कलम गही नहिं हाथ
भेंट श्वेताक से
दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा का विधान है। प्रकृति में श्वेत आक ऐसा पौधा है जिसकी जड़
में दस से बारह वर्ष की आयु में गणेश की आकृति का निर्माण होता
है। इस साल मुझे श्वेत आक के ऐसे पौधे को देखने का अवसर मिला
लेकिन जड़ खोदकर उसकी आकृति देखने के लिए पेड़ का जीवन नष्ट कर
देना कोई मानवीयता नहीं सो गणेश जी वहाँ विराजमान हैं या नहीं
देखने का अवसर नहीं मिला।
सामान्य रूप से आक का फूल नीला या
बैंगनी होता है। हज़ारों नीले बैंगनी फूलों वाले आक के बीच एक
श्वेत आक जन्म लेता है इस कारण इसे राजआक या राजा आक भी कहते
हैं। यह एक अत्यंत उपयोगी पौधा है जिसका उल्लेख लगभग सभी प्राचीन
आयुर्वेदिक ग्रंथों में मिलता है। धनवंतरि निघंटु एवं मदनादि
निघंटु में इसकी दो प्रजातियों का उल्लेख किया गया है- आक और
राजाक। जबकि भाव प्रकाश में इन दो प्रजातियों के उल्लेख के बाद
इसकी एक और प्रजाति रक्ताक का उल्लेख करते हुए उसकी विशेषताओं को
गिनाया गया है। राजा निघंटु के लेखक ने भी इस प्रजाति का उल्लेख
करते हुए आक के तीन प्रकार आक, श्वेताक और वेताक का नाम लिया है।
चरक संहिता में भी इसका उल्लेख मिलता है। अपने औषधीय गुणों के
कारण यह पौधा वर्षों से भारतीय औषधिशास्त्र में महत्त्वपूर्ण
समझा जाता रहा है। भाव प्रकाश के अनुसार इसका प्रयोग चर्म रोगों,
पाचन समस्याओं, पेट के रोगों, ट्यूमरों, जोड़ों के दर्द, घाव और
दाँत के दर्द को दूर करने में किया जाता है। इस पेड़ का दूध
गंजापन दूर करने और बाल गिरने को रोकनेवाला है। इसके फूल, छाल और
जड़ दमे और खाँसी को दूर करने वाले माने गए हैं।
धार्मिक दृष्टि से श्वेत आक को
कल्पवृक्ष की तरह वरदायक वृक्ष माना गया है। श्रद्धापूर्वक
नतमस्तक होकर इस पौधे से कुछ माँगने पर यह अपनी जान देकर भी
माँगने वाले की इच्छा पूरी करता है। यह भी कहा गया है कि इस
प्रकार की इच्छा शुद्ध होनी चाहिए। ऐसी आस्था भी है कि इसकी जड़
को पुष्य नक्षत्र में विशेष विधिविधान के साथ आमंत्रित कर जिस घर
में स्थापित किया जाता है वहाँ स्थायी रूप से लक्ष्मी का वास बना
रहता है और धन धान्य की कमी नहीं रहती। दीपावली के शुभ अवसर पर
मेरे सामने खिला यह श्वेत आक सभी पाठकों के लिए मंगलकारी हो इसी
शुभकामना के साथ,
पूर्णिमा वर्मन
१२ अक्तूबर २००९
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