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दिल्ली में 'हाइकु दिवस' का आयोजन-

आकार की दृष्टि से सर्वाधिक छोटी मात्रा १७ अक्षर की कविता 'हाइकु' पर केन्द्रित 'हाइकु दिवस' का आयोजन साहित्य आकादमी दिल्ली के सभागार में ४ दिसम्बर को किया गया। रवीन्द्र नाथ टैगोर और उनके बाद अज्ञेय जी ने अपनी जापान यात्राओं से वापस आते समय जापानी हाइकु कविताओं से प्रभावित होकर अनेक अनुवाद किए जिनके माध्यम से भारतीय हिन्दी पाठक हाइकु के नाम से परिचित हुए। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में जापानी भाषा के पहले प्रोफेसर डॉ. सत्यभूषण वर्मा ने भी जापानी हाइकु से सीधा हिन्दी अनुवाद करके भारत मे उसका प्रचार-प्रसार किया। परिणामतः भारत में हिन्दी हाइकु कविता लोकप्रियता निरंतर बढ़ती रही और अब तक लगभग ४०० हिन्दी हाइकु कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं प्रो० सत्यभूषण वर्मा के जन्मदिन ४ दिसम्बर को हाइकु दिवस के रूप मे मनाने का सुनिश्चय हाइकु कविता की पत्रिका 'हाइकु दर्पण' ने किया। हाइकु दर्पण से जुड़े डॉ. जगदीश व्योम, कमलेश भट्ट कमल एवं डॉ. अंजली देवधर द्वारा हिन्दी हाइकु कविता की गुणवत्ता में सुधार हेतु निरन्तर प्रयास किए जा रहे हैं। इसी शृंखला में यह आयोजन किया गया।

हाइकु दिवस समारोह के अध्यक्ष डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय ने दीप प्रज्वलित कर समारोह का शुभारम्भ किया। मुख्य अतिथि श्री विजय किशोर मानव (संपादक कादम्बिनी) ने अपने वक्तव्य में कहा कि हाइकु कविता मन की अतल गहराइयों को प्रभावित कर सके ऐसा प्रयास करना चाहिए। विशिष्ट अतिथि आकाशवाणी दिल्ली के केन्द्र निदेशक डॉ. लक्ष्मीशंकर वाजपेई ने कहा कि हाइकु मन की अनुभूति की कम शब्दों में व्यक्त करने का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है। उन्होंने अपनी आकाशवाणी की गोष्ठियों में हाइकु पाठ के लिए भी हाइकुकारों को आमंत्रित किए जाने की योजना विषयक जानकारी दी तथा डोगरी भाषा मे लिखी जा रही हाइकु कविताओं की चर्चा की। विशिष्ट अतिथि डॉ. अंजली देवधर ने अन्य भाषाओं में लिखे जाने वाली हाइकु कविताओं की चर्चा करते हुए दुनिया के तमाम देशों में आयोजित हाइकु संगोष्ठियों में भारतीय हाइकु व हिन्दी हाइकु की उपस्थिति व मान्यता विषयक जानकारी दी। कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रभाकर श्रोत्रिय ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि शब्द जैसे-जैसे कम होते जाते हैं कविता सघन होकर और प्रभावशाली होती जाती है। हाइकु में कम शब्द होते है वहाँ किसी निरर्थक शब्द या अक्षर की गुंजाइश नहीं है इसीलिए एक अच्छा हाइकु बहुत प्रभावशाली होता है।

हाइकु दर्पण पत्रिका के संपादक एवं संयोजन डॉ. जगदीश व्योम ने विश्व स्तर पर हिन्दी हाइकु की चर्चा की। इंटरनेट पर हिन्दी हाइकु के विषय में बताते हुए कहा कि अनुभूति एवं अभिव्यक्ति जालस्थलों पर यू.ए.ई. में रहने वाली पूर्णिमा वर्मन ने हाइकु माह जैसे आयोजन कर प्रतिदिन एक हाइकु चित्र सहित वेबसाइट पर प्रकाशित किया जिन्हें हज़ारों वेब पाठकों ने प्रतिदिन पढ़ा और सराहा। हिन्दी के अनेक जालस्थल हैं जिन पर हाइकु कविताएँ निरंतर प्रकाशित की जा रही है। कार्यक्रम का संचालन हाइकुकार एवं साहित्यकार कमलेश भट्ट कमल ने किया। प्रो. वर्मा के साथ हमेशा से जुड़े रहे कमलेश भट्ट कमल ने हिन्दी हाइकु यात्रा विषयक विस्तृत जानकारी दी तथा हाइकु १९८९, हाइकु १९९९ जैसे ऐतिहासिक संकलनों के बाद २००९ के लिए हाइकु भेजने का निमंत्रण दिया।

