अनुभूति
में-
कन्हैयालाल नंदन, दिनेश ठाकुर, मधुलता अरोरा, सुरेन्द्र भूटानी और
रमा द्विवेदी की नई रचनाएँ। |
कलम गही नहिं हाथ-
हिंदी रंगमंच का अत्यन्त चर्चित नाटक ‘जिस
लाहौर नहीं वेख्या ओ जन्म्याइ नइ’ इस वर्ष
बीसवीं वर्षगाँठ... आगे पढ़ें |
रसोई
सुझाव-
केले, बैंगन या आलू काटकर तुरंत पानी में रख दें, फिर चाहें
जितनी देर बाद पकाएँ वे काले नहीं पड़ेंगे, न उनका स्वाद खराब
होगा। |
पुनर्पाठ में - १५
मई
२००१ को
साहित्य संगम के अंतर्गत प्रकाशित विपिन बिहारी मिश्र की उड़िया कहानी
का हिंदी रूपांतर-
प्रतियोगी। |
क्या
आप जानते हैं?
कि हिंदी का सबसे पहला उपन्यास परीक्षा गुरू वर्ष १८८२ में
सुप्रसिद्ध हिंदी गद्यकार लाला श्रीनिवास दास द्वारा लिखा गया था। |
शुक्रवार चौपाल- बहुत दिनों बाद चौपाल आज फिर लगी।
उपस्थित लोगों में थे प्रकाश, डॉ. उपाध्याय, सबीहा, मिलिंद
तिखे, प्रवीण जी और... आगे
पढ़ें |
नवगीत की पाठशाला में-
१1सितंबर
से प्रकाशित करेंगे1कार्यशाला-४1के
गीत।1इस1बार
भी नवगीत कम ही हैं पर कुछ अच्छे गीत ज़रूर पढ़ने को मिलेंगे। |
हास
परिहास |
1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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इस सप्ताह
कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
भारत से फ़ज़ल इमाम
मल्लिक की कहानी
उदास आँखोंवाला लड़का
स्टेडियम के एक सिरे पर बने
लोहे के फाटक को थामे वह चुपचाप खड़ा था... उदास... उदास...।
जगमगाती रोशनी... छूटती फुलझड़ियाँ... और लोगों के हजूम में
चुपचाप उदास खड़े उस लड़के को देख कर भीतर कहीं कुछ हुआ था...
कुछ टूटा-सा खट से... ये तीसरा दिन था जब उसके चेहरे पर
सन्नाटा पसरा रहा था और वह लोहे के फाटक से लगा लोगों को
खुशियाँ मनाते चुपचाप देख रहा था... आखिर वह क्यों उदास है।
जैसे किसी ने चुपके से मुझसे पूछा। आज तो उसे खुश होना चाहिए,
मेरे भीतर किसी ने कहा... जहाँ हज़ारों लोग खुश हों वहाँ अकेले
उस एक लड़के की उदासी भीतर ही भीतर मुझे परेशान कर रही थी।
ईडेन गार्डन में जमा हज़ारों की भीड़ में वह अकेला चेहरा मुझे
अपनी तरफ़ खींच रहा था। जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए था। मुझे भी
लोगों की उस जमात में शामिल होकर अज़हरुद्दीन और उनके साथियों
के स्वागत में तालियाँ बजानी चाहिए थी।
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डॉ. अशोक गौतम
का व्यंग्य
परेशान पड़ोसी
*
दृष्टिकोण में ऋषभदेव शर्मा का
आलेख
हिंदी में वैज्ञानिक लेखन
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कुबेर नाथ राय
का ललित निबंध
कुब्जा सुंदरी
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समाचारों में
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ |
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पिछले
सप्ताह
अनूप शुक्ला
का व्यंग्य
रामू ज़रा चाय पिलाओ
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शैलेन्द्र-जयंती के अवसर पर
डॉ. इंद्रजीत सिंह की कलम से
गीतकार शैलेन्द्र
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रंगमंच में
मिथिलेश श्रीवास्तव का आलेख
यह समाज यह संस्कृतिः
आज का नाटक
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फुलवारी के अंतर्गत गैंडे के विषय में
जानकारी,
शिशु गीत और
शिल्प
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समकालीन कहानियों के अंतर्गत यू. एस. ए से सुषम
बेदी की
कहानी
तीसरी दुनिया का मसीहा
ब्रूनो ने
बात कहते-कहते स्टीयरिंग से हाथ उठा लिए और सही लफ़्ज़ों की
तलाश की जद्दोजहद में हाथों की संप्रेषण शक्ति की पूरा
इस्तेमाल करते हुए पूरे जोशोख़रोश के साथ अपनी बात खोलने लगा-
''-- इस देश में आदमी का जिस्म भी एक इंडस्ट्री है... सारे
डॉक्टर उसी की कमाई खाते हैं... कोई न कोई बीमारी उगाकर पैसा
बनाने की फ़िराक़ में रहते हैं। इन डॉक्टरों में कोई इंसानी
हमदर्दी थोड़े न है... जितनी बड़ी आपकी बीमारी हो उतनी ही खुशी
से वे फूलते-फैलते हैं। आप तो दर्द से कराह रहे होते हैं और वह
आपकी नब्ज़ पर हाथ रखे कोई बेहतर नई गाड़ी या बड़े से बड़ा घर
ख़रीदने की सोच रहा होता है...'' पहले सहायक भाषा
के रूप में उसका एक हाथ ही उठता रहा था... पर अब बार-बार दोनों
हाथ स्टीयरिंग से उठ जाते।
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