कलम गही नहिं हाथ
शोकाकुल सप्ताह
पिछला सप्ताह हिंदी जगत को शोकाकुल करने
वाला था। विगत ८ जून को एक सड़क दुर्घटना में तीन हिंदी कवि- दिल्ली के
ओमप्रकाश आदित्य, बेतूल के नीरज पुरी और शाजापुर के लाडसिंह गुर्जर हमारे
बीच नहीं रहे। जाने माने रंगकर्मी हबीब तनवीर भी हमें छोड़ गए। इन सबकी
कमी से हिंदी साहित्यकर्मियों और रंगकर्मियों के बीच गहरा शोक छाया रहा। वेब पर
भी हर ओर वही हाल रहा। विषाद से डूबे इस समय में सभी दिवंगत आत्माओं को अभिव्यक्ति परिवार की भावभीनी
श्रद्धांजलि। हम इनके निरंतर श्रम और कठिन जीवन से प्रेरणा लें और आने
वाले समय को भारतीय संस्कृति की उस रसमय अभिव्यक्ति में संजोए रहें जिसके
लिए ये कर्मयोगी निरंतर कार्यरत थे। कोशिश करेंगे कि आगामी अंकों में अपने पाठकों के लिए इनके
जीवन और कार्यों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ जुटा सकें।
जिन वृक्षों का भारतीय
संस्कृति और साहित्य से गहरा संबंध है, उनमें एक अति सुंदर वृक्ष है
कदंब। यमुना नदी के किनारे भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की अनेक कथाएँ इस
वृक्ष से जु़डी हैं। इसकी डाल पर बैठे वे बांसुरी की मधुर तान छे़डते थे।
कदंब से ही उन्होंने यमुना नदी में छलांग लगाई थी और कालिया नाग को
परास्त किया था। भारवि, माघ, भवभूति ने भी कदंब का सम्मानजनक वर्णन किया
है। बौद्घ और जैन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। बदलते समय के
साथ, शहरों की आपाधापी में हम इसके अद्भुत रूपाकार वाले फूलों को भूलते
जा रहे हैं। बढ़ते हुए कंकरीट के जंगलों में भी अब कदंब जैसे विशालकाय
छतनार वृक्षों के लिए जगह भी कहाँ बची है।
पिछले कुछ वर्षों से
जून-जुलाई के महीनों में हम अभिव्यक्ति तथा अनुभूति में भारतीय संस्कृति
से जुड़े सुंदर फूलों वाले वृक्षों के विशेषांक निकालते रहे हैं। इसी क्रम
में गुलमोहर, अमलतास और कचनार के बाद अगली बारी है कदंब की। अभिव्यक्ति और अनुभूति के १३ जुलाई के अंक कदंब विशेषांक होंगे। इस अवसर
पर
कदंब के पेड़ या फूल से संबंधित कहानी और कविताएँ भेजने के लिए सभी का
स्वागत है।
कहानी की शब्द सीमा २५००
से ३५०० होनी चाहिए। कविताएँ गीत, गजल, छंदमुक्त, हाइकु, दोहे आदि किसी
भी विधा में हो सकती हैं।
रचना भेजने की अंतिम तिथि
१ जुलाई २००९ है।
पूर्णिमा वर्मन
१५ जून २००९
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