इस अवसर पर प्रो. सत्यभूषण वर्मा की जीवन संगिनी श्री सुरक्षा वर्मा की गरिमामय उपस्थित समारोह का आकर्षण रही। समारोह में हाइकुकारों ने हाइकु कविताओं का पाठ कर जनता को प्रभावित किया। हाइकु पाठ करने वालों की-सर्वश्री- डॉ. कुँअर बेचैन, डॉ. सरिता शर्मा, पवन जैन (लखनऊ), अरविन्द कुमार, डॉ. लक्ष्मीशंकर वाजपेई, ओम प्रकाश चतुर्वेदी पराग, कमलेश भट्ट कमल, डॉ. जगदीश व्योम, सुजाता शिवेन (उड़िया कवयित्री), ममता किरण वाजपेई, प्रदीप गर्ग आदि प्रमुख थे। हाइकु दिवस समारोह में साहित्यकार डॉ. अरुण प्रकाश ढौंढ़ियाल, ब्रजमोहन मुदगल, एस.एस.मावई, श्रीमती मावई, श्रीमती अलका यादव, शिवशंकर सिंह, सुधीर, से.रा.यात्री, बी.एल.गौड़, ज्ञान प्रकाश विवेक, हरेराम समीप, अमरनाथ अमर, डॉ. तारा गुप्ता, श्रीमती ज्योति श्रोत्रिय, प्रत्यूष, अशोक मिश्रा, ममता किरन, मृत्युंजय साधक, नीरजा चतुर्वेदी आदि उपस्थित थे।


नेशनल बुक ट्र्स्ट इण्डिया द्वारा राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह का आयोजन

नेशनल बुक ट्र्स्ट इण्डिया द्वारा भारत के विभिन्न नगरों में १४ से २० नवंबर तक राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह का आयोजन किया गया। पुस्तक पढ़ने की संस्कृति के उन्नयन के लिए पं. नेहरू जी ने १ अगस्त १९५७ में नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया की स्थापना की थी। नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया ने राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह के अन्तर्गत देश के विभिन्न भागों में पुस्तक-विमोचन के साथ-साथ निबन्ध –प्रतियोगिता, विचार-विमर्श, कवि-दरबार आदि विभिन्न कार्यक्रमों की योजना बनाई है। इसी संदर्भ में नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया नेहरू भवन दिल्ली में राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह के अवसर पर विभिन्न माध्यमों के द्वारा कहानी-कथन को प्रोत्साहित करने के अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए।

कार्यक्रम का शुभारंभ नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया के अध्यक्ष प्रो. विपिन चंद्रा जी के द्वारा पुस्तकालय ऑटोमेशन के उद्घाटन से हुआ। इसके बाद प्रो चन्द्रा जी ने पोस्टर एवं पुस्तक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। कहानी-कथन सत्र में ६-१२ आयु वर्ग के बच्चों के समक्ष चित्रकार जगदीश जोशी, श्रीमती क्षमा शर्मा, श्रीमती दीपा अग्रवाल ने कहानी-कथन के बारे में अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए। जोशी जी ने कहा, ''चित्र के हिसाब से कहानी लिखना एक कठिन काम है, कहानी के विषय पर चित्र बनाना हो तो यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि चित्रों में विविधता बनी रहे। भारत में प्राय: १६ पृष्ठों की सचित्र पुस्तकों का प्रकाशन होता है, जिसमें ७-८ चित्रों के लिए जगह मिल पाती है। चित्रों का कहानी के विषय के साथ तालमेल होना चाहिए। चित्र कथा की परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनशील हों। श्रीमती दीपा अग्रवाल ने कहानी का विशेष गुण बताया -दूसरों को जोड़ना, संवाद स्थापित करना एवं व्यापक फलक पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान करना। कहानी शब्दों के माध्यम से एक प्रकार का मानसिक पोषण है। श्रीमती क्षमा शर्मा ने कहानी के लिए श्रोता की भागीदारी, उत्सुकता को प्रमुख बताया और बच्चों के बीच की कथावस्तु (बस्ता) को आधार बनाकर रोचक कहानी का सूत्रपात किया। इसी प्रकार ‘एक जंगल था’ को केन्द्र में रखकर पक्षी थे, खिड़की थी, खिड़की से झाँकते बच्चे थे- इस प्रकार कहानी को बच्चों की सहभागिता से आगे बढ़ाने की प्रक्रिया को समझाया। वर्तमान परिस्थितियाँ कितनी कटु हो गई हैं कि बच्चों का कोमल मन भी उससे अछूता नहीं रह सका है। गुड़गाँव के स्कूल के बच्चों द्वारा लिखी गई कहानियों के अन्त (सभी बच्चों ने कहानी का अन्त बम विस्फोट से किया था)  की समानता पर चिन्ता प्रकट करते हुए कहा – हमें हँसते दौड़ते बच्चे चाहिए। जो कहानियाँ लिखी जाएँ वे शोषण गरीबी और अन्याय के विरुद्ध हों।

