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१५

तेरहवाँ भाग

किसी तरह हमलोग घर पहुँचीं। कैथी बिल्कुल खामोश थी। मैंने ही चुप्पी तोड़ी, ''कैथी! आई एम सॉरी, आज मेरे कारण...''
उसने मेरे मुँह पर हाथ रखते हुए कहा, ''चुप, बिल्कुल चुप। भूल जाओ। इस हादसे का ज़िक्र तक मत करना। ब्रैडी पुलिस को खबर दिए बिना नहीं मानेगा, किसी भी हालत में नहीं। जो कुछ भी घटा, बस यहाँ रख लो।'' वह कलेजे पर हाथ रखती हुई बोली।

मैं उस काले आदमी के बारे में सोच रही थी। कैथी ने दो हरी गोलियाँ खाई, मुझे चाकलेट मिल्क दिया और कहा, ''चलो अपने-अपने कमरे में सो जाएँ। ब्रैडी जगाएँगे तब कह दूँगी, मुझे माइग्रेन हो गया है। यों भी शायद बिस्तर से न उठ सकूँ।''
उसके चेहरे पर अब भी दहशत के चमगादड़ लटक रहे थे।
''तुम नहीं जानतीं कि आज हम मौत के मुँह से बच आई हैं। तुम्हारा वह दोस्त यदि वक्त पर नहीं पहुँचता...''
''दोस्त!'' मैं सोचने लगी।
''अच्छा प्रभा! मैं सोने जा रही हूँ। मेरा सर चकरा रहा है।''
दूसरे दिन कैथी को तेज़ बुखार था। डॉ. ब्रैडी चिंतित थे। मैंने कहा, ''आप जाइए, मैं सम्हाल लूँगी।''
''नहीं, लगता है इसको कोई सदमा पहुँचा है। अच्छा प्रभा! कल इसकी एलिजा से बात हुई है क्या?''
''नहीं, नहीं तो! क्यों मिसेज डी ठीक हैं ना?''
''नहीं, मैं तुम्हारी छुट्टी खराब करना नहीं चाह रहा था। बात यह है कि...'' फिर वे एकदम से चुप हो गए।
''क्या हुआ मिसेज डी को? प्लीज मुझे बताइए। विश्वास रखिए, बात मुझ तक ही रहेगी।''
''नहीं, बात तो कैथी को भी पता चलेगी ही। एलिजा ने दो दिन पहले नींद की गोलियाँ खा ली थीं, आत्महत्या की चेष्टा। पर बचा ली गई। मगर अब मेंटल डिरेंजमेंट के आरोप पर डॉ. डी ने कोर्ट से अलग रहने की इज़ाज़त ले ली है। अच्छा होता, ज़हर न खाकर एलिज़ा खुद तलाक दे देती। मगर एलिज़ा की ज़िद वह जीएगी कैसे डॉ. डी के बिना?''
''हो सकता है कि कैथी को पता चल गया हो और उसने मुझसे छुपाया हो? मुझे तो बस उसने यही कहा था कि सर में तेज़ दर्द हो रहा है।''
''अच्छा ये दवाइयाँ रखो और हो सके तो उसे अधिक से अधिक दूध और फल रस देती रहना। मुझे लौटने में देर होगी।''

कैथी के सिर पर बरफ़ की पट्टी रखे मैं बैठी थी। बुखार और तेज़ हो गया था। अब वह डेलिरियम में बीच-बीच में चीख रही थी, ''नो, प्लीज नो। मुझे छोड़ दो।''
''मैं खुद हक्का-बक्का हो रही था। डॉ. ब्रैडी ने दवाइयाँ दो-दो घंटे पर देने के लिए कहा था। दोपहर के बारह बज रहे थे। दवा का यह तीसरा डोज़ था। कल इसी वक्त हमलोग हार्लेम... मगर जितनी दहशत कल नहीं हुई थी, उतनी आज और अधिक। इसका डेलिरियम नहीं उतरा तो? प्रभु तुम! क्यों मुझे टूटते हुए  घर दिखा रहे हो? और यह तो इतनी मोहक हँसती खेलती ज़िंदगी? मैं अपने को ही कोसे जा रही थी। बेकार हार्लेम जाने की बात उठाई।

