इस सप्ताह-
समकालीन कहानियों में
भारत से मुकेश पोपली
की कहानी अपील
"अवस्थी
साहब, आपको साहब याद कर रहे हैं।" मैं अभी आकर अपनी सीट पर बैठा था।
ब्रीफकेस खोल ही रहा था कि चपरासी ने आकर कहा।
मैं अपनी नेकटाई ठीक करता हुआ साहब के केबिन में दाखिल हुआ, "आपने
बुलाया सर?"
"हाँ मिस्टर अवस्थी, प्लीज़ कम इन, आइए, मैं आपको ही याद कर रहा था,
बैठिए।" उन्होंने अपने सामने पड़ी कुर्सी की ओर इशारा किया। मैं
धन्यवाद कहता हुआ उस कुर्सी पर बैठ गया।
"मिस्टर अवस्थी, यह तो आपको पता ही है कि किस तरह से सड़क दुर्घटना
में मिस्टर श्रेष्ठ का देहांत हो गया। अभी मेरे पास कंपनी के मुख्य
महाप्रबंधक का फ़ोन आया था। वह आज शाम को ही मिस्टर श्रेष्ठ के यहाँ
जाकर उनके परिवार को मुआवज़ा देना चाहते हैं।" साहब ने एक सफ़ेद
काग़ज़ जिस पर कुछ नोट किया हुआ था, पेपरवेट के नीचे से निकालते हुए
कहा।
"मेरे लिए क्या आदेश है सर?"
"मैं चाहता हूँ कि आप कंपनी के क्रय विभाग से पूरी 'डिटेल` ले कर और
रोकड़ विभाग को आदेश देकर यह कार्यवाही पूरी करें और मिस्टर श्रेष्ठ
की विधवा के नाम से तीन लाख रुपए का चैक तैयार करवाएँ।" साहब ने अपनी
बात पूरी कर दी थी।
*
कृष्ण मोहन मिश्र का व्यंग्य
मेरा पुष्पक विमान
*
शमशेर अहमद खान के साथ कन्याकुमारी पर्यटन
जहाँ तीन महासागर मिलते हैं
*
सुशील कुमार सिंह का आलेख
रंगमंच और त्रासदी शून्य
*
स्वाद और स्वास्थ्य में रोचक जानकारी
टमाटर और केले के
विषय में |
|
|
पिछले सप्ताह
डॉ. रामनारायण सिंह मधुर का व्यंग्य
नया साल ऐसे मना
*
नए साल के उपलक्ष्य में
पर्व पंचांग -
२००९
*
पिछले सभी वर्षों के नववर्ष विशेषांकों का
संग्रह
नववर्ष विशेषांक समग्र
*
साहित्य समाचार में
अभिज्ञात के उपन्यास 'कला बाजार' और 'सद्भावना
द्वारा प्रकाशित हिंदी के कविता संकलन 'बौछार' और हिन्दी-नार्वेज़यन पत्रिका "स्पाइल-दर्पण",
का लोकार्पण,
नेशनल बुक ट्रस्ट, 'हाइकु दिवस'
और अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्मोत्सव के समारोह तथा
डॉ. कृष्ण कुमार और प्रो. श्याम मनोहर पांडेय का सम्मान
*
समकालीन कहानियों में भारत से श्रवण कुमार
गोस्वामी
की कहानी
बालेसर का नया साल
बालेसर
को आज जितने भी यात्री मिले, उसने सबके हाथ में खाने-पीने के
भाँति-भाँति के सामान, मुर्गे, चूज़े, विदेसी शराब की बोतलें और
मिठाइयों के डब्बे ही देखे। वह समझ नहीं पा रहा था कि आज हर आदमी
इन्हीं चीजों की खरीददारी क्यों कर रहा था। न तो आज होली है और न कोई
परब-तेहवार। बालेसर अपनी सीट पर आकर बैठ गया। सीट पर बैठते ही उसका
यह सब सोचना खुद रुक गया। अब उसका ध्यान रास्ते की भीड़-भाड़ पर था।
कोई आधा घंटा तक लगातार रिक्शा चलाने के बाद बालेसर गांधी नगर पहुँच
गया। रिक्शा से उतर कर यात्री ने पूछा-'कितना हुआ?'
आज सुबह से ही बालेसर का धंधा काफी अच्छा चल रहा है। उसके रिक्शे से
एक सवारी उतर भी नहीं पाती है कि उसे अलग सवारी तुरंत मिल जाती है। उसके मन
में एक बात बार-बार उठ रही थी कि ऐसा तो हर दिन नहीं होता था।
आगे पढ़ें...
|
|
अनुभूति
में-
संकलन में नई नव वर्ष रचनाओं के
साथ
राजेंद्र गौतम, आदम गोंडवी, प्रतिभा
सक्सेना और रवींद्र स्वप्निल प्रजापति |
|