, ना ही माँ का,
बल्कि पिता के छोटे भाई और विधानबाबू के चाचा का। माँ-बाप की
पादुका की बात छोड़ो, उनकी तो कोई तस्वीर तक नहीं है विधानबाबू
के घर पर, पर चाचा की पादुका की पूजा हो रही है। उन दिनों फोटो
नहीं खींची जाती थी, भला यह कैसे कहा जा सकता है? बात है ही
कितनी पुरानी? विधानबाबू का बचपन, अभी तीस-पैंतीस साल पहले
की
ही तो बात है।
पूरी कहानी
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योगेश अग्रवाल
का व्यंग्य
हंगामा देवलोक में
पर्यटन में डॉ. विभा सिंह के
साथ
राम का
शरण स्थल चित्रकूट धाम
11
कृष्णकुमार
यादव का आलेख
दीपावली
मान्यताओं के दर्पण में
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महेशचंद्र
कटरपंच से जानें
दीपावली का दार्शनिक पक्ष
1 |
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पिछले सप्ताह-
दीपावली के स्वागत में
गिरीश बिल्लोरे
मुकुल की लघुकथा
शुभकामनाएँ - एक चिंतन
आज सिरहाने- ज्ञानपीठ से
सम्मानित
कुँवर नारायण का खंड
काव्य वाजश्रवा के बहाने
*
घर परिवार में
अर्बुदा ओहरी के सुझाव
प्रकृति प्रेम के संग दीवाली
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दीपावली की तैयारी करें
कंदील,
बंदनवार,
उपहार और
पकवानों के साथ
सूरज प्रकाश का प्रहसन-
हम कितना रोए
कमरे का
दृश्य। मेज़ पर एक नेम प्लेट रखी है - उमा दत्त दूबे अनजान,
उपन्यासकार। एक लेखकनुमा आदमी कमरे में तेज़ से चहलकदमी कर रहा
है। बार-बार घड़ी देखता है मानो किसी का इंतज़ार का रहा हो।
कभी हवा से बातें करता है तो कभी सोच कर खुश हो जाता है मानो
कोई बहुत बढ़िया आइडिया आ गया हो। वह जेब से पैन निकाल कर
लिखना चाहता है लेकिन उसे कहीं भी कोई काग़ज़ नज़र नहीं आता
है। अपने आपको कोसता है - कैसा लेखक हूँ मैं, कमरे में एक भी
काग़ज़ नहीं। मजबूरन मेज़ की धूल पर ही उँगली से लिखता है। फिर
हथेली पर लिखता है, दीवारों पर लिखता है और लगातार विचारों के
चलते चले आने से परेशान
है।
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प्रहसन
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