ख़ैर, चौथी गोली के बाद करीब दो बजे से उसका बुखार कम होना शुरू हुआ, डेलिरियम खत्म हुआ। ''कैथी!'' मैंने उसके माथे पर हाथ रखकर पूछा, ''कैसा लग रहा है?''
एक जोड़ी उदास बादामी आँखों में फीकी मुसकुराहट के साथ उत्तर दिया, ''ठीक हो रही हूँ।''
''दूध पीओगी?''
''हाँ।''
''गर्म या ठंडा?''
''हॉट चॉकलेट।''
दूध पीकर वह फिर सो गई। बुखार उतर रहा था। डॉ. ब्रैडी का फोन आया, ''कैसी है?''
''ठीक हो रही है।''
''आज मेरी एक सेमिनार है। मुझे घर लौटने में बहुत देर हो जाएगी। क्या तुम उसको सम्हाल लोगी?''
''जी बिल्कुल। आप चिंता न करें।''
''अच्छा, सुनो। यह नंबर लिख लो। मेरे एक डॉक्टर दोस्त का है। इमरजेंसी में बुला लेना। वैसे मैं सोचता हूँ ज़रूरत नहीं पड़ेगी और हाँ उसे किसी से फ़ोन पर बात मत करने देना।''
''जी, बिल्कुल ठीक।''
''ओ.के. सी. यू...''

मैं कमरे में लौटी। देखा, वह आँखें खोले छत की ओर देख रही है।
''कैथी! कुछ सम्हल रही हो?''
''हाँ बुखार भी उतर रहा है। प्रभा! मुझे लेमोनेड लाकर दोगी? और काफी सारा बरफ़ हो उसमें।''
''साथ में एक टोस्ट खा लो न? तुमने कल से कुछ खाया भी नहीं।''
''तुमने भी तो नहीं खाया? प्रभा! हम लोग बच गए। सच में बच गए।''
''कैथी! अब इस चर्चा को बंद करो। ख़ैरियत तो यह है कि तुम्हारा बुखार उतर रहा है अन्यथा डेलिरियम में...''
''ओह! लेमोनेड दोगी?''उसने फिर कहा।
''ज़रूर, अभी लाई।''

मैं एक बड़े से ग्लास में उसके लिए लेमोनेड और अपने लिए काफी लेकर लौटी। साथ में ब्रेड और मक्खन थे। दोपहर के चार बज रहे थे। फोन की घंटी बजी। मिसेज डी बोल रही थीं, ''कैथी से बात कराओ। तुम कैसी हो प्रभा!...'' अनंत गहराइयों से उठती हुई वह आवाज़? मन हाहाकार कर उठा।
''कैथी घर पर नहीं है मिसेज डी! वह घंटे दो घंटे में लौटेगी।''
''प्रभा?''
''हाँ एलिज़ा।''
''प्रभा! जिसका मुझे डर था, वही हुआ। मैंने तलाक-पत्र पर साइन कर दिए हैं।''
''अरे?'' मेरे मुँह से निकला।
''हाँ, मुझे नहीं पता था प्रभा! वे मेरे साथ ऐसा करेंगे। मेरी क्या गलती थी प्रभा? तुम बताओ, तुमने भी तो मुझे देखा है।''

वे दस मिनट तक एक ही बात के चारों ओर चक्कर काटती रहीं। मेरी क्या गलती थी...? मुझमें कौन-सी कमी थी? मैंने उसके लिए क्या नहीं किया... वे मुझे पुरानी कमीज़ की तरह उतार फेकेंगे? वह बोलती रही और रोती रही। रो मैं भी रही थी। किसके दुःख से कौन से सदमें से, नहीं मालूम? पर रो रही थी। मिसेज डी की बातें ही सुनती रही। बार-बार गले में एक वाक्य आकर अटक जाता।
''मिसेज डी! पेपे कैसा है? ज़िंदा है? आपको उसकी खबर मिली?''

