गरमी और उस पर बला की उमस!
कपड़े जैसे शरीर से चिपके जा रहे थे। शम्मों उन कपड़ों को
संभाल कर शरीर से अलग करती, कहीं पसीने की तेज़ी से गल न जाएँ।
आम्मा ने कह दिया था, "अब शादी तक इसी जोड़े से गुज़ारा करना
है।"
ज़िन्दगी भर जो लोगों के यहाँ
से जमा किए चार जोड़े थे वह शम्मों के दहेज के लिए रख दिये गए
– टीन के ज़ंग लगे संदूक में कपड़ा बिछा कर। कहीं लड़की की ही
तरह कपड़ों को भी ज़ंग न लग जाए।
अम्मा की उम्र इसी इन्तज़ार
में कहाँ से कहाँ पहुँच गई कि शम्मों के हाथ पीले कर दें। शादी
की ख़ुशियाँ तो क्या, बस यही ख़्याल ख़ुश रखता था कि शम्मों
अपने डोले में बैठे तो बाक़ी लड़कियाँ जो कतार लगाए प्रतीक्षा
कर रही हैं, उनकी भी बारी आए। अम्मा के फ़िक्र और परेशानी तभी
तो ख़त्म हो सकते है।
शम्मों को देखने तो कई लोग आए
मगर किसी ने पक्के रंग की शिकायत की तो किसी को शम्मों की नाक
चिपटी लगी। यहाँ तक कि किसी किसी तो शम्मों की बड़ी बड़ी काली
आँखें भी छोटी लगीं। हर ग्राहक के जाने के बाद शम्मों अपने
आपको घंटों टूटे हुए आइने में देखा करती। |