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हास्य व्यंग्य

परेशान पड़ोसी
डॉ. अशोक गौतम


खुदा सभी को सभी कुछ दे पर परेशान पड़ोसी न दे। वह कई दिनों से मुझे परेशान किए बैठे था, खुद तो परेशान था ही। इधर कमबख्त अपनी ही परेशानियाँ क्या कम हैं, ऊपर से पड़ोसी की परेशानियाँ और। चलो पड़ोसी की परेशानियों में खुद को शामिल कर भी लिया जाए,पर पड़ोसी भी तो उस लायक होना चाहिए। भाई साहब, आप हर चीज़ से पीछा छुड़ा सकते हैं पर दो चीज़ों से नहीं, एक प्रेमिका से और दूसरे पड़ोसी से।

वह उस दिन घंटों मेरे घर में बैठे रहा। परेशान! मुझे भी कमबख्त ने परेशान कर डाला था। उस दिन तो मैंने खुदा से गुहार लगाई थी कि या मेरे खुदा या तो मुझे इस लोक से उठा ले या मेरे इस पड़ोसी को।
''तू धर्म को मानता है क्या?''
''मानता हूँ। न मानता तो अपनी पत्नी का धर्म पति कैसे होता?''
''अच्छा, एक बात बता? धर्म तेरे लिए क्या है?''
''धर्मांधता।'' मुझे उस वक्त बड़ा गुस्सा आया था। यार पूछना ही है तो पूछ तेरे जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी क्या है, जिसे मैं आज भी झेल रहा हूँ। तो मैं दुनिया भर की पीड़ा जीभ पर लिए कहूँ कि हे मेरे दोस्त! मेरे जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी है कि मैं बड़े कालर खड़े करके निकला था प्रेमी बनने और बन गया पति। पर वह तो आज धर्म के पीछे हाथ मुँह धो कर पड़ा था।
''धर्म हमें क्या क्या करने की इजाज़त देता है?''
''सबकुछ करने की।'' मैंने इतनी सहजता से कहा जैसे मैं धर्म का ठेकेदार होऊँ।
''तो एक बात कहूँ! पर किसीको भी मत कहना। मन में उसने महीनों से उथल पुथल मचा कर रखी है। घर का न खाना अच्छा लग रहा है न पीना। पत्नी के साथ रहते हुए भी जागते हुए भी वही दिखती है और सोए हुए भी वही। मैं दूसरा विवाह करना चाहता हूँ बस! क्या अपना धर्म इसकी इजाज़त देता है? मेरा कहीं और दिल आ गया है। अब तुझसे छिपाना क्या!''
''इस उम्र में? अपना धर्म फिलहाल तो इसकी इजाज़त नहीं देता। आधे बाल तो तेरे सफ़ेद हो चुके हैं! अब आगे की सोचने के दिन शुरू हो गए और एक तू है कि...'' पर उसने मेरी एक न सुनी। अपनी ही बकता रहा।
''तो क्या धर्म बदला जा सकता है?''
''क्यों नहीं। धर्म तो यहाँ जांघिए से भी आसानी से बदला जा सकता है।''
''सच!!''
''सोलह आने सच।''
''तो क्या मैं धर्म बदल कर फिर सुहागरात मना सकता हूँ?'' मत पूछो उस वक्त उसके स्याह चेहरे पर कितना नूर झलका था।
'' हाँ!!''
''कौन-सा धर्म?''
''उसी धर्म को जिसे पिछले दिनों एक आदरणीय ने अपनाया था।''

मुझे उसकी इस बात पर उससे भी ज़्यादा हँसी आई थी, सो मैंने उससे पूछा, ''पहली ठीक ढंग से पाल रहा है क्या! परेशानियों से काले पड़े चेहरे पर क्यों कालिख मलने को आमादा है?''
''पालने वाला मैं कौन? तू कौन? जिसने सिर दिया है सेर देने वाला तो वही है। दुनिया में आए हैं तो मन मसोस कर क्या जीना मित्र! क्या पता कब प्राण पखेरू उड़ जाएँ।''
''तो दो दो को विधवा करने की सोची है क्या?'' आगे उसने कुछ नहीं कहा चुपचाप मेरे यहाँ ये उठा और... और सच मानिए, उस दिन पता नहीं भगवान ने मेरी कैसे सुन ली। अगले दिन पड़ोसी गायब। खुशी में पगलाया ज्यों ही उसके घर लड्डू बाँटता पहुँचा तो दिमाग़ ने कहा, ''रे पगले! ये तू लड्डू बाँटता कहाँ आ गया? इनको अगर तेरे लड्डू बाँटने के कारण का पता चल गया तो गए सिर के पचासों दवाइयाँ लगाकर बचाए बाल भी।'' और मैं सिर पर पाँव रख वहाँ से हवा हो लिया।

घरवालों ने उसके गायब होने के इश्तिहार कहाँ-कहाँ नहीं दिए! शहर के शौचालय से लेकर पुस्तकालय तक उनकी गुमशुदगी के पर्चे चिपकाए गए, पर नतीजा सिफ़र। अख़बारों में पर्चे बाँटे गए तो उसके गायब होने की सूचना पा घर मे उधार लेने वालों की कतार आ लगी। घरवालों को तब पता चला कि उसने किस-किसको चाटा हुआ था।
धीरे-धीरे जब उसकी घरवाली भी उसे भूलने लगी तो हम कौन होते उसे याद रखने वाले? हाँ कभी-कभी जब पत्नी से नोक झोंक सीमा से बाहर हो जाती तो वह बड़ा याद आता और मेरा मन भी करता कि...

और कल वह अचानक फिर प्रगट हो गया। अकेले नहीं, नई बीवी के साथ। कर्मजली उसकी एक्स पत्नी ने ही यह शुभ खबर दी।
वह शान से बंधु सीना फुलाए हुए। चेहरे की सारी झुर्रियाँ कहीं गायब। न कोई शर्म न कोई हया। चार महीने सेहत सुधार के लिए घर से अलग रहने के लिए काफी होते हैं शायद।
''और बंधु! कैसे हो? इतने दिन आखिर कहाँ रहे? ये आखिर साथ में है क्या? कर ही गए न आखिर अपने मन की।''
''अब मैं बंधु नहीं, कुछ और हूँ। मैंने नाम बदल लिया है।''
''इस धर्म से तो नाम कटवा लिया, अब ऊपर भी बही में नाम बदलवा लेना।''

''वहाँ भी अर्जी दे दी है, चिंता न कर।'' कह उन्होंने डाई की मूँछों पर ताव दिया तो मेरी काली मूँछें भी सफेद हो गईं। धर्म कल्प सच्ची को गधे का भी हुलिया बदल कर रख देता है। फिर उन्होंने सगर्व ऐलान किया, ''हे मुहल्ले वालो! अब हम राम प्रकाश नहीं रहे। अब हम रहमान रौशन हो गए हैं। अत: सभी को सूचित किया जाता है कि अब हमें इसी नए नाम से जाना जाए। पुराने नाम के खात्मे के साथ अब अपने पुराने सारे संबंध खत्म। कल हमने कमेटी हाल में रिसेप्शन रखी है,  श्रीमती जी सहित सभी सादर आमंत्रित हैं। अब चाहे माँ रूठे या बाबा हमने दूसरी शादी कर ली, धर्म ने हँस के हामी भर ली...'' गुनगुनाते वे जिस आटो में आए थे उसी आटो में चले गए, नई बेगम के साथ।
भगवान उसकी आत्मा को शांति दे!!

३१ अगस्त २००९

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