मैं वापस शब्दों को निगल लेती। नहीं, यह भी कोई वक्त हुआ पेपे के बारे में पूछने का? तलाक-पत्र पर हस्ताक्षर करके रोती हुई स्त्री से एक लावारिस कुत्ते के बारे में पूछने का? ज़िंदा ही होगा। लेकिन उस दिन असाइलम से लौटते वक्त गाड़ी में मिसेज डी ने कहा था।
''यह जीएगा नहीं, ज़्यादा दिन बात यह है कि आइलिन उसको बच्चे की तरह पालती थी और यहाँ तो आखिर जानवर को जानवर की तरह ही रखा जाएगा। नहीं, इस वक्त मुझे पेपे के बारे में चुप रहना चाहिए।

''प्रभा! तुम सुन रही हो?''
''हाँ, हाँ मैं सुन रही हूँ आपकी बातें।''
मैं झूठ बोल रही थी, पता नहीं क्यों?
''प्रभा! कैथी बाहर से लौटे तो उससे फोन पर बात करने के लिए कहना और हाँ, सुनो तुम्हारी वापसी का टिकट किस दिन का है?''
''परसों का।''
''अच्छा, तुम कैथी से पैसे ले लेना। संकोच मत करना पर अपने घर वालों के लिए उपहार ज़रूर ले जाना।''
''नहीं, आप बिल्कुल चिंता न करें एलिज़ा! मेरे पास पैसे हैं।''
''ओ.के. हनी, गॉड ब्लेस यू।''

खट से फोन रखा गया। अब समस्या मेरे सामने थी। कैथी को कैसे बताऊँ? अभी-अभी उसका बुखार उतरा है। वह एलिज़ा को बेहद चाहती थी। कहीं बहन का टूटा घर वापस उसे डेलिरियम में फिर न फेंक दें? लेकिन उसे अनजान रखूँ और कहीं ब्रैडी ने पूछ लिया तो? इस 'तो' का जवाब मुझे नहीं सूझ रहा था। पिछले चार महीनों में ज़िंदगी के इतने हिस्से देख चुकी थी कि लगता था मेरी उम्र अचानक बहुत पक गई है। औऱत की ज़िंदगी के भयावह सच मेरे सामने पर्त-दर-पर्त उघड़ते गए थे और यहाँ पर यदि यह स्थिति है, तो मेरे देश में, और वह भी मारवाड़ी समाज में, कैसे झेलूँगी? कैसे? इसका भी उत्तर नहीं मिल रहा था। चलो, अपने बारे में फिर सोच लूँगी अभी तो कैथी की समस्या।

वापस कमरे में आई। वह अब काफी स्वस्थ लग रही थी। बुखार पूरी तरह उतर चुका था।
''किसका फोन था? एलिज़ा का?''
मेरा चेहरा सफ़ेद हो गया। हाथ में रखा हुआ कॉफी का प्याला छलक उठा। उसकी बादामी आँखें शांत मुझ पर टिकी हुई थीं।
''क्या हुआ एलिज़ा को?''
''कुछ नहीं।''
''मुझसे छुपाओ नहीं। कल वाले हादसे के बाद अब कोई भी बात मुझे नहीं हिला सकती। बोलो क्या हुआ एलिज़ा को? क्या वह डॉ. डी को तलाक दे रही है?''
''नहीं, उसे परसों रात को गोलियाँ खा ली थीं, बच गई है मगर डॉ. डी ने पागलपन के आधार पर कोर्ट में तलाक़ की अर्ज़ी दे दी है।''
''बास्टर्ड!स्वाइन!'' कैथी का मुँह लाल ईंगुर-सा हो गया।
''कैथी! अपने को सम्हालो... कैथी! तनाव तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा।''
''मुझे ब्रैंडी दोगी?''
''ब्रैंडी लेकर क्या करोगी? यों ही सुबह से इतनी गोलियाँ खा चुकी हो? ऐसा करो, तुम खाना खा लो।''
''नहीं भूख नहीं है। तुमने क्या खाया?''
''तुम मेरी चिंता छोड़ो।''
''अच्छा रेज़ में फ़ोन कर देते हैं। पित्ज़ा मँगा लेते हैं। हाँ?''

