देश की बकरियों के भविष्य पर
गंभीरता से विचार करने के लिए दिल्ली में इंडिया गेट पर एक सभा
हुई। तीन दिनों तक तंबू-टेंट तने रहे। भाषण होते रहे,
भोजन-पानी चलता रहा और पुलिसवाले भी खड़े रहे। भारत के
कोने-कोने से प्रतिनिधियों का आना जारी रहा।
प्रस्ताव में कहा गया कि बकरियाँ
इस देश की अमूल्य पशुधन हैं। राष्ट्र के सकल उत्पादन में
बकरियों का योगदान तेरह अरब रुपए हैं। बकरियाँ इस महान देश को
हर साल पच्चानबे करोड़ लीटर दूध, उन्नीस करोड़ किलोग्राम मांस
और सात करोड़ किलो खाल देती हैं। उनकी संख्या बारह करोड़ है।
गांधी जी के समय से उन्हें महत्व मिलता आया है। वे भारतीय
अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती हैं। अतः उनकी शक्ति को कम न
कूता जाए। यदि वे आंदोलन की राह पर चल पड़ें तो समूचे देश की
फसल को चर सकती हैं अथवा अपने खुरों से रौंदकर बर्बाद कर सकती
हैं। अतः आवश्यक है कि उनके हितों की रक्षा की जाए और उनकी
प्रगति के लिए कुछ ठोस कार्यक्रम बनाए जाएँ।
मंच पर बैठे शुभचिंतकों में
से एक ने उठकर गंभीरता से प्रस्ताव रखा, ''कोई भी निर्णय लेने
के पहले उचित होगा कि हम बकरियों को भी यहाँ बुला लें।'' |