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                          इस सप्ताह- समकालीन 
                      कहानियों में भारत से 
                      दीपक शर्मा की कहानी 
                      माँ का दमा 
                       पापा 
                      के घर लौटते ही ताई उन्हें आ घेरती हैं, ''इधर कपड़े वाले 
                      कारखाने में एक ज़नाना नौकरी निकली है। सुबह की शिफ़्ट में। 
                      सात से दोपहर तीन बजे तक। पगार, तीन हज़ार रुपया। कार्तिकी 
                      मज़े से इसे पकड़ सकती है...'' 
                      ''वह घोंघी?'' पापा हैरानी जतलाते हैं। 
                      माँ को पापा 'घोंघी' कहते हैं, ''घोंघी चौबीसों घंटे अपनी 
                      घूँ घूँ चलाए रखती है दम पर दम।'' पापा का कहना सही भी है। 
                      एक तो माँ दमे की मरीज़ हैं, तिस पर मुहल्ले भर के कपड़ों की 
                      सिलाई का काम पकड़ी हैं। परिणाम, उनकी सिलाई का मशीन की 
                      घरघराहट और उनकी साँस की हाँफ दिन भर चला करती है। बल्कि 
                      हाँफ तो रात में भी उन पर सवार हो लेती है और कई बार तो वह 
                      इतनी उग्र हो जाती है कि मुझे खटका होता है, अटकी हुई उनकी 
                      साँस अब लौटने वाली नहीं। 
                      ''और कौन?'' ताई हँस पड़ती हैं, ''मुझे फ़ुर्सत है?'' 
                      पूरा घर, ताई के ज़िम्मे है। सत्रह वर्ष से।
                       
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              * 
      रमाशंकर श्रीवास्तव का व्यंग्य 
      तारीफ़ भी एक बला है 
      
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      महानगर की कहानियों में सुधा अरोड़ा की लघुकथा 
      सुरक्षा का पाठ 
      
              * 
                            रूपसिंह चन्देल द्वारा अनूदित कोनी का 
                            संस्मरण 
                            मेरे मित्र 
                            लियो तोल्स्तोय 
              
      
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              दिविक रमेश का निबंध 
              मिथक: अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम 
      
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      पिछले
      सप्ताह 
              
      श्यामसुंदर दास का व्यंग्य 
      नेता जी का भाखा प्रेम 
      
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                            धारावाहिक में प्रभा 
                            खेतान के उपन्यास 
                            आओ पेपे घर चलें का 
                            अंतिम भाग 
              
      
              * 
      रसोई में दीपिका जोशी प्रस्तुत कर रही हैं 
      सप्ताहांत का रात्रि भोज 
      * 
      फुलवारी में हाथी के विषय में 
      जानकारी, 
      शिशु गीत और 
      शिल्प 
                            
              * 
                      
                           
              
                      कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
               
                      दुर्गादत्त जोशी की कहानी 
                      दूसरी 
                      औरत 
                      
                     शहर 
                      से कोसों दूर बढ़ापुर नाम का एक गाँव है, गाँव में चौहान 
                      जाति के ठाकुर रहते हैं, पुराने ज़मींदार थे। आज भी 
                      किसी-किसी के पास आठ-आठ दस-दस एकड़ ज़मीन है। फसल भी अच्छी 
                      हो जाती है हर एक के खेत में टयूबवेल लगा है, कुछ घर 
                      ब्राह्मणों के हैं जो खेती नहीं करते हैं खेत भी नहीं है, 
                      कुछ और जातियों के घर भी हैं जो इन ज़मींदारों के घर पर काम 
                      करते हैं, फसल पर कुछ अनाज मिल जाता है कुछ मजदूरी करते हैं 
                      जहाँ भी आसपास काम मिल गया, कुल मिलाकर गाँव खुशहाल है। इसी 
                      गाँव में राजेश नाम का एक किसान रहता है, कोई पैंतीस छत्तीस 
                      साल का होगा, सात आठ साल पहले उसकी शादी हुई थी कमलेश के 
                      साथ, कमलेश देखने में खूबसूरत थी, उसके पिता जी भी बड़े 
                      ज़मींदार थे, राजेश के पिता नहीं थे, वह दस बारह साल पहले 
                      किसी दुर्घटना में मारे गए। राजेश ने अपने चाचा चाची के साथ 
                      जाकर कमलेश को देखा, देखते ही राजेश शादी को तैयार हो गया।
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               अनुभूति 
              में-  
              डॉ. जयजयराम आनंद, अमर ज्योति,  हरि जोशी, रामनिवास मानव और 
              अशोक बाजपेयी की नई 
              रचनाएँ  | 
                 
               
               
              
                      
                
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          कलम गही नहिं 
          हाथ- पिछला सप्ताह हिंदी जगत को शोकाकुल करने वाला था। 
          एक सड़क दुर्घटना में तीन कवि हमारे बीच नहीं रहे और
          ...  आगे पढ़े  | 
                 
                
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                  रसोई 
                  
                  सुझाव- 
                  चना, मटर जैसे चीज जल्दी गलाने के लिए उबालतले समय पानी में नमक 
                  और रिफाइड तेल की कुछ बूंदे डाल दें। | 
                 
                
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                  पुनर्पाठ 
                  में - ९ जून २००१ को प्रकाशित पद्मेश गुप्त की 
                  कहानी कश्मकश।  | 
                 
                
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                  शुक्रवार चौपाल- 
              यह सप्ताह हम तुम और गैंडा फूल के प्रदर्शन का है। अधिकतर रिहर्सल 
              दुबई में ही चल रहे हैं क्यों कि कलाकार...  आगे 
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                  सप्ताह का विचार- अपने भाई बंधु जिसका आदर करते हैं, दूसरे 
                  भी उसका आदर करते हैं।  
 - महाभारत  | 
                 
                
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                  हास 
              परिहास  | 
                 
                
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                  सप्ताह का 
                  कार्टून 
              
              
                  कीर्तीश की कूची से  | 
                 
                
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                   नवगीत की 
                  पाठशाला- में जारी मई माह की कार्यशाला-२ का विषय है- गर्मी के दिन, सभी 
                  भाग ले सकते हैं।  | 
                 
                 
              
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