मैंने फोन पर पित्ज़ा का ऑर्डर दिया। मैं किचेन से कैथी के लिए एक ग्लास संतरे का रस लेकर लौटी।
''प्रभा! एलिज़ा को...'' उसकी आँखें बरसने लगीं। ''एलिज़ा मेरी सबसे अच्छी बहन है। प्रभा! हमारे परिवार में कोई भी औरत सुखी क्यों नहीं? ममा ने आत्महत्या कर ली। आँटी एडिना का प्यार असफल रहा और अब एलिज़ा? एलिज़ा इनवेस्टेड हरसेल्फ टोटली? इतना टूटकर किसी को चाहना कि अपनी कहने लायक कोई चीज़ न बचे?''
''कैथी! प्लीज़ कैथी! शांत हो।''
''नहीं मैं शांत हूँ, कल के सदमे के बाद अब कोई भी हादसा मुझे परेशान नहीं कर सकता। फ़ोन ज़रा इधर देना, मैं ब्रैडी से बात कर लेती हूँ।''

न्यूयार्क आए मुझे चार दिन हो गए थे और अब रविवार को घर लौटना था। बीच में कुल दो दिन बचे थे। कैथी ही हालत ऐसी नहीं थी कि वह मुझे लेकर बाहर निकल सके। पर उसने लेटे-लेटे रीजेंसी में फोन किया। किसी सोनिया नाम की लड़की से बातें की, फ़ोन पर ही टैक्सी को बुलाया और नीचे उतरते वक्त ज़बरदस्ती सौ डालर का एक नोट मेरे बॅग में रख दिया। उसको चोट पहुँचाने की मेरी हिम्मत नहीं थी। उसका कोमल चेहरा और बड़ी-बड़ी बादामी आँखें किसी कुचले हुए खरगोश की तरह।

आज हेल्थ बार इतना अपरिचित नहीं लगा। पत्ता गोभी का रस निकालती हुई सोनिया मुझसे कह रही थी, ''यह न्यूयार्क है, यहाँ सपने बनते हैं और सपने टूटते हैं। कभी मैंने भी बेहद मीठा सपना देखा था कि मैं 'कार्नेगी हॉल' में गाऊँगी। और आज इन छिलकों की तरह जीवन का सारा रस निचुड़ गया है। तुम मैरी को देखो, वहाँ कैश पर बैठा गीतों की कड़िया जोड़ रहा है, सारी रात गाता है, गाता रहेगा जबतक कि भाग्य के दरवाज़े न खुलें।''

तबतक परसोंवाली लड़की आई और मुझसे पूछा, ''कैरेट हवाना पीओगी?''
सोनिया की आँखें चमक उठीं।
''तुमको कैरेट हवाना पसंद है? मैं अभी बनाती हूँ। आज तुम हमारी मेहमान हो। पैसे मत देना।''

मैंने इधर-उधर देखा। चूँकि अभी बारह भी नहीं बजे थे, रेस्टोरेंट में दो-चार लोग ही थे। कैरेट हवाना का ग्लास सामने रखते हुए सोनिया ने कहा, ''यहाँ न्यूयार्क में अमेरिका केहर कोने से लोग आते हैं, नाम, यश और पैसा कमाने। यहाँ की ज़िंदगी में संघर्ष, केवल संघर्ष है। दिन महीने हो जाते हैं और महीने वर्ष। और बीतते हुए वर्षों के साथ हम झरने लगते हैं मगर सफलता की भाग्य-लक्ष्मी किसी-किसी के सर पर हाथ रखती है।

