कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
यू.के. से तेजेंद्र शर्मा की
कहानी
ओवर-फ़्लो पार्किंग
वह
आज एक बार फिर पत्नी को नाराज़ कर बैठा है।
उसकी भूल जाने की आदत अब परेशानी पैदा करने लगी है। बाहर
वाले तो कभी कभी ही परेशान होते हैं; किन्तु पत्नी के साथ तो
पूरा जीवन बिताना है। जब जब पत्नी से किया वादा भूलता है, घर
में परेशानी खड़ी हो जाती है। पत्नी को हैरानी होती है कि
अभी तो पचास का ही हुआ है, यह पैंसठ वाली समस्या का शिकार
क्यों होता जा रहा है।
आज भी यही हुआ है। पत्नी की बात मान गया कि शाम पांच तीस के
शो में पत्नी को निःशब्द दिखाने ले जाएगा। दो दिन पहले ही
वादा किया था। उस समय कहाँ मालूम था कि निःशब्द में से कितने
शब्द निकल कर उसका मुंह चिढ़ाने लगेंगे। भूल गया कि आज शाम
चार बजे के लिये पहले ही हाँ कह चुका था। पत्नी को भी बता
दिया था। लेकिन अब की बार उसके साथ साथ वह भी भूल गयी थी।
उसका भूलना उसे याद नहीं आ रहा; शब्द बाणों से घायल उसे ही
होना पड़ रहा है।
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पराशर गौड़ का व्यंग्य
हाय रे पुरस्कार
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२४ अप्रैल दिनकर की पुण्यतिथि
के अवसर पर
राजेश श्रीवास्तव शंबर का आलेख
दिनकर की प्रेम-प्रतिमा उर्वशी
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महेन्द्र भटनागर की लेखनी से
रामधारी सिंह दिनकर का बाल-काव्य
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डा आई पी चेलीशेव का
संस्मरण
लाल कमल तुझे नमस्कार है |
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पिछले
सप्ताह
अनुज खरे का व्यंग्य
आलोचकों के श्री चरणों में सादर
धारावाहिक में प्रभा
खेतान के उपन्यास
आओ पेपे घर चलें का
छठा भाग
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स्वाद और स्वास्थ्य में अर्बुदा ओहरी का आलेख
सलाद में छुपा स्वास्थ्य
*
फुलवारी में बाघ के विषय में
जानकारी,
शिशु गीत और
शिल्प
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कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
यू.के. से ज़किया ज़ुबैरी की
कहानी
मेरे हिस्से की धूप
गरमी
और उस पर बला की उमस! कपड़े जैसे शरीर से चिपके जा रहे थे।
शम्मों उन कपड़ों को संभाल कर शरीर से अलग करती, कहीं पसीने
की तेज़ी से गल न जाएँ। आम्मा ने कह दिया था, "अब शादी तक
इसी जोड़े से गुज़ारा करना है।" ज़िन्दगी भर जो लोगों के
यहाँ से जमा किए चार जोड़े थे वह शम्मों के दहेज के लिए रख
दिये गए – टीन के ज़ंग लगे संदूक में कपड़ा बिछा कर। कहीं
लड़की की ही तरह कपड़ों को भी ज़ंग न लग जाए। अम्मा की उम्र
इसी इन्तज़ार में कहाँ से कहाँ पहुँच गई कि शम्मों के हाथ
पीले कर दें। शादी की ख़ुशियाँ तो क्या, बस यही ख़्याल ख़ुश
रखता था कि शम्मों अपने डोले में बैठे तो बाक़ी लड़कियाँ जो
कतार लगाए प्रतीक्षा कर रही हैं, उनकी भी बारी आए। अम्मा के
फ़िक्र और परेशानी तभी तो ख़त्म हो सकते है। शम्मों को देखने
तो कई लोग आए मगर किसी ने पक्के रंग की शिकायत की तो किसी को
शम्मों की नाक चिपटी लगी। यहाँ तक कि किसी किसी तो शम्मों की
बड़ी-बड़ी काली आँखें भी छोटी लगीं।
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अनुभूति
में-
शशिपाधा, नीरज गोस्वामी, विजेन विज, सूरदास और पूर्णिमा वर्मन की नई
रचनाएँ |
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कलम गही नहिं
हाथ- पिछले दो महीनों में हिंदी विकिपीडिया के लेखों
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रसोई
सुझाव-
कच्चे नारियल की बर्फी को जल्दी और अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए
ताज़े दूध के स्थान पर मिल्क पाउडर का प्रयोग करें। |
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पुनर्पाठ
में - १६ मई २००२ के अंक में प्रकाशित फ्रांस से
सुचिता भट की रचना
रास्ते |
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क्या आप जानते हैं?
जलेबी भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, ईरान के साथ-साथ लगभग सभी
अरब देशों में भी खूब शौक से खाई जाती है। |
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शुक्रवार चौपाल-
एक्सप्रेस गल्फ़ न्यूज़ का नया टैबलॉयड है, जो शहर की सांस्कृतिक
गतिविधियों की सूचना और समीक्षा देता है ...
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सप्ताह का विचार- आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं।
यही हमारी उन्नति में सबसे बड़ा सहयक होता है। -- स्वामी
विवेकानंद |
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हास
परिहास |
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1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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