भारत भूमि के सबसे दक्षिण बिंदु पर स्थित
कन्याकुमारी में केवल एक तीर्थस्थान है बल्कि देशी विदेशी
सैलानियों का एक बड़ा पर्यटन स्थल भी है। देश के मानचित्र
के अंतिम छोर पर होने के कारण अधिकांश लोग इसे देख लेने की
इच्छा रखते हैं।
हिंद महासागर
बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर के मिलन बिंदु पर स्थित इस
नगर के लिए देश के अन्य भागों से वैसे तो अनेक रेलगाड़ियाँ
हैं, किंतु हिमगिरि एक्सप्रेस देश की सबसे अधिक लंबी दूरी
तय करने वाली एक्सप्रेस गाड़ी है। तामिलनाडु प्रांत में
स्थित कन्याकुमारी की दूरी केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम
से ...... किलोमीटर है। कोंकण रेलवे बन जाने और नई दिल्ली
तिरुवनंतपुरम राजधानी शुरू हो जाने से अब यहाँ तक पहुँचने
के लिए समय में काफी बचत हो जाती है, इससे पर्यटकों की
संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। वैसे तिरुवनंतपुरम से
कन्याकुमारी के लिए अनेक गाड़ियाँ हैं, किंतु
पंद्रह-पंद्रह मिनट के बाद अंतर्राज्यीय बस सेवाएँ भी हैं।
सामान्यतया पर्यटक यदि बस से कन्याकुमारी जाता है तो लौटते
समय वह रेलगाडी में यात्रा करना पसंद करता है क्यों कि
दोनों के मार्ग अलग-अलग होने के कारण अनेक प्रकार के
प्राकृतिक दृश्यों को देखने का अवसर मिल जाता है।
तिरुवनंतपुरम से लगभग छियासठ किलोमीटर
की दूरी पर नागरकोविल है। कन्याकुमारी जाने से पूर्व
पर्यटक यहाँ विश्राम करना पसंद करते हैं। देश की सबसे बड़ी
केलों की मंडी यहाँ स्थित है। यहाँ न केवल भिन्न-भिन्न
आकार के केले मिलते हैं बल्कि एक प्रकार का लाल रंग का
केला भी पाया जाता है जो बहुत स्वादिष्ट होता है। यह नगर
बहुत स्वच्छ एवं सुंदर है। नगर नारियल के वृक्षों से ढका
है। तिरुवनंतपुरम से नागरकोविल की यात्रा बस द्वारा करने
पर अंतिम से कुछ किलोमीटर को छोड़कर शेष रास्ता सड़क के
दोनों तरफ़ दुकानों और मकानों से घिरा होने के कारण यह
अनुमान लगा पाना मुश्किल होता है कि पहला नगर कब छूटा?
छूटा भी या नहीं? यात्रा रोमांचक होती है तथा गाड़ी में
जिज्ञासा बराबर बनी रहती है।
ठहरने का स्थान
नागरकोविल से कन्याकुमारी की दूरी लगभग
बाईस किलोमीटर है। यहाँ से कन्याकुमारी के लिए पाँच-पाँच
मिनट पर बसें मिलती हैं। देश के अनेक राज्यों की तुलना में
यहाँ बस का किराया सबसे कम है।
कन्याकुमारी पर्यटक स्थल होने के कारण महँगा है, किंतु नागरकोविल उसकी तुलना में काफी सस्ता है। जो पर्यटक एक से
अधिक दिन कन्याकुमारी ठहरते हैं तथा उनके सदस्यों की
संख्या अधिक होती है, वे अपनी भोजन सामग्री नागरकोविल से
पैक कराकर ले जाते हैं।
कन्याकुमारी में ठहरने के लिए अनेक
होटल, गेस्ट हाउस व लॉज हैं। केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों
का अतिथिगृह भी काफी बड़ा, भव्य व खूबसूरत है। यहाँ अनेक
एंपोरियम, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं, साड़ियों आदि की दुकानें
हैं। एंपोरियम में समुद्री वस्तुओं से बनी कलाकृतियाँ व
अन्य सामग्री खरीदी जा सकती है। इसमें सभी धर्मों के लोग
रहते हैं। यहाँ मंदिर, गिरजाघर और मस्जिद
भी हैं। सागर तट के साथ पर्यटक परिसर विकसित हैं जहाँ
