अनुभूति
में- देशभक्ति के गीतों का संकलन, कमलेश भट्ट कमल, विनोद शर्मा,
पवन चंदन और आचार्य संजीव सलिल की रचनाएँ |
कलम गही नहिं हाथ-
स्वतंत्रता दिवस की अनेक शुभकामनाएँ!
अमर रहे गणतंत्र हमारा! हमारी भाषा,
साहित्य और संस्कृति का विकास हो....
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रसोई
सुझाव-
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मेहमानों के स्वागत के लिए
तिरंगी बर्फी और
तिरंगे सैंडविच
से बेहतर और कुछ नहीं। |
पुनर्पाठ में -
२४ जनवरी २००४ के अंक में
प्रकाशित, मीरा कांत की कहानी
विसर्जन |
क्या
आप जानते हैं?
मिस्र में १३८ पिरामिड हैं लेकिन इनमें से गीज़ा का सिर्फ एक
विशालकाय पिरामिड
ही विश्व के सात आश्चर्यों की सूची में है। |
शुक्रवार चौपाल- गर्मी का मौसम है और चौपाल में आजकल चल रहे हैं छुट्टी के दिन। प्रारंभ होने की सूचना सदस्यों को ईमेल से दी जाएगी। |
नवगीत की पाठशाला में इस माह नवगीत की रचना से संबंधित लेखों का
प्रकाशन किया जा रहा है। सभी के सुझावों का स्वागत है। |
हास
परिहास |
1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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इस सप्ताह
स्वतंत्रता-दिवस विशेषांक में
समकालीन कहानियों के
अंतर्गत
रमाशंकर श्रीवास्तव की
व्यंग्य
कथा
इंडियागेट की बकरी
देश की बकरियों के भविष्य पर गंभीरता से विचार करने के लिए
दिल्ली में इंडिया गेट पर एक सभा हुई। तीन दिनों तक तंबू-टेंट
तने रहे। भाषण होते रहे, भोजन-पानी चलता रहा और पुलिसवाले भी
खड़े रहे। भारत के कोने-कोने से प्रतिनिधियों का आना जारी रहा।
प्रस्ताव में कहा गया कि बकरियाँ इस देश की अमूल्य पशुधन हैं।
राष्ट्र के सकल उत्पादन में बकरियों का योगदान तेरह अरब रुपए
हैं। बकरियाँ इस महान देश को हर साल पच्चानबे करोड़ लीटर दूध,
उन्नीस करोड़ किलोग्राम मांस और सात करोड़ किलो खाल देती हैं।
उनकी संख्या बारह करोड़ है। गांधी जी के समय से उन्हें महत्व
मिलता आया है। वे भारतीय अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती
हैं। अतः उनकी शक्ति को कम न कूता जाए। यदि वे आंदोलन की राह
पर चल पड़ें तो समूचे देश की फसल को चर सकती हैं अथवा अपने
खुरों से रौंदकर बर्बाद कर सकती हैं। अतः आवश्यक है कि उनके
हितों की रक्षा की जाए। पूरी कहानी पढ़ें...
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नरेन्द्र कोहली
का व्यंग्य
खाली करनेवाले
*
राजेन्द्र उपध्याय की कलम से
स्वतंत्रता की साधक सुभद्राकुमारी चौहान
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डॉ. के. एन. पी. श्रीवास्तव का आलेख
आज़ादी में
पत्रकारिता का योगदान
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मिथिलेश श्रीवास्तव की
रचना
कला में आज़ादी के सपने |
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पिछले
सप्ताह
महेश
सांख्यधर का व्यंग्य
जिन लूटा तिन पाइयाँ
* सुषम
बेदी का निबंध
प्रवासी भारतीयों का साहित्यिक
उपनिवेशवाद
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आज सिरहाने मन्नू भंडारी की कृति
एक कहानी यह भी
*
विज्ञान वार्ता में डॉ. गुरुदयाल प्रदीप की
रचना
हमारी नींद हमारे सपने
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साहित्य संगम में रमानाथ राय
की बांग्ला कहानी का हिंदी रूपांतर
तिमंज़िले का कमरा
1
तिमंज़िला
मकान। पहली मंज़िल पर तीन कमरे। एक रसोईघर, एक बैठक और सोने
वाला कमरा। सोने वाले कमरे में मेरी बुढ़िया रहती है।
पोते-पोतियाँ रहते हैं। दोमंज़िले पर तीन कमरे हैं।
एक कमरे में बड़ा बेटा रहता है, बड़ी बहू रहती है।
और एक कमरे में छोटा बेटा रहता है, छोटी बहू रहती है। इसके
बाद वाले कमरे में मेरी बेटी रहती है। मगर तिमंज़िले पर
सिर्फ़ एक कमरा है। उस कमरे में मैं अकेला रहता हूँ। हर
वक़्त अकेला रहना अच्छा नहीं लगता। अपनी बुढ़िया से कभी-कभी
बातें करने का बहुत मन करता है। सुबह मेरी पोती मेरे लिए चाय
ले आती है। उसके हाथ से चाय का प्याला लेकर मैं एक चुस्की
लेता हूँ। फिर उससे पूछता हूँ, ''तेरी दादी क्या कर रही
है?''
''चाय पी रही हैं।''
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