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                      | मेरा अख़बार पढ़ने का समय सुनकर 
                    सभी हँसते हैं। कहते भी हैं, "उस वक्त तक तो ख़बर भी बासी हो 
                    चुकी होती है, फिर पढ़ने से क्या फ़ायदा?" लेकिन मुझे तो दिनभर की सबकी टीका-टिप्पणी सहित रात में एक-एक 
                    ख़बर को चिंतन-मनन के साथ पढ़ने में कुछ और ही मज़ा आता था। 
                    कभी तो वहाँ लिखी समस्या का समाधान का मार्ग सपने में खोज रही 
                    होती हूँ।
 ऐसी ही एक 
                    रात में समस्या की पोटली उठाए स्वर्ग की अदालत पहुँची। उस समय 
                    वहाँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर की उपस्थिति में सभी देवी-देवता 
                    मिलकर गोपनीय बैठक का संचालन कर रहे थे। मुझे द्वारपाल ने अंदर 
                    घुसने ही नहीं दिया और वहीं बाहर प्रतीक्षालय में बैठकर 
                    इंतज़ार करने का आदेश दिया। विवश मैं कर भी क्या सकती थी, वहीं 
                    बैठ गई और पूछा, "किस मकसद से बैठक है? कब से चल रही है?" उसने कहा, "तुम मनुष्यों के 
                    विषय पर ही वह सभा हुई है, अभी कुछ देर और चलेगी।"काफी देर इंतज़ार करने के बाद भी सभा समाप्त नहीं हुई तो मैं 
                    परेशान होने लगी।
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