पर्यटकों के रहने के लिए होटल, लॉज, अतिथिगृह हैं, वहाँ
एम्पोरियम, दुकानें, दर्शनीय स्थल जैसे महात्मा गांधी
स्मारक, प्रकाश स्तंभ. यंत्र नौका अड्डा, डाकघर, बैंक,
कुमारी अम्मां मंदिर, गगनाथा स्वामी मंदिर, पुस्तकालय व
आर. सी. चर्च हैं। यहाँ देश का अंतिम रेलवे स्टेशन व अंतिम
बस अड्डा भी है।
विवेकानंद स्मारक
यंत्र-नौका अड्डे से नौका द्वारा कुछ
मिनटों के फासले पर समुद्र के बीच में स्वामी विवेकानंद
स्मारक है जो समुद्र के मध्य स्थित शिला
पर १९७० ई. में निर्मित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि
स्वामी विवेकानंद ने इस शिला पर
१८९२ ई. में योगसाधना की थी। और इसके उपरांत सन १८९३ ईस्वी
में विश्वविख्यात शिकागो के धर्म सम्मेलन में भाग लिया था।
इस स्मारक में स्वामी जी की प्रतिमा के साथ ही एक ध्यान
केंद्र भी है जिसमें कोई भी ध्यान केंद्रित कर सकता है
किंतु बच्चों एवं स्त्रियों के लिए निषेध है। यहाँ स्वामी
विवेकानंद पर आधारित साहित्य के विक्रय केंद्र भी हैं।
इसके साथ ही एक शिला पर तमिल के
महान कवि तिरुवल्लुवर की विशालकाय प्रतिमा भी स्थापित की
गई है।
कन्याकुमारी का सूर्योदय एवं सूर्यास्त
देखने योग्य होता है। सूर्योदय तो किसी भी मौसम में देखा
जा सकता है किंतु मानसून के दिनों में आकाश में बादल होने
के कारण कभी-कभी वंचित भी होना पड़ सकता है इसलिए शरद ऋतु
में सूर्योदय एवं सूर्यास्त दोनों देखा जा सकता है।
गर्मियों में सूर्यास्त थोड़ा और पश्चिम की तरफ होने के
कारण दिखाई नहीं पड़ता। यदि पूर्णमासी के दिन यहाँ की
यात्रा की जाए तो सोने में सुहागा जैसा होता है।
कन्याकुमारी का पौराणिक माहात्म्य भी
है। कहा जाता है कि देवराज इंद्र को गौतम ऋषि द्वारा
प्राप्त श्राप से मुक्ति यहाँ मिली थी। यहाँ देवराज इंद्र
ने कन्याकुमारी मंदिर के द्वितीय प्रकार के गणपति की
देवेंद्र ने ही प्रतिष्ठा करके पूजा की थी इसलिए इसे 'इंद्रकांत
विनायक', 'पापविनाशम' व 'मंडूक तीर्थक' भी कहते हैं।
सीढ़ियों वाला घाट
कन्याकुमारी के तीन सागरों के मिलन
बिंदु पर सोलह स्तंभों वाला एक मंडप बना है जिसके नीचे
सीढ़ियों वाला घाट है, इस घाट पर श्रद्धालु स्नान करते
हैं। किंतु इससे थोड़ा पश्चिम हटकर प्राकृतिक रूप से फैली
चट्टानों के मध्य सागर का उथला भाग है जहाँ पर्यटक एवं
उनके साथ आए बच्चे सागर की लहरों के साथ खेलते हैं।
कन्याकुमारी की जलवायु पश्चिमी घाट की है इसलिए वर्ष
भर समताप रहता है और प्रतिवर्ष लगभग १०२ से.मी.
वर्षा हो जाती है। धरती पथरीली है इसलिए नारियल, कीकर,
इमली के ही वृक्ष उगते हैं। यहाँ के आदिवासियों की आजीविका
समुद्र पर आधारित है।
कुछ लोग पर्यटन व्यवसाय में लगे हैं,
किंतु यहाँ अधिकांश दुकानों के मालिक अन्य राज्यों के हैं।
यहाँ की भाषा तमिल, मलयालम और अंगरेज़ी है किंतु हिंदी में
काम चलाया जा सकता है। दो अक्तूबर को कन्याकुमारी में जहाँ
गांधी स्मारक निर्मित है, वहाँ गांधी जी का सिला
वस्त्र समुद्र में विसर्जन हेतु रखा था। दो अक्तूबर
को दोपहर के ठीक १२ बजे सूर्य की किरणें दिखाई देती हैं,
वहीं गांधी जी का स्मारक बनाया गया है। प्रकाश स्तंभ से
यदि कन्याकुमारी का दृश्य देखा जाए तो अद्भुत अनुभव होता
है। |