सोनिया रोजनावस्की खुद अपने बारे में बात करने लगी, फिर अपनी छोटी बहन के बारे में बताने लगी जो किसी और रेस्टोरेंट में वेट्रेस का काम करती है। वह मॉडलिंग भी करती है। वह रात को बैले भी सिखाती है। इधर-उधर से काफी कमा लेती है पर पैसा ही सब कुछ नहीं। जीवन की एक निजी सार्थकता भी चाहिए। तब तक लैरी हम लोगों के पास चला आया। कहने लगा, ''मुझे ही देखो। मैं ओहायो से यहाँ आया था अमीरी और प्रसिद्धि के चक्कर में। चार वर्ष बीत गए। अभी तक कुछ भी हासिल नहीं हुआ। तुम जानती हो सफलता की सीढ़ियों पर वही चढ़ सकता है जो आगे और पीछे खींची जाती रस्सियों के तनाव में अपना संतुलन बनाए रख सके और हर दिन गिने कि कितनी सीढ़ियाँ पार कर आया है। बहुत बार सोचता हूँ, सबकुछ छोड़.दूँ। लेकिन चाहता था कि मैं एक महान संगीतकार बनूँगा पर क्या पता, क्यों नहीं कुछ कर पाता? कभी सोचता हूँ एम्पायर स्टेट बिल्डिंग की छत से छलांग लगा लूँ लेकिन ऐसे हारने से कैसे चलेगा? धीरज रखना होगा और अधिक धीरज।''

वह मानो खुद को ही समझा रहा था। खुद से ही बातें करता-करता कैश काउंटर पर जाकर बैठ गया। सोनिया को धन्यवाद देकर मैं बाहर निकल आई। ऊपर जाने की इच्छा नहीं हुई। मैंने टाइम्स स्क्वेयर की ओर चलना शुरू कर दिया।
परसों भारत चली जाऊँगी। आइलिन, हेल्गा, बिटिना कितने चेहरे? कितने नाम? थकान लग रही थी। हाथ उठाकर एक टैक्सी को रोका।
''मेसी'' चूँकि यह जनवरी का महीना था और क्रिसमस के बाद बचे हुए सामानों के ऊपर सेल लगा हुआ था। ख़ास भीड़ नहीं थी। पर कुछ खरीदने का मन भी नहीं किया। जाने क्यों बार-बार मिसेज डी का रुँधता हुआ गला कानों में गूँज रहा था।

मैं चार बजे तक घर लौट आई। कैथी काफी सम्हली हुई लग रही थी। पर उसका चेहरा? वह ताज़ा फूल कुम्हला गया था।
''प्रभा! मुझे ब्रैडी से बात करनी होगी। नहीं, मेरा प्रेम पर विश्वास नहीं। उसने पहली पत्नी को छोड़ा। कल मुझे भी छोड़ देगा। मैं नहीं चाहती कि मैं मम्मी की तरह होऊँ जो डैड के आतंक में थरथर काँपती रहूँ। न मैं एलिज़ा की तरह दिवालिया होना चाहती हूँ। मुझे मेरा मैं चाहिए, एक मज़बूत व्यक्तित्व, जो सम्मान से सिर उठाकर खड़ा हो सके।''
''पर तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी कि बात तुम्हारे और ब्रैडी के संबंध पर आ जाए।''
''ओफ! तुम्हारी यही बातें मेरा जी जला देती हैं। तुम इतना क्यों डरती हो? बोलो तो आखिर? ब्रैडी न हुआ मानो भगवान हो गया। एक ब्रैडी जाएगा तो मुझे दस मिलेंगे, पर काम करने के लिए जिसस ने मुझे एक ही बार आदमी का शरीर दिया है। मेरे बीते हुए वर्ष लौटेंगे क्या? एलिज़ा ने पहले ही कदम उठाए होते मगर नहीं... हम सब अपनी ही आदतों के गुलाम होते हैं।''
''क्या प्यार एक आदत है?''
''बिल्कुल।''

मैं चुप थी। सोच रही थी अपने बारे में, अपनी आनेवाली ज़िंदगी के बारे में। एक ठंडे बर्फ़ीले संघर्ष के बारे में और सबसे अधिक पेपे के बारे में। क्या वह ज़िंदा है? क्या अब भी आइलिन को याद करके रोता है? उसकी आँखें कुछ न कहती हुई भी बहुत कुछ कहती हुई...
''पेपे क्या तुम्हारे गले में मेरा कढ़ाईवाला कालर अब भी बँधा है?''

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समाप्त

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