किसी ने इन्द्र भगवान को बादलों पर आयोग बैठाने की
सलाह दी। लेकिन उनको पता चला कि आयोग बैठ जाता है और साथ में जाँच को बैठा लेता है।
जाँच और आयोग सालों तक बैठे रहते हैं। कुछ नहीं करते। बैठे-बैठे दोनों बालिग हो
जाते हैं। बालिग लोगों को आपसी सहमति से जो मन आए वो करने की छूट है इसलिए जाँच और
आयोग के मामले में कोई कुछ बोलता भी नहीं। बहुत हल्ला मचाओ तो एक ठो रिपोर्ट पैदा
करके थमा देते हैं! जाँच और आयोग मिलकर असलियत की ज़मीन
पर रिपोर्ट की फ़सल उगाने का काम करते हैं।
इसलिए इन्द्र भगवान असलियल जानने के लिए बादलों से बात करते हैं। बादल-बादल,
बदली-बदली पूछताछ करते हैं। उनके पास अपने बहाने हैं। कोई बादल कह रहा है कि उसके
पास पानी ज़्यादा है। ले जाने के लिए कुली बादल दिया जाए।
भगवान टोंकते हैं सालों से तुम खुद अकेले बरसने जा रहे हो और आज क्यों तुम्हें कुली
बादल चाहिए? बादल ने सूचना दी कि अब उसका प्रमोशन हो गया है और उसे नियमानुसार पानी
उठाकर ले जाने के लिए कुली बादल चाहिए। इन्द्र भगवान उसे बहला रहे हैं,
''यार लेते जाओ पानी। जैसे पहले बरसते आए वैसे बरस आओ। कुली
के पैसे क्लेम कर लेना। हम बिल पास करवा देंगे। बादल अपने पिछले बिल के अभी तक पास
न होने का उलाहना देता है। इन्द्र भगवान उसे आश्वासन देते हैं कि जल्द ही उसे पास
करवा देगे और आगे बढ़ते हुए बिल क्लर्क को चाय-पानी करवा देने की समझाइश देते जाते
हैं।
दूसरा बादल अपनी परेशानियाँ
बताता है कि उसके साथ की बदली उसको छेड़ती है और रास्ते भर कहती है- तुम तो बादल
लगते ही नहीं हो। कित्ते क्यूट हो। कहाँ बरसने के लिए पानी लिए जा रहे हो। ये पानी
मुझे दे दो न! हमें अपना मेकअप छुड़ाना है।
इन्द्र भगवान उसको समझाते हैं- असल में वो वाली बदली शापग्रस्त अप्सरा है। मेकअप
करने और छुड़ाने के अलावा उसे और कुछ आता नहीं। तुम्हारे साथ इसीलिए लगाया कि तुम
जैसे रूखे-सूखे के बादल के साथ रहेगी तो कुछ बरसना भी सीखेगी। वैसे भी वो एक साल के
लिए ही शापित है। इसके बाद फिर उसे महफ़िलों में सजना है। न जाने कितने देवताओं को
प्रिय है। कइयों की मुँहलगी है। उससे कुछ कहते भी नहीं
बनता।
एक बदली उलाहना देती है,
''साहब अब बरसने से क्या फ़ायदा। पहले बरसते थे तो लोग भीगते
थे हमारे पानी से। बच्चे छप्प-छप्प, छैयाँ-छैयाँ खेलते थे। अब तो जहाँ बरसाती हूँ
लोग छतरी तान देते हैं। कित्ता दुख होता। हम यहाँ से बरसने के लिए धरती पर जाएँ और
वो हमसे परदा कर लें। छाते की नोक भाले- सी चुभती है।
इन्द्र भगवान बदली को निहारते हुए उवाचते हैं,
'' तुम तो सब जानती हो। सबने तो अपने यहाँ बोरिंग करवा रखी
है। अपने बाथरूम में भीग लेते हैं रोज़ शावर लगाकर। लेकिन
तुम भी तो अपनी आदत से बाज आओ। न जाने क्यों तुमको शहर ही ज़्या दा
रास आते हैं। बरसने के लिए। गाँव-देहात में जाया करो बरसने के लिए। वहाँ लोग सूनी
आखें लिए तुम्हारा इंतज़ा र करते रहते हैं। यहाँ क्या मिलता
है तुमको जाम सीवर, बंद नालों और खुदी सड़कों के सिवा। क्यों भारत माता ग्राम वासिनी
का पल्ला छोड़कर शहरनिवासिनी के पास जाती हो हमेशा?
बदली ने कारण बताते हुए कहा, '' अब
साहब आपसे क्या छिपाएँ? आपकी बात सही है कि शहरों में कूड़ा,
कचरा के सिवा और कुछ नहीं है लेकिन बड़े-बड़े माल्स तो हैं। वहाँ अपना पानी
फेंककर मैं किसी माल में घुस जाती हूँ और एक के साथ दो फ्री
वाली स्कीम से अपनी पसंद के क्रीम पाउडर ले आती हूँ । इसलिए
शहर मुझे ज़्या दा पसंद आते हैं।
इन्द्रजी ने चेताते हुए कहा,
'' वो तो सब ठीक है लेकिन ऐसा कब तक चलेगा? ड्यूटी चार्ट में
तुमको गाँवों में बरसने की ड्यूटी दी जाती है। लेकिन बरसती तुम शहरों में हो। किसी
ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी लेकर सवाल पूछ दिए तो रोते नहीं बनेगा। सारा
क्रीम पाउडर धुल-पुछ जाएगा।
बदली इठलाती और बल खाते हुए बोली- आपके रहते हुए मुझे किसी बात की चिन्ता नहीं। अब
मैं चली। शहर के माल खुल गए होंगे। देखूँ कौन से नए ब्रांड की क्रीम की सेल लगी है
आज!
इन्द्र भगवान आगे खड़े ढेर सारे बादलों से पूछताछ के लिए बढ़े लेकिन तब तक पता चला कि
बादलों का चाय का समय हो चुका था। इंद्र भगवान को भी चयास लगी थी। वे लपक कर अपने
चैम्बर में पहुँचे और घंटी बजाकर बोले, '' रामू,
जरा चाय पिलाओ।''
२४ अगस्त २००९