अनुभूति
में-
नरेश सक्सेना, अंबिका प्रसाद दिव्य, राजीव राय, अभिरंजन कुमार और
दीपिका जोशी की नई रचनाएँ |
कलम गही नहिं हाथ-
चीन ने पूरी दुनिया को अपने अधिकार में
किया हुआ है। कभी वह सीमाएँ लाँघता है, कभी बाज़ारों में घुसता
है तो कभी... आगे पढ़ें |
रसोई
सुझाव-
पनीर को तलने के बाद यदि तुरंत उबलते नमकीन पानी या सब्ज़ी के
शोरबे में डाल दिया जाय तो वह अधिक नर्म और स्पंजी होता है। |
पुनर्पाठ में - १६ दिसंबर
२००१ को
साहित्य संगम के अंतर्गत प्रकाशित नेपाल से गीता केशरी की कहानी
का हिंदी रूपांतर-
खेल। |
क्या
आप जानते हैं?
कि डा. पीताम्बर दत्त
बड़थ्वाल हिंदी साहित्य में डी. लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले
पहले भारतीय विद्यार्थी थे। |
शुक्रवार चौपाल- यह सप्ताह घटनापूर्ण रहा। हिंदी दिवस पर नाटक और
बंगलुरु के रंगकर्मी और साहित्यकार मथुरा कलौनी से भेंट ... आगे
पढ़ें |
नवगीत की पाठशाला में-
जल्दी ही पूरी होने वाली है कार्यशाला- ४, जिसमें नवगीत की
पंक्ति दी गई थी- बिखरा पड़ा है। |
हास
परिहास |
1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
|
|
इस सप्ताह
समकालीन कहानियों के अंतर्गत भारत से
धीरेन्द्र अस्थाना की कहानी
जो मारे जाएँगे
ये बीसवीं
शताब्दी के जाते हुए साल थे- दुर्भाग्य से भरे हुए और डर में
डूबे हुए। कहीं भी, कुछ भी घट सकता था और अचरज या असंभव के
दायरे में नहीं आता था। शब्द अपना अर्थ खो बैठे थे और घटनाएँ
अपनी उत्सुकता। विद्वान लोग हमेशा की तरह अपनी विद्वता के
अभिमान की नींद में थे-किसी तानाशाह की तरह निश्चिंत और इस
विश्वास में गर्क कि जो कुछ घटेगा वह घटने से पूर्व उनकी
अनुमति अनिवार्यत: लेगा ही। यही वजह थी कि निरापद भाव से
करोड़ों की दलाली खा लेने वाले और सीना तानकर राजनीति में चले
आने वाले अपराधियों और कातिलों के उस देश में खबर देने वालों
की जमात कब दो जातियों में बदल गई, इसका ठीक-ठीक पता नहीं चला।
इस सच्चाई का मारक एहसास तब हुआ जब ख़बरनवीसों का एक वर्ग
सवर्ण कहलाया और दूसरा पिछड़ा हुआ। इस कथा का सरोकार इसी वर्ग
से है...
पूरी कहानी पढ़ें...
*
डॉ. सरोजिनी
प्रीतम का व्यंग्य
नमकहीन नमकीन
*
यश मालवीय का ललित निबंध
गीत की चिड़िया
*
रंगमंच में
नारायण भक्त का आलेख
मंच से उजड़ी मन में बसी- नौटंकी
*
रचना प्रसंग में
डॉ. जगदीश व्योम से सीखें
हिन्दी में हाइकु कविता |
|
|
पिछले
सप्ताह
हिंदी दिवस
विशेषांक में
डॉ. नरेन्द्र
कोहली का व्यंग्य
शताब्दी एक्सप्रेस का टिकट
*
डॉ. काजल बाजपेयी का आलेख
अनुवाद के क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी का योगदान
*
चपले सईनाथ
विट्ठल से जानकारी
हिंदी के
प्रारंभिक उपन्यास
*
बदरीनारायण
तिवारी की कलम से
हिंदी के विषय में विदेशियों
के विचार
*
कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
भारत से
मदन मोहन
उपेन्द्र की कहानी
रम्मो बुआ
बड़का
गाँव से आया है, बता रहा था कि रम्मो बुआ गुज़र गईं। सारे गाँव ने
रंज किया, तीन दिन तक गाँव के चूल्हे नहीं जले, बच्चे चने चबा-चबा कर
पेट भर रहे थे। फिर रम्मो बुआ का कारज हुआ। इतना पैसा इकट्ठा हुआ कि
किसी सामान का घाटा नहीं पड़ा। बड़का गाँव की लच्छेदार भाषा में
रम्मो बुआ की कीर्ति बखान करता रहा और मेरे भीतर बुआ की बीती
स्मृतियाँ ताज़ी होती रहीं। रम्मो बुआ की अपनी कहानी रही थी,
उन्होंने अपने जीवन को संघर्षों के बीच बड़े साहस से जिया था और हार
नहीं मानी थी। मेरा बचपन रम्मो बुआ की मीठी लोरियों और दुलार भरी
थपकियों का बहुत दिनों तक गवाह रहा था।
पूरी कहानी पढ़ें...
|