अध्यक्ष पद से बोलते हुए प्रो विपिन चन्द्रा  ने अपने बचपन में सुनी कहानी के माध्यम से जीवन के सकारात्मक पहलू को उभारने पर बल दिया। श्री मानस रंजन महापात्र ने निदेशक श्रीमती नुसरत हसन के प्रति आभार प्रकट किया, जिन्होंने इस कार्यक्रम को नए स्वरूप में प्रस्तुत करने का परामर्श दिया था। श्री द्विजेन्द्र कुमार ने कार्य क्रम का संचालन किया।

दूसरे सत्र में कथाकार श्रीमती सुरेखा पाणंदीकर ने विभिन्न विद्यालयों के छात्रों के सम्मुख रोचक ढंग से ‘राक्षस की लोरी’ और ‘कौन बनेगा राजा’ कहानियाँ सुनाईं। इस सत्र में बच्चों ने भी कहानी में सहभागिता की। बच्चों के चेहरों पर झलक रहे आत्मविश्वास और प्रसन्नता ने इस सत्र को बहुत रोचकता प्रदान की। इस अवसर पर प्रसिद्ध व्यंग्य चित्रकार श्री आबिद सुरती भी उपस्थित थे। पुस्तक प्रदर्शनी में पुस्तक महल, साहित्य अकादमी, आर्य बुक डिपो, एन सी ई आर टी, नेशनल बुक ट्रस्ट, प्रथम बुक्स रूम टू रीड इंडिया आदि प्रकाशकों ने भाग लिया।
--रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


हरियाणा में अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्मोत्सव-

यमुना नगर, २६ दिसंबर, प्रथम हरियाणा अंतरराष्ट्रीय समारोह के निदेशक अजित राय ने बताया कि समारोह में शनिवार २७ दिसंबर का दिन ईरान के सिनेमा को समर्पित होगा। इस अवसर पर भारत में ईरानी दूतावास के ईरान कल्चरल हाउस के निदेशक अब्दुल हमीद जेयेई खास तौर से मौजूद रहेंगे। वे दर्शकों और छात्रों को ईरान के सिनेमा के बारे में एक विशेष व्याख्यान देंगे और ईरानी सिनेमा के विशेष खंड की शुरुआत माजिद मजीदी की फिल्म से की जाएगी।

२६ दिसंबर को दो फिल्में दिखाई गईं। शाम ४ बजे भारत के सत्यजित राय की फिल्म पाथेर पांचाली और ६ बजे स्टीवन स्पीलबर्ग की शिंडलर्स लिस्ट। पाथेर पांचाली बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है। इस फिल्म को दुनिया भर के लगभग सभी प्रसिद्ध फिल्मोत्सवों में अब तक कुल १३ अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं।  स्टीवन स्पीलबर्ग की शिंडलर्स लिस्ट को सात ऑस्कर अवार्ड मिले थे। हॉलीवुड की यह फिल्म दूसरे विश्वयुद्ध के एक महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम पर आधारित है। पोलैंड पर हिटलर के कब्जे के बाद वहाँ के क्रैकोव शहर में यहूदियों का दिल दहला देने वाला उत्पीड़न चल रहा है। इसी समय में नाजी पार्टी का सदस्य ऑस्कर शिंडलर वहाँ किसी नए व्यापार की तलाश में पहुँचता है, लेकिन अंततः व्यापार के बजाय उसकी सारी कोशिशें अपने यहूदी कर्मचारियों की जान बचाने में काम आती हैं। इसके अतिरिक्त फिल्म एप्रिसिएशन कोर्स में गौतम घोष की फिल्म मीटिंग ए माइलस्टोन दिखाई गई। शहनाई वादक भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खान पर केंद्रित इस फिल्म को एक आधुनिक कालजयी फ़िल्म का स्थान प्राप्त हो चुका है। एप्रिसिएशन कोर्स की दूसरी फिल्म हांगकांग के लोकप्रिय फिल्मकार वांग कार वाई की इन द मूड फॉर लव थी। इस फिल्म को कान फिल्मोत्सव में तीन प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले थे।

--पवन चंदन

२९ दिसंबर २००८

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